जो बच्चे झूठ बोलते हैं वे चतुर हो जाते हैं

लंदन। अगर आपका बच्चा तीन साल की उम्र में झूठ बोलता है तो हंस कर टाल दीजिए, अगर सात साल की उम्र में भी उसने झूठ बोलना नहीं छोड़ा तो थोड़ी डरने वाली बात है।

एक नई किताब के मुताबिक, झूठ बोलना कोई इतनी अजीब चीज नहीं जिसके लिए बहुत ज्यादा परेशान हुआ जाए क्योंकि हम इंसान पैदाइशी झूठे ही होते हैं।

यह किताब इयान लेस्ली ने लिखी है जिसका नाम है बॉर्न लायर्स। इसमें कहा गया है कि हम सभी जन्म से ही झूठ बोलने की कला में पारंगत होते हैं। दो से चार साल की उम्र में बच्चे अक्सर सजा से बचने के लिए झूठ का सहारा लेते हैं। बहुत छोटे बच्चे झूठ बोलने में माहिर नहीं होते हैं। लेकिन चार बरस की उम्र में एक बड़ा बदलाव आता है।

किताब का दावा है कि साढ़े तीन बरस और साढ़े चार बरस की उम्र में बच्चे सीख जाते हैं कि सफाई से झूठ कैसे बोला जाए। झूठ बोलना मुश्किल होता है। झूठ बोलने के लिए पता होना चाहिए कि सच क्या है, फिर उसका विकल्प सोचा जाए, झूठी लेकिन उससे मिलती-जुलती एक कहानी तैयार की जाए, फिर दिमाग में उन दोनों का आपस में घालमेल किया जाए।

इसके बाद झूठ बोलते समय यह ख्याल भी रहे कि सुनने वाला इस समय कैसा महसूस कर रहा होगा। इसलिए यह हैरानी की बात है कि चार साल का एक बच्चा यह सब करने में कामयाब कैसे होता है।

हालांकि चार साल की उम्र में जब बच्चों की कल्पनाशक्ति डिवेलप हो रही होती है उस समय वे ज्यादा झूठ बोलते हैं। लेकिन उनकी यह प्रतिभा स्कूल जॉइन करने के शुरुआती बरसों में कम होने लगती है। बच्चा इस समय समाज की प्रतिक्रिया से दो-चार होता है।

बच्चों को पता चल जाता है कि झूठ बोलकर फायदा उठाने की कीमत काफी ज्यादा होती है। अगर ज्यादा झूठ बोलेंगे तो टीचर और दोस्त उन पर कम भरोसा करेंगे और वे बदनाम हो जाएंगे।

इसलिए अधिकतर बच्चे अपने आप सीख जाते हैं कि झूठ नहीं बोलना चाहिए। पर कुछ ऐसे भी होते हैं जिनपर कोई असर नहीं होता। अगर कोई बच्चा सात बरस के बाद भी झूठ बोलता है तो आशंका रहती है कि वह बड़ी उम्र में भी झूठ का सहारा लेता रहेगा।