योगी सरकार के दावों की खुली पोल, सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी में 96 बच्चों की मौत

लखनऊ: भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश बच्चों की मृत्यु दर कम करने के मामले में कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। उत्तर प्रदेश के सैफई में मेडिकल विश्वविद्यालय के कुलपति टी प्रभाकर ने कहा कि अत्यधिक कार्यभार और कुपोषण से बच्चों की मृत्यु हो रही है।

प्रभाकर ने बच्चों की मौत का मुख्य कारण अस्पताल में बिस्तरों और डॉक्टरों की कमी का हवाला दिया। उन्होंने कहा, “हमारे पास 800 बेड की क्षमता है, लेकिन हर दिन 1200 मरीजों को भर्ती किया जाता है। हर रोज 45 बच्चों का जन्म होता है, लेकिन उनकी क्षमता केवल 30-35 रोज़ देने की होती है। प्रसव के लिए आने वाले नब्बे प्रतिशत रोगी रक्तहीन और कुपोषित होते हैं।”

साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि राज्य में बीजेपी सरकार के आने के बाद अस्पताल को उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है।

यह उत्तर प्रदेश में मरने वाले बच्चों की पहली घटना नहीं है। गोरखपुर में बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में एक सप्ताह में ऑक्सीजन की आपूर्ति की कमी और उसके बाद चार दिनों में 70 दिनों में 70 से अधिक बच्चे की मृत्यु हो चुकी है।

वही नीति आयोग की इस लिस्‍ट में सबसे ज्‍यादा कुपोषित वाला राज्य बताया गया है। इस रिपोर्ट ने यूपी सरकार के उन दावों की पोल खोल दी है, जिसमें कुपोषण को दूर करने के दावे किये जाते हैं। यूपी की जो जिले कुपोषण से सर्वाधिक हैं वे तराई और पूर्वांचल के जिले हैं। बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर के अलावा, कानपुर, उन्नाव, इलाहाबाद, गोरखपुर, शाहजहांपुर, आजमगढ़, सोनभद्र, झांसी, वाराणसी, इलाहाबाद समेत अन्य जिले शामिल हैं।

आंकडो पर नज़र डालें तो पता लगता है कि लगभग 82 हजार बच्चे यहां कुपोषित और अति कुपोषित है। साथ ही कुपोषण से 96 बच्चों की मृत्यु की भी धटना सामने आई है। लेकिन अप्रैल 2015 में जिला स्तर पर शुरु किए गए पोषण पुनर्वास केन्द्र में ढाई वर्षो में महज 275 कुपोषित बच्चे ही पाए गए हैं।