यूरोप, एशिया और अमेरिका में हर चौथा बच्चा सिजेरियन के जरिए पैदा होता है

ऑपरेशन के जरिए बच्चा पैदा करने का चलन बढ़ता जा रहा है. सिजेरियन एक बहुत बड़ा ऑपरेशन है, जिसमें शरीर को चीर कर बच्चा बाहर निकाला जाता है. इसीलिए डिलीवरी के बाद पूरी तरह स्वस्थ होने में कई महीने लग जाते हैं. लेकिन मुनाफे के चक्कर में सेहत को नजरअंदाज किया जाता है.

ऐसा माना जाता है कि जूलियस सीजर के जन्म के दौरान पहली बार रोमन साम्राज्य में किसी जिंदा महिला के पेट को चीर कर बच्चा बाहर निकाला गया और इसीलिए सीजर के नाम पर इसका नाम सिजेरियन पड़ा.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कुल 137 देशों के आंकड़े जमा किए और पाया कि उनमें से केवल 14 ही संस्था द्वारा दिए गए मानकों पर खरे उतारते हैं. इनमें यूक्रेन, नामीबिया, गुआटेमाला और सऊदी अरब शामिल हैं.

बाकी सब देशों में छुरी का इस्तेमाल जरूरत से ज्यादा किया जाता है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार सिजेरियन का इस्तेमाल तभी होना चाहिए जब बच्चे या मां की जान को खतरा हो. संस्था 10 से 15 फीसदी मामलों में ही इसके इस्तेमाल की हिदायत देती है.

आंकड़े दिखाते हैं कि गरीब देशों में सिजेरियन के कम मामले सामने आते हैं. इथियोपिया, बुर्किना फासो और मैडागास्कर ऐसे देश हैं, जहां मांत्र दो फीसदी बच्चे ही सिजेरियन के जरिए पैदा होते हैं. इसके विपरीत यूरोप, एशिया और अमेरिका में हर चौथा बच्चा सिजेरियन के जरिए पैदा होता है. जर्मनी में डिलीवरी के एक तिहाई मामलों में सी सेक्शन का सहारा लिया जाता है.

सबसे बुरा हाल है ब्राजील, मिस्र और तुर्की का. यहां हर दूसरा बच्चा सिजेरियन के जरिए होता है, यानि केवल 50 फीसदी महिलाओं की ही सामान्य रूप से डिलीवरी की जाती है.

भारत में
देश भर का आधिकारिक आंकड़ा बुरा नहीं है. भारत में औसतन 18 फीसदी ही सिजेरियन किया जाता है. लेकिन अगर बात दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों की की जाए, तो आंकड़े चौकाने वाले हैं.एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के प्राइवेट अस्पतालों में 65 फीसदी बच्चे सिजेरियन के जरिए पैदा होते हैं. कुछ महिलाएं अपनी मर्जी से ऐसा कराती हैं, तो ज्यादातर मामलों में डॉक्टर उन्हें इसके लिए मजबूर करते हैं. दिल्ली के ही अस्पतालों की बात की जाए, तो डिलीवरी से ठीक पहले डॉक्टर इन बहानों का सहारा लेते हैं: बच्चे के गले में नाभिरज्जु का फंसना, पानी का सूख जाना, मां और बच्चे को इंफेक्शन, पीलिया इत्यादि.

जहां सामान्य डिलीवरी में घंटों लग जाते हैं, वहीं ऑपरेशन कर बच्चा पैदा करवाने में महज कुछ मिनट. ऐसे में डॉक्टर कम वक्त में ज्यादा डिलीवरी कराना का लालच करते हैं. कई देशों में डॉक्टर इंफेक्शन के डर से प्रसव का दर्द शुरू कराने वाली दवा दे देते हैं. लेकिन दवा के बावजूद अधिकतर प्रसव सामान्य रूप से नहीं हो पाते और सिजेरियन का खतरा बन जाता है. ऐसी भी आम धारणा है कि एक बार सिजेरियन होने के बाद हर बार यही कराना पड़ता है लेकिन ऐसा नहीं है. दो साल में शरीर दोबारा स्वस्थ हो जाता है और सामान्य रूप से डिलीवरी मुमकिन है. फिर भी कम ही डॉक्टर इसके लिए तैयार होते हैं.