ख़ौफ़-ए-ख़ुदा में रोना

हज़रत सलीम बिन मंसूर रह०फ़रमाते हैं कि मैंने ख़ाब में अपने मरहूम वालिद हज़रत मंसूर बिन अम्मार रह० को देखा और पूछा अब्बा जान! आप के साथ अल्लाह तआला ने कैसा सुलूक फ़रमाया?

क़यामत बरहक़ है

मैं क़सम खाता हूँ रोज़ ए क़यामत की और मैं क़सम खाता हूँ नफ़्स-ए-लव्वामा की (कि हश्र ज़रूर होगा)। क्या इंसान ये ख़्याल करता है कि हम हरगिज़ जमा ना करेंगे उसकी हडीयों को। क्यों नहीं हम इस पर भी क़ादिर हैं कि हम उसकी उंगलीयों की पुर पुर दरुस्त क

फुक़रा की फ़ज़ीलत

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ी० से रिवायत है कि रसूल करीम स०अ०व० ने फ़रमाया फुक़रा, मुहाजिरीन क़यामत के दिन मालदारों से चालीस साल पहले जन्नत में दाख़िल होंगे। (मुस्लिम)

सैय्यदना उमर फ़ारूक़ ( रज़ी०) के दौर में रिकार्ड रखने की इब्तेदा

हज़रत अबूहुरैरा रज़ी० फ़रमाते हैं कि में बहरैन से सैय्यदना उमर फ़ारूक़ रज़ी० की ख़िदमत में पाँच लाख दिरहम लेकर हाज़िर हुआ। उन्होंने मुझ से वहां के लोगों के हालात दरयाफ्त फ़रमाए। मैंने सारे हालात गोश गुज़ार कर दिए। फिर उन्होंने पूछा क्या

सह गौना (एक साथ तीन काम) मेहनत की ज़हमत न करें

(ऐ हबीब!) आप हरकत ना दें अपनी ज़बान को इसके साथ ताकि आप जल्दी याद कर लें उस को। हमारे ज़िम्मा है इसको सीना मुबारक में जमा करना और उसको पढ़ाना। (सूरत अल क़यामा १६,१७)

ग़रीब मुसलमानों को जन्नत की बशारत

हज़रत ओसामा बिन जै़द रज़ी० से रिवायत है कि (एक दिन) रसूल करीम सअ०व० फ़रमाने लगे कि में (मेराज़ की रात, या ख़ाब में या हालत कश्फ़ में) जन्नत के दरवाज़े पर खड़ा था (मैंने देखा कि) जो लोग जन्नत में दाख़िल हुए हैं, इन में ज़्यादा तादाद ग़रीबों की है औ

गुनाहों से बचने का नुस्ख़ा

हज़रत ज़ुन्नून मिस्री रह० फ़रमाते हैं कि मैंने बस्रा के बाज़ार में लोगों का एक हुजूम देखा तो मैं भी हुजूम में शामिल हो गया। फिर आगे बढ़ कर देखा तो एक पुरोक़ार शख़्स बैठा हुआ लोगों को मुख़्तलिफ़ अमराज़ के नुस्खे़ लिख कर दे रहा है। हज़रत ज़ु

ज़हद की हक़ीक़त

हज़रत सुफ़ियान सूरी रह० से मनक़ूल है कि उन्होंने फ़रमाया दुनिया में ज़हद इसका नाम नहीं है कि मोटे छोटे और सख़्त कपड़े पहन लिए जाएं और रूखा सूखा और बदमज़ा खाना खाया जाये, बल्कि दुनिया से ज़हद इख्तेयार करना हक़ीक़त में आरजुओं और उम्मीदों की क

सैय्यदना उमर फ़ारूक़ (रज़ि०) ने मेहनत से कमाने की तरग़ीब दी

सैय्यदना फ़ारूक़ आज़म रज़ी० लोगों को मेहनत मज़दूरी करने और हुसूल रिज़्क के लिए तग-ओ-दो करने की तरग़ीब देते थे। मुहम्मद बिन सीरीन रह० अपने वालिद से रिवायत करते हैं कि मग़रिब के इलाक़े में में सैय्यदना फ़ारूक़ आज़म रज़ी० के साथ था।

