इक़बाल रज़ा का ब्लॉग: ‘सऊदी अरब के लिए परमाणु ऊर्जा ज़रूरी क्यों है?’

सऊदी अरब का आर्थिक विकास काफी हद तक तेल और गैस पर निर्भर रहा है और सऊदी सरकार ‘Vision 2030’ के तहत देश को अधिक विविध बनाने के लिए काम कर रही है जो आर्थिक व सामाजिक सुधारों की विकास क्षमता प्राप्त करने के लिए आवश्यक है।

तेल और गैस के धनी अरब और खाड़ी के देश पेट्रोलियम पदार्थों का बूम कम होने के बाद ऊर्जा के अन्य स्रोतों की ओर जा रहे हैं, जो उनके भविष्य की ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए आवश्यक है। यही कारण है कि दुनिया के प्रमुख तेल उत्पादकों में शामिल सऊदी अरब, कुवैत और गैस के धनी क़तर जैसे देश परमाणु ऊर्जा के लिए इतने तत्पर हैं।

यद्दपि सऊदी अरब प्राथमिक रूप से नाभिकीय ऊर्जा के सैन्य इस्तेमाल से इंकार करता रहा है और इसका कहना है कि इसके परमाणु इरादे शांतिपूर्ण हैं जो सिर्फ नागरिक परमाणु कार्यक्रम है।

चूँकि सऊदी अरब परमाणु मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है इसलिए मीडिया में नए-नए नज़रियै पेश किये जाते रहे हैं। सऊदी अरब 1988 में अप्रसार संधि (NPT) का सदस्य बना जो मूलतः छोटी मात्रा के प्रोटोकॉल” (SQP) से सम्बंधित हैे।

लेकिन बड़े पैमाने पर ऊर्जा उत्पादन हेतू अतंरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ कान्ट्रैक्ट होने पर ही न्यूक्लियर फ्यूल (Nuclear Fuel) आपूर्ति करने वाले देश सऊदी अरब को नाभिकीय फ्यूल सप्लाई कर सकेंगें।

सऊदी अरब में दशकों से ढांचागत तथा मेगा प्रोजेक्टस की गतिविधि चल रही है, जनसंख्या बढ़ रही है और तेजी से शहरीकरण हो रहा है, बढ़ती बिजली की मांग तथा ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने के लिए परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम ज़रूरी है जो Desalination and Heat Generation का काम भी करेगी, ये कुछ ऐसे ऐसे कारण हैं जिसके चलते परमाणु रिएक्टरों के जरिये ऊर्जा आपूर्ति में विविधता लाने के लिए परमाणु ऊर्जा ज़रूरी है।

इससे अधिक से अधिक कच्चे तेल का उत्पादन और निर्यात भी संभव हो पाएगा। इस महत्वाकांक्षी योजना को सहायता देने के लिए, Aramco व Sabic जैसी नामी कंपनियों का योगदान भी अहम् है।