VIDEO: यहाँ जानिए ज़कात का मक़सद, ज़कात किसको देनी चाहिए और कहाँ देनी चाहिए!

इस्लाम ने अमीर लोगों की आमदनी में एक हिस्से पर गरीब, यतीम और समाज के सबसे निचले पायदान पर जिंदगी गुजर-बसर करनेवालों का हक तय कर दिया है. इसी को देखते हुए इस्लाम में दान के कई तरीके बताएं हैं. जकात, सदका और फितरा इसी चैरिटी सिस्टम का हिस्सा है.

जकात का मतलब होता है पाक या शुद्ध करना. जकात की अहमियत इस बात से भी समझी जा सकती है कि समाज में आर्थिक बराबरी के मकसद से कुरान में करीब 32 जगहों पर नमाज के साथ जकात का जिक्र भी आया है. साथ ही ये इस्लाम के पांच पिलर में से एक है.

ऐसे तो सदका हर उस नेक काम को कहते हैं जो एक मुसलमान दूसरे के लिए करता है. कहते हैं मुस्कुरा कर बात करना, किसी भटके हुए को रास्ता दिखाना भी सदका है. इस्लाम में सदका के लिए कोई खास फिक्स्ड रकम नहीं है. सदका के तौर पर आप किसी को दो रुपये भी दे सकते हैं और चाहें तो 2 करोड़ भी दान कर सकते हैं. ये रमजान के महीने में ही देना जरूरी नहीं है. ये पूरे साल जब चाहें दे सकते हैं.

अब ऐसे में सवाल उठता है कि इतने पैसे होने के बाद भी भारत में करीब 31% मुस्लमान गरीबी रेखा के नीचे क्यों हैं? क्यों मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक हालत बदल नहीं रही है?

ज़कात कौन देना है 

ज़कात हर मुसलमान का फ़र्ज़ है।

  • बालिग़ हो
  • कमाने के लायक़ हो

ज़कात किसको दे सकते हैं 

ज़कात इनको दे सकते हैं

  • रिश्तेदार
  • दोस्त
  • ग़रीब और मजबूर
  • मिसकीन और फ़क़ीर
  • यतीम
  • धर्म के लिए काम करने वाले

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