परवीन शाकिर

परवीन शाकिर (1952 -1994) शायरी में एक ऐसा नाम है, जिसे उर्दू कभी भूल नहीं सकती।
ख़ुशबू, सद बर्ग, ख़ुद कलामी, इनकार और माहे तमाम उनके मजमुए कलाम मशहूर हुए। उनकी एक ग़ज़ल और कुछ नज्में यहाँ पेश हैं।

ग़ज़ल
खुली आँखों में सपना झांकता है

अज़ीज़ क़ैसी (1931-1992)

हैदराबाद से फिल्मी दुनिया में नाम कमाने वालों में अज़ीज़ क़ैसी एक बड़ा नाम था। दयावान, कुँवारा बाप और अंकुर जैसी मशहूर फिल्में उन्होंने लिखीं। शायरी में उनकी ग़ज़लें और नज़्में मशहूर रहीं। जगजीत सिंह की आवाज़ में उनकी एक मशहूर ग

एक पत्थर को जान बना बैठे

एक पत्थर को , जान बना बैठे
अपना सब कुछ तुझे बना बैठे

मेरी हर सांस में, रूह में तुम् हो
तुम को अपना जहां बना बैठे

किस कदर मेरा दिल ये प्यासा है
अपना ज़मज़म तुम्हे बना बैठे

रब से मांगा है तुम को मैने सदा
सारी दुनिया को हम भुला बैठे

शाज़ तमकनत

शाज़ तमकनत साहब(31 जनवरी 1933- 18 अगस्त 1985) का नाम उर्दू के उन शयरों में शामिल है, जिन्होंने शायरी को ओढना बिछोना बनाया। उनके मजमुए कलाम ‘तरशीदा’ और ‘बयाज़े शाम’ मशहूर हुए। कई गुलूकारों ने उनकी ग़ज़लों को अपनी आवाज़ में दुनिया भर में पहुँचाया।

अहमद फ़राज़

अहमद फ़राज़ (1931-2008) की शायरी के बारे में कहा जाता रहा है कि ये निकली तो फ़राज़ की कलम से है, लेकिन लोगों के दिलों में उतर कर उनकी अमानत बन गई है. उनकी एक मशहूर और सब से बड़ी ग़ज़ल यहाँ पेश है।

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं