बाबरी मस्जिद 2 की शुरुआत! काशी विश्वनाथ मंदिर कोरिडोर प्रोजेक्ट से सामने आई यह मस्जिद !

वाराणसी : बनारस के मुसलमानों में भी ज्ञानवापी मस्जिद के एक और अयोध्या बन जाने का डर सामने आया.

‘पक्का महाल’ कहे जाने वाले बनारस के चौक-गोदौलिया इलाके में मौजूद काशी विश्वनाथ मंदिर के पिछले हिस्से से गुज़रने पर मंदिर से सटा एक बड़ा हिस्सा ढहा हुआ दिखता है.

इस ढहाए हुए हिस्से में गणेश, शंकर, लक्ष्मी जैसे हिंदू देवी-देवताओं के टूटे-फूटे मंदिर दिखाई देते हैं. हाल में ही गिराए गए इस हिस्से को लेकर बनारस में एक बड़ा संघर्ष हो रहा है, जिसे जन्म देने में कहीं न कहीं प्रधानमंत्री व वाराणसी के सांसद नरेंद्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बड़ा हाथ है.

दरअसल बीते दो-तीन महीनों से काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के निर्माण के लिए मंदिर के प्रांगण का विस्तारीकरण का कार्यक्रम चलाया जा रहा है. इस विस्तारीकरण के तहत एक कॉरिडोर का निर्माण होना है, जिससे काशी विश्वनाथ मंदिर और गंगा नदी एक दूसरे की सीधे संपर्क में आ जाएंगे.

इस कॉरिडोर के निर्माण के बाद काशी के इस प्राचीन मंदिर में दर्शन करने को आ रहे लोग सीधे गंगा नदी जा सकते हैं. हरिद्वार स्थित हर की पैड़ी की तर्ज पर बनाए जा रहे इस कॉरिडोर के निर्माण से पहले ही मोदी-योगी की इस परियोजना विवादों के घेरे में आ गई है.

प्रदेश की योगी सरकार की ओर से मंदिर क्षेत्र का विस्तार करने की योजना के तहत काशी विश्वनाथ मंदिर से लेकर ललिता घाट तक जाने वाले 700 मीटर के रास्ते के चौड़ीकरण का काम होना है. इस चौड़ीकरण के लिए इस रास्ते में पड़ने वाले लगभग 300 मकानों के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की जानी है. इन मकानों में कई मंदिर भी हैं, जिनको तोड़ा या स्थानांतरित किया जाना है.

विस्थापन की दृष्टि से देखें तो इन 300 मकानों में रह रहे लगभग 600 परिवारों को मोदी-योगी की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के बाद विस्थापित होना पड़ेगा.

लेकिन इसी जगह पर कॉरिडोर परियोजना को सबसे अधिक दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है. कॉरिडोर की सीमा में आने वाले अधिकतर भवन 100 सालों से भी ज़्यादा पुराने हैं, और इन भवनों में रह-रहे लोग पांच या छह पीढ़ियों पहले यहां आकर बसे थे.

विश्वनाथ मंदिर के सरस्वती फाटक पर मौजूद पूजन सामग्री और पर्यटकों को बेचने वाले सामानों के 50 वर्षीय विक्रेता विजय कुमार बताते हैं, ‘इस कॉरिडोर के निर्माण में मोदी जी पूरी बसी-बसाई बस्ती को उजाड़ देना चाहते हैं. कई लोगों से मकान ख़रीदे जा रहे हैं, और कई लोगों को उनके मकानों को बेचने के लिए दबाव बनाया जा रहा है.’

विजय कुमार आगे बताते हैं, ‘मेरी तो बस दुकान है. यहां रहने वाले लोगों की स्थिति बहुत ज़्यादा ख़राब है. लोग चाहते नहीं कि किसी भी क़िस्म के कॉरिडोर का निर्माण किया जाए. इस कॉरिडोर से यहां रह रहे लोगों के जीवनयापन पर बहुत बुरा असर पड़ने वाला है.’

बनारस के पक्का महाल की संरचना कई सौ सालों से नहीं बदली है. कहावत है कि यहां जो किसी समय पर तात्कालिक रूप से है, वह वहां सदियों से वहीं बने रहने के लिए. चाहे वह लोग हों या जगह. लेकिन मोदी-योगी की कॉरिडोर परियोजना बनारस से संभवतः उसकी ‘गलियों और मंदिरों का शहर’ वाली पहचान छीनने जा रही है.

