शरिया कानून का जोर सजा से अधिक बचाव पर होता है- ब्रुनेई

समलैंगिक संबंधों के लिए पत्थर मारकर मौत की सजा देने के शरिया कानून को लागू करने को लेकर चौतरफा आलोचना से घिरे दक्षिण-पूर्वी एशिया के एक छोटे से देश ब्रुनेई ने अपना बचाव किया है।

यू-टर्न लेते हुए ब्रुनेई ने कहा है कि इस कानून का मकसद ‘सजा के बजाए बचाव’ करना है। इसलिए वह व्याभिचार और पुरुषों के बीच समलैंगिक संबंधों के लिए पत्थरों से मारकर मौत की सजा देने के इस्लामी कानून को लागू करेगा।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र ने इस सजा को क्रूर व अमानवीय बताया है। संयुक्त राष्ट्र की निंदा के जवाब में ब्रुनेई के विदेश मंत्री एरवान यूसुफ ने गुरुवार को एक बयान में कहा, ‘शरिया कानून का जोर सजा से अधिक बचाव पर होता है।

इसका लक्ष्य सजा देने के बजाए शिक्षित करने, निवारक उपाय करने, प्रतिष्ठा लौटाने का होता है। शरीयत यौन आधार व यौन विश्वास के आधार पर अपराध का निर्धारण नहीं करती, इसमें समलैंगिक सेक्स संबंध भी शामिल है।

व्याभिचार और अप्राकृतिक मैथुन को अपराध बनाना पारिवारिक विरासत और किसी भी मुस्लिम की निजी तौर पर, विशेषकर महिलाओं की पवित्रता की हिफाजत के लिए है।’

पत्रिका पर छपी खबर के अनुसार, बयान में इस तरह की सजा के बेहद कम होने की तरफ इशारा करते हुए कहा गया है कि इस तरह के अपराधों में अंग विच्छेद या मौत की सजा देने के लिए दो ‘बेहद उच्च नैतिक व धर्मनिष्ठ’ पुरुषों की गवाही की जरूरत होती है।

इन दोनों का बेहद उच्च स्तर होना चाहिए और ऐसे लोगों का मिलना आज के समय में बेहद मुश्किल है। ब्रिटेन के विदेश मंत्री जेरेमी हंट ने गुरुवार को कहा कि उन्होंने ब्रुनेई के विदेश मंत्री से बात की है और उन्होंने संकेत दिया है कि शरीयत के हिसाब से सजा पर अमल होना असंभव ही है।

महिलाओं के बीच शारीरिक संबंध होने की सजा बेंत से 40 बार मारा जाना या अधिक से अधिक दस साल की जेल की सजा है। दुष्कर्म, व्याभिचार, अप्राकृतिक मैथुन, डकैती और पैगंबर मुहम्मद के अपमान के मामलों में मौत की सजा तक हो सकती है। शरीयत कानून का पहला चरण ब्रुनेई में 2014 में लागू हुआ था। दूसरा चरण बीते तीन अप्रैल को लागू किया गया था।