‘वो मुसलमान जिन पर था शिवाजी को भरोसा’

कुछ सालों पहले महाराष्ट्र के मिराज-सांगली इलाके में एक गणपति उत्सव के दौरान तोरण पर शिवाजी को अफ़ज़ल ख़ान का क़त्ल करते हुए दिखाया गया था। इसके बाद इसी मुद्दे को लेकर उस इलाके में सांप्रदायिक हिंसा हुई, लोगों में यह धारणा बनने लगी कि हिंदू शिवाजी मुस्लिम अफ़ज़ल ख़ान को मार रहे हैं।

इस तरह के प्रचार का इस्तेमाल मुसलमानों को उकसाने और हिंसा भड़काने के लिए किया जाता है। धुर हिंदू दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने प्रतापगढ़ में अफ़ज़ल ख़ान का मकबरा तोड़ने की कोशिश की।

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यह उपद्रव तब जाकर रुका जब लोगों को यह बताया गया कि इस मकबरे को खुद शिवाजी ने खड़ा किया था। शिवाजी वो राजा थे जो सभी धर्मों का सम्मान करते थे। एक दिलचस्प कहानी है, शिवाजी के दादा मालोजीराव भोसले ने सूफी संत शाह शरीफ के सम्मान में अपने बेटों को नाम शाहजी और शरीफजी रखा था।

शिवाजी ने स्थानीय हिंदू राजाओं के साथ ही औरंगजेब के ख़िलाफ़ भी लड़ाइयां लड़ीं। दिलचस्प बात ये है कि औरंगजेब के साथ युद्ध में, औरंगजेब की सेना का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति राजा जयसिंह थे, जो एक राजपूत थे, और औरंगजेब के राजदरबार में उच्च अधिकारी थे। शिवाजी ने अपने प्रशासन में मानवीय नीतियां अपनाई थीं, जो किसी धर्म पर आधारित नहीं थी।

उनकी थलसेना और जलसेना में सैनिकों की नियुक्ति के लिए धर्म कोई मानदंड नहीं था और इनमें एक तिहाई मुस्लिम सैनिक थे। उनकी नौसेना की कमान सिद्दी संबल के हाथों में थी और सिद्दी मुसलमान उनके नौसेना में बड़ी संख्या में थे। जब शिवाजी आगरा के किले में नजरबंद थे तब कैद से निकल भागने में जिन दो व्यमक्तियों ने उनकी मदद की थी उनमें से एक मुसलमान थे, उनका नाम मदारी मेहतर था।

शिवाजी ने अपनी राजधानी रायगढ़ में अपने महल के ठीक सामने मुस्लिम श्रद्धालुओं के लिए एक मस्जिद का ठीक उसी तरह निर्माण करवाया था जिस तरह से उन्होंने अपनी पूजा के लिए जगदीश्वर मंदिर बनवाया था।

वसई के नवाब की बहू की कहानी

शिवाजी ने अपने सैनिक कमांडरों को ये स्पष्टा निर्देश दे रखा था कि किसी भी सैन्य अभियान के दौरान मुसलमान महिलाओं और बच्चोंट के साथ कोई दुर्व्य वहार न किया जाए। मस्जिदों और दरगाहों को समुचित सुरक्षा दी गई थी।

उनका यह भी आदेश था कि जब कभी किसी को कुरान की कॉपी मिले तो उसे पूरा सम्मान दिया जाए और मुसलमानों को सौंप दिया जाए। जब उनके सैनिक लूट के सामान के साथ नवाब की बहू को भी लेकर आए थे तो शिवाजी ने उस महिला से पहले तो माफ़ी मांगी और फिर अपने सैनिकों की सुरक्षा में उसे उनके महल तक वापस पहुंचवाया था।

लोग यह भूल जाते हैं कि अफ़ज़ल ख़ान के सलाहकार भी एक हिंदू, कृष्णमूर्ति भास्कर कुलकर्णी, थे जिन्होंने शिवाजी के ख़िलाफ़ अपनी तलवार उठाई थी।

ब्रिटिशों ने जब इतिहास को लिखा तो उन्होंने राजाओं के बीच सत्ता संघर्ष को धार्मिक घुमाव दे दिया। शिवाजी मुस्लिम विरोधी थे यह धारणा राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए बनाई गई, कई किताबें प्रकाशित की गई जिनमें इसी नज़रिये से इस मसले को लिखा गया।

इतिहासकार सरदेसाई ने न्यू हिस्ट्री ऑफ़ मराठा में लिखते हैं, ‘शिवाजी को किसी भी प्रकार से मुसलमानों के प्रति नफ़रत नहीं थी, ना तो एक संप्रदाय के रूप में और ना ही एक धर्म के रूप में। ये सब शिवाजी ने सांप्रयादिक सौहार्द के लिए जो अपनाया उसे दर्शाता है, और उनका प्राथमिक लक्ष्य अपने राज्य की सीमा को अधिक से अधिक क्षेत्र तक स्थापित करना था। उन्हें मुस्लिम विरोधी या इस्लाम विरोधी दर्शाया जाना सच्चाई का उपहास करना है।

(साभार- बीबीसी)