इस परियोजना के लिए जब प्रशासनिक तेज़ी आई तो इस मोहल्ले में रह रहे खेल पत्रकार पदमपति शर्मा ने एक फेसबुक पोस्ट लिखी जो ख़ास चर्चा में रही. पदमपति शर्मा ने अपनी फेसबुक पोस्ट में आत्महत्या की धमकी देकर कहा कि उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बर्ताव मुग़ल शासक औरंगज़ेब से भी ज़्यादा बदतर है.

‘द वायर’ से बातचीत में पदमपति शर्मा कहते हैं, ‘योगी और मोदी ऐसा काम कर रहे हैं जैसा किसी मुग़ल शासक ने भी नहीं किया. वे हिंदू राष्ट्रवादी होने का दावा करते हैं, लेकिन सरकार ‘विकास’ के नाम पर मंदिर तोड़ रही है और बाबा विश्वनाथ की छाया में रह रहे सैकड़ों हिंदुओं को विस्थापन की ओर धकेल रही है.’

कॉरिडोर परियोजना के तहत आने वाले भूभाग में कई सौ साल पुराने मकान तो मौजूद ही हैं, साथ ही साथ कई दशक पुराने मंदिर भी मौजूद हैं.

इसके लिए, पिछले कुछ महीनों में कई घरों और दुकानों का अधिग्रहण किया गया. कुछ 100 अन्य घरों का अधिग्रहण किया गया था, लेकिन अभी तक ध्वस्त नहीं किया गया है. कई लोग प्रधानमंत्री मोदी के करोड़ों के ड्रीम प्रोजेक्ट को “एक अच्छा और बहादुर कदम” मानते हैं, जो महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर में जाने वाले भक्तों के लिए आसान पहुंच प्रदान करेगा. लेकिन जो लोग अपने घरों और दुकानों को छोड़ने के लिए मजबूर थे, उनके लिए यह एक अलग कहानी है.

स्थानीय भाजपा नेताओं के अनुसार, “मालिकों को वास्तविक मुआवजे के चार गुना और वैकल्पिक साइटें भी दी गई हैं। किसी को भी वास्तव में शिकायत नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह आम लोगों के लिए ही है”। लेकिन एक सभ्य समाज समूह, संझा संस्कृत मंच, ने कहा कि शहर प्रशासन के पास न तो कोई खाका है, और न ही इस योजना को साझा करने के उसके अनुरोध का जवाब दिया। मंक के वल्लभाचार्य पांडे ने द ट्रिब्यून को बताया “हमने आरटीआई के तहत जानकारी मांगी, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। यहां तक ​​कि मुआवजे का भुगतान करने के लिए सर्किल दरों को संशोधित किया गया था”। उन्होंने कहा कि पीढ़ियों से पांच से छह परिवारों को आश्रय देने वाले कुछ 300 घरों के निवासियों को स्थानांतरित कर दिया गया है।

इन घरों के विध्वंस से कई प्राचीन मंदिरों का भी पता चला है, जो अधिकारियों के अनुसार, सभी निवासियों द्वारा अतिक्रमण किए गए थे और जिन्हें जनता के लिए खोल दिया जाएगा।

अब यह अल्पसंख्यक समुदाय के बीच आशंकाओं को जन्म दे रहा है कि यह “बाबरी मस्जिद 2.0” की शुरुआत हो सकती है। यदि आप मंदिर और मस्जिद का सामना करने वाले साफ-सुथरे क्षेत्र में खड़े होते हैं, तो भक्तों के बीच किसी भी समय समान बातचीत सुनना आसान है। “देखना है कि। यह एक मस्जिद है। इसका निर्माण ‘ज्योतिर्लिंग’ के साथ असली मंदिर को बनाए रखने के बाद किया गया था। ‘ज्योतिर्लिंग’ अभी भी मस्जिद के अंदर है। ”

इस सब से अल्पसंख्यक समुदाय चिंतित हो गया है। इसे इस लाइन से जोड़ रहे हैं ‘अयोध्या तो एक झाँकी है, काशी, मथुरा बाकी है’का नारा पुरानी पीढ़ी की याद में नई पीढ़ी को पारित करने के लिए जीवित है। मुस्लिम समुदाय के सदस्य यह भी याद करते हैं कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद के आसपास के क्षेत्र को अयोध्या के “सौंदर्यीकरण” के लिए कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन भाजपा सरकार ने कैसे मंजूरी दी थी। अधिकारी और स्थानीय भाजपा नेता आशंकाओं को नकारने की कोशिश करते हैं। “इससे कोई नुकसान नहीं होगा। जमाना बदल गया है। इसके अलावा, बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद से क्या हुआ है? पीएम नरेंद्र मोदी के मुताबिक, मस्जिद को कोई नुकसान नहीं पहुंच सकता है। ‘