जनरल ने कहा- सर्जिकल स्‍ट्राइक को ‘बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया, इसकी जरूरत नहीं थी’

2016 सर्जिकल स्‍ट्राइक के समय उत्‍तरी सेना के कमांडर रहे लेफ्ट‍िनेंट जनरल (रिटायर्ड) डीएस हुड्डा ने कहा है कि स्‍ट्राइक का “ढिंढोरा” पीटने से मदद नहीं मिली। उन्‍होंने शुक्रवार को कहा कि “सैन्‍य ऑपरेशंस का राजनीतिकरण” होना “ठीक नहीं” है। चंडीगढ़ में चल रहे मिल‍िट्री लिट्रेचर फेस्टिवल के दौरान “सीमा पार ऑपरेशंस और सर्जिकल स्‍ट्राइक” पर बोलते हुए हुड्डा ने कहा कि सर्जिकल स्‍ट्राइक के बाद आरोप थे कि मुद्दे का राजनीतिकरण किया जा रहा है, और ”चुनिंदा वीडियोज, फोटोग्राफ्स को लीक करके एक मिलिट्री ऑपरेशन को राजनीतिक चर्चा में बनाए रखने का प्रयास हुआ।”

ले. जनरल (रिटा.) ने कहा, ”क्‍या महिमामंडन से फायदा हुआ? मैं कहता हूं, बिल्‍कुल नहीं हुआ। अगर आप सैन्‍य ऑपरेशंस में राजनैतिक फायदे लेना शुरू कर देंगे तो यह ठीक नहीं है। (उस समय) दोनों तरफ से, बहुत सारी राजनैतिक बयानबाजी हुई। सेना के ऑपरेशंस का राजनीतिकरण होना ठीक नहीं है।” भविष्‍य के ऑपरेशंस के लिए फैसला लेने वालों की सोच पर सर्जिकल स्‍ट्राइक के प्रभाव पर पूर्व सैन्‍य कमांडर ने कहा, “यदि आप एक सफल ऑपरेशन का महिमामंडन करेंगे तो सफलता का भी एक बोझ होता है।”

पूर्व सैन्‍य अधिकारी ने कहा, “क्‍या हम अगली बार सोचेंगे कि (अगर) हमारे लोग मारे गए तो?” चूंकि इसको इतना प्रचारित किया गया है, क्‍या इसका असर नेतृत्‍व पर होगा? क्‍या होगा अगर यह (ऑपरेशन) उतना सफल न हो? इससे भविष्‍य में सावधान होना पड़ सकता है। अगर हमने चुपचाप (सर्जिकल स्‍ट्राइक) की होती तो ज्‍यादा अच्‍छा होता।”

ले. जनरल हुड्डा ने कार्यक्रम में कहा, “जब हम (सर्जिकल स्‍ट्राइक) योजना बना रहे थे तो मन में यह विचार नहीं था कि पाकिस्‍तान उरी जैसे हमले बंद कर देगा।” उन्‍होंने कहा कि 2013 के आखिरी दिनों से ही आंतकी सीमा पार कर हीरानगर, जंगलोटे, पठानकोट और उरी स्थित सैन्‍य ठिकानों पर हमला करने आते रहे हैं।