वालिदैन और औलाद के हुकूक

इस्लाम वाहिद मुकम्मल निजामे हयात है जो इंसानी जिंदगी के हर पहलू से मुताल्लिक एहकाम देता है और एक नेक समाज तामीर करने की सलाहियत पैदा करता है और रहनुमाई करता है। समाज का एक अहम जुज खानदानी निजाम है और इस खानदान के दो अहम अरकान है- वाल्दैन और औलाद। यहां सबसे पहले औलाद के फरायज का जिक्र है जो कि मां-बाप के लिए हैं।

कुरआने मजीद में इरशाद है- और तुम्हारे रब का कतई फैसला है कि तुम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करो और वाल्दैन के साथ नेक सुलूक करते रहो।’’

यानी अल्लाह के बाद सबसे बड़ा हक वालिदैन का है। वह सबसे ज्यादा नेक सुलूक के मुस्तहक है। हजरत अबू उमामा (रजि0) का बयान है कि एक शख्स ने नबी करीम (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ) से पूछा या रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम )? अपने बच्चे पर मां और बाप दोनों का हक क्या है? आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ) ने फरमाया मां और बाप तुम्हारे लिए जन्नत और दोजख है।

यानी हमारा सुलूक मां बाप के साथ कुरआन और हदीस के मुताबिक है तो इसका सिला यकीनन जन्नत है और अल्लाह के गजब की पादाश जहन्नुम है।

जब मां-बाप बुजुर्ग होते हैं उस वक्त वह हमारी तवज्जो और हमदर्दी के मुस्तहक होते हैं। यही हमारी आजमाइश का वक्त है कि हम उनकी मोहब्बत और शफकत से खिदमत करके जन्नत कमा लें।

कुरआने पाक में इरशाद है कि मां-बाप या दोनों में से कोई एक बुढ़ापे की उम्र को पहुंच जाए तो उनहें उफ तक न कहो। और न झिड़क कर जवाब दो और उनके लिए दुआएं करते रहो।

इस हकीकत की तरफ अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ) ने किस खूबी से मुतवज्जो किया है कि जो नेक औलाद अपने मां-बाप के ऊपर एक मोहब्बत भरी निगाह डालती है उसको सौ मकबूल हज का सवाब मिलेगा। हम अपनी महदूद नजर के मुकाबले में सोंचते हैं कि इतनी सी बात का इतना बड़ा सवाब लेकिन नबी करीम (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ) ने फरमाया कि अल्लाह की नवाजिश और बख्शिश बेपायां हैं वह इससे भी ज्यादा अता करने वाला है।

हर बच्चे की जिम्मेदारी है कि वह अपने मां-बाप का फरमां बरदार बने, हाथ पैरों से माल से मोहब्बत व शफकत और दिल से अपने वाल्दैन की खिदमत करे और इसको वह अपनी सआदत और खुशबख्ती तसव्वुर करे। इस बात का हमेशा ख्याल रखे कि आज जो भी कुछ है मां बाप की मेहरबानी है। उन्होंने एक नातवां कमजोर बच्चे को रात-दिन कुर्बान करके दौलत खर्च करके बहुत मोहब्बत और शफकत से पाला है। इसलिए औलाद मां-बाप के साथ जो कुछ भी करती है वह उसका फर्ज है, एहसान नहीं।

मां बाप के साथ नाफरमानी, बदजबानी, लापरवाई, दिल आजारी, तंगदिली का मुजाहिरा ऐसी बातों का प्यारे नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ) ने गुनाह कबीरा में शुमार किया है। और इस गुनाह कबीरा के मुताल्लिक एक ऐसी खबर दी है कि सुन कर रूह कांप जाती है।

आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया कि तमाम गुनाहों में से जिस गुनाह की सजा अल्लाह चाहता है कि कयामत के दिन तक के लिए टाल देता है लेकिन वाल्दैन की नाफरमानी करने वालों को उसकी मौत से पहले यानी जिंदगी ही में सजा दे दी जाती है।

आइए हम आज ही अहद करें कि हम अपने मां-बाप की दिल की गहराइयों से प्यार व मोहब्बत से अकीदत और एहतराम से हर खिदमत बजा लाएंगे। अल्लाह और उसके रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ) की खुशनूदी हासिल करके जन्नत के मुस्तहक होंगे।

