क्या सऊदी अरब को दोस्त समझने लगा है ईरान?

सऊदी अरब और संयुक्त अरब इमारात हमेशा से ही ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका को भड़का कर तेहरान को कमज़ोर करने की कोशिश करते रहे हैं, लेकिन ईरान इन दोनों देशों को पड़ोसी और मुस्लिम देश के रूप में अपना दोस्त समझता है।

1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से ही अमरीका, ईरान का भय दिखाकर इन देशों के आर्थिक स्रोतों से लाभ उठा रहा है और अरबों डॉलर के हथियार बेच रहा है।

हाल ही में ईरान के तेल निर्यात पर अमरीका के एकपक्षीय प्रतिबंधों के बाद दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है, जिसके बाद अमरीका ने क्षेत्र में विमान वाहक युद्धपोत तैनात कर दिया है और अपने सैनिकों की संख्या बढ़ाने की घोषणा की है।

इसी के साथ अमरीकी राष्ट्रपति ने ईरान को बातचीत का प्रस्ताव दिया है, लेकिन ईरान ने अमरीका के वार्ता के प्रस्ताव को स्वीकार करने के बजाए, फ़ार्स खाड़ी के अपने पड़ोसी देशों को हमले में पहल न करने के समझौते का प्रस्ताव दिया है।

इस तरह से जहां ईरान ने अपने पड़ोसी अरब देशों की सुरक्षा चिंताओं को दूर करने की कोशिश की है, वहीं उन्हें अमरीका के हाथों लुटने से बचाने का एक प्रयास किया है।

पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, सऊदी अरब और इमारात अगर ईरान के इस प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार करते हैं तो फिर ट्रम्प के हाथों से दूध देने वाली गाय निकल जाएगी।

ट्रम्प कई बार खुलेआम फ़ार्स खाड़ी के अरब देशों विशेष रूप से सऊदी अरब को दूध देने वाली गाय बता चुके हैं और उन्हें सुरक्षा देने के बदले उनसे उसकी क़ीमत वसूल करने की बात कह चुके हैं।

लेकिन ईरान ने इस तरह का प्रस्ताव देकर और अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी निभाकर सऊदी अरब व इमारात को अमरीका के हाथों ब्लैकमेल होने से बचाने का एक प्रयास किया है।

हालांकि यह दोनों ही देश ईरान की दुश्मनी में इतना अंधे हो चुके हैं कि पहले से भी कहीं अधिक अमरीका के चंगुल में फंसते जा रहे हैं। इन दोनों देशों ने ईरान के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया है, जबकि ख़ुद अमरीका, ईरान से वार्ता के लिए काफ़ी हाथ पैर मार रहा है।