दख़ूल-ए-जन्नत का सबब हुस्न-ए-अमल है

और हज़रत अबदुल्लाह इब्न शद्दाद कहते हैं, बनी उज़रा के क़बीला के कुछ लोग कि जिनकी तादाद तीन थी, नबी करीम स०अ०व० की ख़िदमत में हाज़िर हुए और इस्लाम कुबूल किया (और फिर वो लोग हुसूल दीन की ख़ातिर और ख़ुदा की राह में रियाज़त-ओ-मुजाहिदा की नीयत स

क़ुरआन हक़ायक़ का मजमूआ है

बिलाशुबा ये क़ुरआन क़ौल ए फ़ैसल है और ये हंसी मज़ाक़ नहीं है । ये लोग तरह तरह की तदबीरें कर रहे हैं और मैं भी तदबीर फ़रमा रहा हूँ। पस आप कुफ़्फ़ार को (थोड़ी सी) मोहलत और दे दें कुछ उन्हें कुछ ना कहें (९ ता १२)

आतिश-ए-दोज़ख़ की हरारत

हज़रत अबूहुरैरा रज़ी०से रिवायत है कि रसूल करीम स०अ०व०ने फ़रमाया तुम्हारी (दुनिया की) आग दोज़ख़ की आग के सत्तर (७०) हिस्सों में से एक हिस्सा है। अर्ज़ किया गया या रसूल अल्लाह!

कयामत को पेशे नज़र रखें

(याद करो) जब सूरज लपेट दिया जाएगा। और जब सितारे बिखर जाऐंगे। और जब पहाड़ों को उखाड़ दिया जाएगा। और जब दस माह की हामिला ऊंटनियां मारी मारी फिरेंगी। (सूरतुल तकवीर।१ता४)

जहन्नुम बहुत बुरा ठिकाना है

जब वो इसमें झोंके जाएंगे तो उसकी ज़ोरदार गरज सुनेंगे और वो जोश मार रही होगी। (ऐसा मालूम होता है) गोया मारे ग़ज़ब के फटना चाहती है। जब भी इसमें कोई जत्था झोंका जाएगा तो उनसे दोज़ख़ के मुहाफ़िज़ पूछेंगे क्या तुम्हारे पास कोई डराने वाला नहीं

ज़हूर ज़ात रसूले अक़दस, इंसानियत पर एहसान अज़ीम

करीमनगर,28 जनवरी: हमें जब कोई मख़सूस किस्म की नेअमत ख़ुशी मिल पाती है तो हम अपने अपने तरीक़े से इस नेअमत के मिल जाने का जश्न मनाते हैं। इसी तरह हमारी कोई नेअमत छिन जाती है तो हमें अफ़सोस और मलाल होता है। इसी तरह नेअमत हासिल होती है तो हमें

मौत और ज़िंदगी आज़माईश हैं

जिसने पैदा किया है मौत और ज़िंदगी को, ताकि वो तुम्हें आज़माए कि तुम में से अमल के लिहाज़ से कौन बेहतर है। और वही दाइमी इज़्ज़त वाला, बहुत बख़्शने वाला है। (सूरत अल‍ मुल्क।२)

बच्चों पर शफ़क्क़त

हज़रत ख़ालिद बिन सईद की बेटी हज़रत उम्मे ख़ालिद कहती हैं कि (एक दिन) हुज़ूर नबी करीम स०अ०व० के पास (हदिया में) कुछ कपड़े आए, जिनमें एक छोटी सी कमली भी थी। हुज़ूर अकरम स०अ०व० ने फ़रमाया कि उम्मे ख़ालिद को मेरे पास लाओ। चुनांचे हज़रत उम्मे ख़ालिद क

अहद नबवी और अहद सहाबा में ख़वातीन की समाजी आज़ादी

इस्लाम ने औरत को जो हुक़ूक़ दिए हैं, उसकी मिसाल दूसरे मज़ाहिब में नहीं मिलती। इससे क़बल तारीख़ के पूरे दौर में मुख़्तलिफ़ मज़ाहिब-ओ-नज़रियात के हामिलीन की तरफ़ से औरत के साथ ज़ुल्म-ओ-नाइंसाफ़ी की रविष क़ायम रही। इस्लाम ने औरत के स

सय्यदना उमर फ़ारूक़ (रज़ी०) के दौर में नमाज़ का एहतिमाम

सय्यदना उमर फ़ारूक़ रज़ी० के पास अगर कई रोज़ तक इस्लामी लश्कर की ख़बर ना आती तो क़नूत नाज़िला पढ़ते थे और मुजाहिदीन की कामयाबी के लिए अल्लाह तआला के सामने आह-ओ-ज़ारी करते हुए दुआएं करते थे। जब रोमीयों से मार्का हुआ तो इस मौक़ा पर भी आप ने क़नू

बदकारी पर उकसाने वाले उमूर का ख़ातमा ज़रूरी

बसाऔक़ात इंसान किसी चीज़ को बहुत ज़्यादा पसंद करता है, जब कि वही चीज़ इसके हक़ में हद दर्जा मज़र्रत रसाँ साबित होती है, जैसे ज़िंदगी के ज़ाहिरी हुस्न-ओ-जमाल, वक़्ती फ़वाइद और दुनिया की रंगीनियां और ऐश-ओ-आराम से मुतास्सिर होकर इंसान नफ़्स परस्

बरकात‍-ए‍-नब्वी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम

हज़रत जाबिर रज़ी० ने जंग ए ख़ंदक़ के मौक़ा पर हुज़ूर अकरम स०अ०व० के शिकम अनवर पर पत्थर बंधा देखा तो घर पहुंच कर अपनी बीवी से कहने लगे क्या घर में कुछ है?

वालदैन और औलाद की ज़िम्मेदारीयां

मौजूदा दौर बड़ा ही तरक़्क़ी का दौर है। आज के ज़माने में जो सहूलतें हैं, वो पहले नहीं थीं। मौजूदा दौर में टी वी, सेलफोन और नेट ये तीनों चीज़ें बहुत ख़तरनाक हैं, उनसे नुक़्सान ज़्यादा और फ़ायदा मामूली है। ये चीज़ें नौजवान लड़कों और लड़कीयो

अल्लाह तआला और अल्लाह वालों की नसीहत

क़ुरान-ए-पाक में अल्लाह तआला का इरशाद है कि आप उनसे कहिए कि आओ मैं तुम को वो चीज़ें पढ़ कर सुनाऊं, जिनको रब ने हराम फ़रमाया है (यानी) अल्लाह तआला के साथ किसी को शरीक ना ठहराओ, माँ बाप के साथ एहसान किया करो, अपनी औलाद को क़त्ल मत किया करो, बे