जिस तरह औलाद के फरायज है उसी तरह मां-बाप के भी फरायज है औलाद अल्लाह की दी हुई अजीम नेमत है। इसमें शक नहीं कि औलाद की परवरिश निहायत सब्र आजमा और दुश्वार गुजार काम है। लेकिन मां-बाप की मोहब्बत है कि दिन रात के आराम व चैन और नींद हराम करके अच्छी मिसाली परवरिश करके दिल का सुकून महसूस करते हैं। मां-बाप का फर्ज है कि बच्चों की सही तालीम व तर्बियत, सेहत, आराम, मुकम्मल हिफाजत और निगरानी करें। उसके ऊपर अपने माल को खर्च करें।

हजरत अबू हुरैरा (रजि0) फरमाते हैं कि नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ) ने फरमाया- एक अशरफी वह है जो तुमने अल्लाह की राह में खर्च की एक अशरफी वह है जो तुमने किसी गरीब को सदके में दी और एक अशरफी वह है जो तुमने अपने घर वालों पर खर्च की तो सबसे बड़ा अज्र उस अशरफी का है जो तुमने अपने घर वालों पर खर्च की।

लड़की और लड़का दोनों ही खुदा की नेमते हैं। लड़की की पैदाइश पर जलना, कुढ़ना नहीं चाहिए। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ) ने फरमाया- देखो, लड़कियों से नफरत न करो। इसलिए कि मैं लड़कियों का बाप हूं। अब बताइए कौन सा मुसलमान लड़की की तहकीर का तसव्वुर कर सकता है।

आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ) ने एक बार फरमाया- जिस शख्स के बेटियां या बहनें है वह उनके साथ बहुत अच्छा सुलूक करे अच्छी तर्बियत दे और मुनासिब जगह उनकी शादी करे दे तो अल्लाह तआला उसको जन्नत देगा।

नेक औलाद हमारे लिए सदका जरिया है। इसलिए हर मां-बाप का फर्ज है कि अपनी औलाद को दुनिया की तालीम के साथ दीन की तालीम भी दिलाएं। उसे एक अच्छा और सच्चा मुसलमान बनाएं। लेकिन बड़े अफसोस का मकाम है कि मां-बाप कहते हैं औलाद नाफरमान हो रही है। बेटे ही नहीं बेटियां भी अपने फरायज से गाफिल हैं। जबकि मां बाप उनके लिए बेहतर से बेहतर आसाइश मुहैया करने के लिए कोशां रहते हैं।

लेकिन क्या कभी हम यह सोंचते हैं कि कहीं इसके जिम्मेदार हम खुद तो नहीं। अल्लाह ने औलाद की परवरिश का जो सही तरीका बताया है उसमें हमने गफलत तो नहीं की। हम अपनी औलाद को दुनिया के काम न करने पर डांटते हैं, सजा देते हैं। लेकिन क्या नमाज, कुरआन न पढ़ने पर भी इतना सख्त रवैया अपनाते हैं। अगर उनकी कोताहियों पर डांटते हैं तो उनकी अच्छी बातों पर गले लगाकर प्यार करते हैं।

हमारे घर में बुजुर्ग हैं। हमारे शौहर के मां-बाप है हमारे लिए काबिले एहतराम है। हम और हमारे शौहर की खिदमत कद्र और एहतराम करते हैं अपनी मसरूफियात में से वक्त निकाल कर उनके पास बैठते हैं तो हमारी औलाद यकीनन यह सब सीखेगी और हरगिज भी नाफरमानी नहीं करेगी। लेकिन अगर हम इसके बरअक्स करते हैं न खुद एहतराम करते हैं बल्कि शौहर की आकबत को भी खराब करते हैं अपने बच्चों को अपनी मिलकियत समझते हुए बुजुर्गों के पास जाने से उनकी खिदमत करने से न सिर्फ रोकते हैं बल्कि बच्चों के सामने बुजुर्गों की दिल आजारी से भी नहीं चूकते। उफ जरा गौर कीजिए बुजुर्गों के लिए किस कदर तकलीफ का मकाम है।

अब ऐसे माहौल में परवरिश करके हम यह सोंचते हैं कि हमारी औलाद फरमांबरदार रहेगी जिसने अपने वाल्दैन का यह रूप देखा हो वह कैसे फरमांबरदार हो सकता है। इसलिए हमें एक अच्छी और मिसाली मां बनना होगा और सोंचना होगा कि इस्लाम ने मुझे वह आला मकाम अता किया है कि औलाद के लिए जन्नत मेरे कदमों के नीचे बनाई है लेकिन क्या मैं वाकई एक अच्छी मुसलमान मां होने का हक अदा कर रही हूं। जान लीजिए कि औलाद एक बेशकीमती नेमत है।

अतिया खुदाबंदी दिल का सुकून आंखों का नूर है लेकिन सख्त आजमाइश भी है। (सैयदा बी)

—————‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍बशुक्रिया: जदीद मरकज़