बिहार: बांका जिले का मदरसा मिस्बाहुल उलूम, तालीम के लिए एक मिसाल है!

तालीम इंसान पर फर्ज किया गया है, यह बात क़ुरआन नाज़ील होते वक्त इक़रा शब्द साबित करता है। हैरानी की बात यह है कि जिस कौम पर तालीम को फर्ज़ किया गया है, वह कौम आज दर- बदर ठोकरें खा रही है। लेकिन कुछ लोग इस काम में लग कर आने वाले नस्लों तक तालीम पहुंचाने का काम कर रहे हैं।

बिहार के बांका जिले में आठगांवा स्थित मिस्बाहुल उलूम मदरसा कुछ ऐसा ही काम कर रहा है। सालाना दस्तारबंदी के प्रोग्राम में इस साल करीब 38 बच्चों को हाफिज़ बनाया है। यह काम मदरसे में पढ़ाने वाले उस्तादों ने कर दिखाया है।

रिपोर्ट के मुताबिक करीब 20 से ज्यादा शिक्षक( उस्ताद) इस मदरसें में पढ़ाते हैं। इनकी कड़ी मेहनतों के बदौलत हर साल अनेकों बच्चें हाफिज़ बनकर निकलते हैं।

उस्मान ग़नी से फोन पर हुई बात के अनुसार इस मदरसे में करीब 550 से 600 बच्चों की पढ़ने की व्यवस्था है। उन्होंने बताया कि करीब 300 बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जाती है, जो गरीब हैं या फिर यतीम हैं, उस्मान ग़नी के मुताबिक इन बच्चों के लिए मदरसे में रहने की व्यवस्था है और हर चीज़ इन बच्चों को निशुल्क मुहैया कराए जाते हैं।

उन्होंने ने बताया कि हर साल यह सालाना प्रोग्राम (जलसा) का आयोजन किया जाता है, जिसमें हिफ्ज़ मुकम्मल किए गये बच्चों को दस्तारबंदी कर उन्हें नवाजा जाता है।

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एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 25 हजार लोग जलसे में शामिल होने आये थे। मदरसा व्यवस्थापक ने बताया कि उनके खाने पीने का इंतजाम मदरसें की तरफ़ से की गयी। वहां के लोगों ने बताया कि इस बार के जलसे में करीब 10 हजार औरतें और 15 हजार मर्द शामिल हुए।

मदरसें में पढ़ाने वाले उस्तादों ने बताया कि बच्चें जब कामयाब होकर यहां से निकलते हैं और मदरसें का नाम रौशन करते हैं तो हमें बेहद खुशी मिलती है। हम समझते हैं कि हमारी की गयी मेहनत कामयाब हो गया।

बांका जिले का यह मदरसा आठ गांवों के बीच में है, इसकी इस गांवों में करीब आठ हजार घर है। इस मदसरे का कोई खास इनकम नहीं है। जो भी है वह मदसरे की संपत्ति से आता है। चंदे की बात करें तो आठ गांव के लोग ही देते हैं जो बहुत ज्यादा नहीं है। अगर खर्चों की बात की जाये तो करीब सालाना 15 लाख का खर्च आता है, जो एक बहुत बड़ा रकम के रुप में है।

इस मदसरे का वजूद 1957 में आया था। रिपोर्ट के अनुसार इसे कायम करने में मौलाना मरहूम समीनुद्दिन अंसारी का अहम रोल रहा है और वही इस मदरसे के बानी भी हैं। इनको सहोग देने में आगे रहे मरहूम डॉक्टर शराफत हुसैन।

इस मदरसे के वजूद में आने के लिए मरहूम अब्दुर रशीद साहब ने अहम रोल अदा किया, उन्होंने अपनी जमीन इस मदरसे को वक्फ़ किया। एक रिपोर्ट के अनुसार इस मदरसे के लिए गांव वालों ने करीब 26 बिगहा जमीन मदरसे के नाम वक्फ़ किया है।

तालीम के ऐतवार से यह मदरसा बहुत ही अच्छा काम कर रहा है। उन ग़रीब बच्चों, जो यतीम हैं और उनको देखने वाले कोई नहीं है, उनके लिए यह मदरसा एक बहुत बड़ा जरिया है।

इस मौके पर डॉक्टर शराफत वेलफेयर ट्रस्ट के तरफ़ से एक फ्री मेडिकल कैंप का भी आयोजन किया गया था। इस फ्री चेकअप कैंप में भारी तादाद में लोगों ने जांच करवाएं, इसके साथ फ्री दवाइयों का भी इंतजाम किया गया था।