मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रस्तावित मॉडल निकाहनामे पर मुस्लिम महिलाओं की राय

तीन तलाक बिल लोकसभा में पास होने के बाद अब मोदी सरकार इसे राज्यसभा में पास कराने की कोशिश में है। भले ही राज्यसभा में बहुमत नहीं है लेकिन सरकार की ये कोशिश रहेगी कि उच्च सदन से भी मुस्लिम महिलाओं से जुड़ा ये अहम बिन पास हो सके। तीन तलाक पर बन रहे कानून का विरोध करने वाला ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड निकाहनामा में बदलाव की तैयारी कर चुका है।

बोर्ड तीन तलाक (एक बार में तीन तलाक) रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने जा रहा है। हैदराबाद में 9 फरवरी को मुस्लिम पर्सनल बोर्ड की बैठक में इस पर मुहर लग जाएगी जिसमें निकाह के दौरान एक बार में तीन तलाक न देने की भी शर्त होगी। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना खलीलुर्रहमान नोमानी ने हाल ही इसकी घोषणा की थी।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रस्तावित मॉडल निकाहनामे पर मुस्लिम महिलाओं ने अपनी राय रखी है जिसमें तीन तलाक़ की पैरवी करने वाली सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता फराह फैज़ कहती हैं कि तीन तलाक़ एक साथ देना गलत बात है। बोर्ड ने देर से ही सही इसको स्वीकार किया और बात मॉडल निकाहनामे तक तो आई।

उन्होंने कहा कि इस मॉडल निकाहनामे में एक कॉलम और जोड़ा जाएगा जिसमें लिखा होगा कि ‘मैं तीन तलाक नहीं दूंगा।’ इस का इख्तयार सिर्फ पुरुष को दिया गया है। उनका कहना था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कोई क़ानूनी संस्था नहीं है कि उसकी हिदायत को माना जाए या नहीं माना जाए। मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए पूरे समुदाय को सामने आने होगा।

महिलाओं की समाजी संस्था ‘परचम’ की अध्यक्ष डाक्टर कुदसिया अंजुम ने प्रस्तावित मॉडल निकाहनामे का स्वागत करते हुए कहा कि इसमें खामी भी है और कहा कि मॉडल निकाहनामे में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है कि पुरुष तलाक़ देने से बाज आ जायेगा जिसकी निकाह के समय वह निकाहनामे में स्वीकृति करेगा। उनका कहना था कि इस्लाम में जो महिलाओं के हुकूक हैं उनको देकर पुरुषों को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

ब्राउन वुड पब्लिक स्कूल की निदेशक सय्यदा सफिया की नज़र में प्रस्तावित मॉडल निकाहनामा तारीफ के काबिल है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन बोर्ड का दायरा सिर्फ बैठकों या इजलास तक सीमित नहीं रहना चाहिए। बोर्ड मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के प्रति सजग रहे और इस्लामी हुकूक के लिए सिर्फ ढिंढोरा ना पीटा जाए बल्कि इन अधिकारों की अदायगी की जाए।

उत्तर प्रदेश की पूर्व मंत्री शगुफ्ता खान का कहना है कि देर आयद दुरुस्त आयद, चलो बोर्ड ने एक साथ तीन तलाक़ के खिलाफ पहल तो की है। उनका यह भी कहना है कि मॉडल निकाहनामा सिर्फ तीन तलाक़ तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि मुस्लिम महिलाओं के दूसरे अधिकारों की भी हिफाज़त की जाए जिससे वो आज तक वंचित हैं।

वरिष्ठ अधिवक्ता मुनीर शहजाद खान ने कहा कि भले ही मॉडल निकाहनामा को क़ानूनी मान्यता ना हो लेकिन वह समाजी लिहाज़ से अच्छा है। इसमें एक साथ तीन तलाक़ नहीं देने की बात कहने वाला मर्द ईमानदार होना चाहिए और उसको अपनी समाजी हैसियत का लिहाज़ होना चाहिए अन्यथा ऐसे तो कानून हर रोज टूटता है।

अन्य मुस्लिम महिला फरज़ाना शाहिद ने कहा कि मॉडल निकाहनामा को बहुत पहले आ जाना चाहिए था। अगर ऐसा होता तो जो आज हायतौबा मची है उसकी नौबत ही नहीं आती।