अमानत का वापस करना

कुर्आन में अल्लाह तआला फर्माता है: ”अल्लाह तआला तुम को हुक्म देता है के जिन की अमानतें उनको लौटा दो 1
(सूर‍ ‍ ए ‍ निसा:57)
फायदा: अगर किसी ने किसी शख्स के पास कोई चीज अमानत के तौर पर रखी हो, तो मुतालबे के वक्त उस का अदा करना जरुरी है 1

सैय्यदना उमर फ़ारूक़ ( रज़ी०) के दौर में ज़ख़ीराअंदोजी की मुमानअत

अमीरुल मोमिनीन सैय्यदना उमर फ़ारूक़ रज़ी० हर उस माल का ज़ख़ीरा करने से मना फ़रमाते थे, जिसकी बाज़ार में मांग होती। हज़रत इमाम मालिक रह० माल असबाब में रिवायत करते हैं कि सैय्यदना उम्र फ़ारूक़ रज़ी० ने फ़रमाया हमारे बाज़ारों में ज़ख़ीराअंदो

शब-ओ-रोज़ की हिक्मत

और हम ने बना दिया है तुम्हारी नींद को बाइस आराम। नीज़ हमने बना दिया रात को पर्दापोश। और हम ने दिन को रोज़ी कमाने के लिए बनाया। (सूरतुन नबा-।९ ता ११)

ज़ात वाहिद पर एतेमाद क़वी हो

हज़रत अबूहुरैरा रज़ी० से रिवायत है कि रसूल करीम स०अ०व० ने फ़रमाया क़वी मुसलमान ज़ईफ़ मुसलमान से बेहतर और ख़ुदा के नज़दीक ज़्यादा पसंदीदा है (यानी जो मुसलमान ख़ुदा की ज़ात-ओ-सिफ़ात के तईं ईमान‍ ओ‍ एतेमाद में मज़बूत होता है, इस पर पुख़्तगी के सा

यासीन शरीफ़ की तिलावत से मक़सद में कामयाबी

हर अमल से पहले अव्वल-ओ-आख़िर तीन बार दरूद शरीफ़ लाज़िमी है। नमाज़ों की पाबंदी सख़्ती से कीजिए। किसी भी सूरत में किसी का दिल मत दुखाईए। टी वी हराम है, हमेशा इससे दूर रहिए।

अल्लाह की ख़ुशनूदी के तलबगार

पस मैंने ख़बरदार कर दिया है तुम्हें एक भड़कती आग से। इसमें नहीं जलेगा मगर वो इंतिहाई बदबख़्त, जिसने (नबी करीम स०अ०व०) को झुठलाया और (आप से) रुगिरदानी की। और दूर रखा जाएगा इससे वो निहायत परहेज़गार जो देता है अपना माल अपने (दिल) को पाक करने

शुक्र मोमिन का ख़ासा

हज़रत सुहैब रज़ी० से रिवायत है कि रसूलुल्लाह स०अ०व० ने फ़रमाया मोमिन की भी अजीब शान है कि उसकी हर हालत इसके लिए ख़ैर-ओ-भलाई का बाइस है और ये बात सिर्फ़ मोमिन के लिए मख़सूस है, कोई और इसके वस्फ़ में शरीक नहीं है। अगर उसको (रिज़्क, फ़राख़ी-ओ-वुस

हजरत साअद के हक दुआ

आप स0 अ0 व0 ने हजरत सआद रजी0 के हक में दुआ फरमाई : ऐ अल्लाह: सअद की दुआ कबूल फर्मा (इस का असर
यह हुआ के हजरत सअद रजी0 जो दुआ माँगते थे वह कबूल हो जाती थी