इक़बाल रज़ा का ब्लॉग: श्रीलंका के मुस्लिम हिंसा से हमेशा दूर रहे हैं!

ऐसे पवित्र दिन (Easter Sunday) पर हिंसा के ऐसे कार्य सभी विश्वासों और संप्रदायों के खिलाफ हिंसा के कार्य हैं, और उन सभी के खिलाफ हैं जो धर्म की स्वतंत्रता और पूजा की पद्धति को महत्व देते हैं।

श्रीलंका में ईस्टर संडे की की घटना से मुस्लिम समुदाय जो करीब आबादी का 10% है – हैरान है। हालाँकि श्रीलंका के मुसलमान हिंसा से दूर रहे हैं, गृह युद्ध के दौरान भी और हालिया राजनितिक संघर्ष के समय भी, जब उन्हें धार्मिक रूप से प्रेरित हमलों का निशाना बनाया गया। संघर्ष समाप्ति पर इन्हें “सिंहली और तमिल” द्वारा राजनीतिक स्वायत्तता (Political Autonomy) में बाधा के रूप में देखा गया।

श्रीलंका में जिहादी चरमपंथ के दावे कभी-कभार ही देखे गए हैं, लेकिन नफरत फैलाने वाले अभियानों में इज़ाफ़ा का समुदाय के नेताओं को जब एहसास हुआ तो उन्होंने प्रशासन को चेतावनी दी, लेकिन इनपर कोई कार्रवाई नहीं की गई। मीडिया में छन के आ रही खबरों के अनुसार हमलावर स्थानीय इस्लामिक चरमपंथी के हो सकते हैं जिसका सम्बन्ध नेशनल तौहीद जमात से हैे। समाचारों के अनुसार ISIS भी हमलों के लिए जिम्मेदारी का दावा कर रहा है, हालांकि इसके विवरण (Detail) बहुत कम हैं।

श्रीलंकाई सुरक्षा प्रतिष्ठान ऐसे हमलों को रोकने के लिए उचित कार्रवाई करने में विफल रहे हैं। गठबंधन सरकार अल्पसंख्यकों के समर्थन से चुना गया था। बाद में यह भी राष्ट्रपति और सरकार के बीच दरार, राष्ट्रीय सुरक्षा पर ठोस नीति पर अक्षम साबित हुई जिससे ऐसे भयावह हमले संभव हुए। इतना भयावह हमला होने के बावजूद, देश का नेतृत्व बंटा हुआ दिख रहा है।

ऐसे में यह कहा जा सकता है की हिंसा और अत्याचारों के लिए जवाबदेही के बिना शांति नहीं हो सकती। अल्पसंख्यकों को संरक्षण तथा पीड़ितों को न्याय सुनिश्चित करते हुए सुरक्षा तंत्र को अपराधियों को दण्डित करना होगा। श्रीलंका में हुई हिंसा राज्य की विफलताओं, असुरक्षा, न्याय की कमी और मानवाधिकारों की अवहेलना को दर्शाता है। नेतृतव को सभी के लिए जवाबदेह होना होगा चाहे अल्पसंख्यक मुसलमान हों या रविवार के भयावह हमले के शिकार अल्पसंख्यक ईसाई तभी वास्तविक शांति की अपेक्षा की जा सकती है।

एक बार फिर श्रीलंका संघर्ष की स्थिति में है। यह राष्ट्रीय चिंता का विषय है। सभी को संकीर्ण राष्ट्रवादी और अतिवादी सोच से ऊपर उठकर, सभी के लिए न्याय और समानता पर आधारित राष्ट्र का निर्माण करना चाहिए।

लेखक: इक़बाल रज़ा