“मैं मन की बात बहुत मन लगा के सुनता हूँ, ये तू नहीं है तेरा इश्तेहार बोलता है” – राहत इन्दोरी की ग़ज़ल

ज़मीर बोलता है ऐतबार बोलता है
मेरी ज़ुबान से परवरदिगार बोलता है

मैं मन की बात बहुत मन लगा के सुनता हूँ
ये तू नहीं है तेरा इश्तेहार बोलता है

कुछ और काम उसे याद ही नही शायद
मगर वो झूठ बहुत शानदार बोलता है

तेरी ज़ुबान कतरना बहुत ज़रूरी है
तुझे ये मर्ज़ है तू बार बार बोलता है

राहत इन्दौरी