देश में बढ़ते नफ़रत पर कोई लगाम नहीं, अल्पसंख्यकों को बनाया जा रहा है निशाना!

इक़बाल रज़ा, कोलकाता। नफरत व हिंसा को एक समूह द्वारा बिना किसी कानूनी परीक्षण के कथित अपराध के लिए पूर्व-निर्धारित हिंसा के रूप में देखा जा सकता है। इसे समुदायों के बीच आंतरिक तनाव की अभिव्यक्ति के साधन के रूप में अपनाया गया है।

अहम बात यह है कि लोगों के बीच किसी धर्म, जाति या नस्लीय मतभेद उन पर हमला करने या उन्हें अपमानित करने या उनकी नागरिकता या उन पर संदेह करने का औचित्य नहीं है। इस नफरत ने कई देशों को बर्बाद कर दिया क्योंकि आस्था व्यक्ति और ईश्वर के बीच का मामला है।

जहाँ कहीं भी राजनीतिक हित इन तत्वों के साथ मिल जाते हैं, ऐसी समस्यायें उत्पन्न हो जाती है जो किसी भी राष्ट्र के विकास की गति को धीमी करने के लिए काफी है। ऐसे लोग राजनीतिक हित को इन तत्वों के साथ घालमेल कर इसके नाम पर उन्मूलन की अवधारणा के माध्यम से लाभ कमाते हैं।

देश व समाज के लिए आवश्यक है कि वे उन राष्ट्रों के अनुभवों से सीखें जो इस समय संकट में हैं। यही कारण है कि इस विचारधारा ने इन मुद्दों के नाम पर व्यवहार करना शुरू कर दिया और तनाव को बढ़ा दिया।

इस अवधारणा ने मानवता के पहलू को बदल दिया। यह सबसे तर्कसंगत विचार बन गया है जो किसी व्यक्ति को दूसरे का अपमान करने या हमला करने या मारने को उकसाता है।

हिंसा व नफरत करने के लिए इस दुनिया में कोई नहीं आया। जो लोग धर्म, जाति या नस्लीय मतभेद के नाम पर हिंसा का उपयोग करते हैं, वे धर्म से दूर हैं और यह मानवता के खिलाफ अपराध है।

मुद्दा यह है कि हम मानवता की ओर से या इसके खिलाफ काम कर रहे हैं। इस तरह की नफरत व हिंसा के सभी पहलुओं पर हर सभ्य व्यक्ति को निंदा करनी होगी।

इससे निपटने के लिए तथा स्थायी शांति के लिए ठोस नीति होनी चाहिए जो सच्ची और ईमानदारी से काम करे तभी समाज, देश या विश्व स्थिर हो सकता है।

सामाजिक संबंधों को नियमित करने के लिए एक व्यापक अवधारणा की उपस्थिति ज़रूरी है। आज, हमें इस अवधारणा की आवश्यकता है कि इसे न केवल पढ़ाया जाए बल्कि इसे एक पाठ्यक्रम में बदल दिया जाए – जिससे विभिन्न संप्रदायों के लोग एक-दूसरे के साथ कैसे व्यवहार करें, इस संदर्भ का अनुसरण कर सके – हमें इसे विकसित करना होगा।

नफरत के नाम पर हिंसा, नरसंहार और अत्याचार को कैसे दूर किया जा सकता है? यह कठिन प्रश्न है, लेकिन प्रेम के मूल्यों का रोपण करने से ही समाज में एक सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा होता है और शांति प्राप्त करने के लिए सुरक्षित मार्ग प्रशस्त होता है।

आइये हम सब मिल कर प्रतिज्ञा करें और देशव्यापी तथा विश्वव्यापी इस समस्या का समाधान ढूंढने का प्रयत्न करें, इसी में समाज का, देश का और विश्व का कल्याण है जो इंसानियत को बचाने के लिए ज़रूरी है। हिंसा और नफरत के खिलाफ कैंसररूपी इस बीमारी की यही दवा है।

लेखक: इक़बाल रज़ा