हैदराबाद जो कल था- बी. पी. आर विट्ठल

सीनियर आई ए एस ओहदेदार बी पी आर विट्ठल का शुमार उन शख़्सियतों में होता है, जिन्होंने सुकूत-ए-हैदराबाद से पहले और बाद के हैदराबाद को क़रीब से देखा है। निज़ाम की हुक्मरानी के बाद हैदराबाद रियासत और बाद में आंध्रा प्रदेश में हुक्मरानी क

हैदराबाद जो कल था – मुस्तफ़ा शहाब

मुस्तफ़ा शहाब हैदराबाद बल्कि हिंदुस्तान के उन चंद अदीबों, शायरों में से एक हैं जो पिछली सदी में तर्क-ए-वतन करके यूरोप और अमरीका में जा बसे, लेकिन अपने वतन और अपनी मादरी ज़बान से अपना रिश्ता उस्तिवार रखा। वतन से उन की वाबस्तगी का ये आल

पुराने शहर में राय दही के फ़ीसद में कमी की अहम वजह….

हैदराबाद के दो लोक सभा और 14 असेंबली हलक़ों में राय दही के कम फ़ीसद पर एक तरफ़ सियासी पार्टीयां तो दूसरी तरफ़ सियासी मुबस्सिरीन मुख़्तलिफ़ अंदाज़े क़ायम कररहे हैं।

‘नरेंद्र मोदी ख़तरनाक साबित हो सकते हैं’

मुल्क से फ़िर्कापरस्ती और बदउनवानीयों पर मुश्तमिल सियासत के ख़ातमा के लिए आम आदमी पार्टी ने एक बेहतरीन मुतबादिल पेश किया है। अब ये हिंदुस्तानी अवाम की ज़िम्मेदारी है कि वो अपने मुस्तक़बिल को बेहतर बनाएं। हमारी शिकस्त से हमें तो क

वूड इनले में इस्लामिक आर्ट

कभी-कभी कुछ लोग फ़न की बुलंदियों पर पहुंचकर भी बहुत सारे अवार्डों और तारीफ़ों के साथ अकेले पड़ जाते हैं, लेकिन कुछ फ़नकार अपनी जिन्दगी और फ़न को अपने आस-पास की दुनिया के लिए कुछ इस तरह वक़्फ़ कर देते हैं कि वो नयी नसलों के लिए एक मिसा

हैदराबाद जो कल था

हम बचपन से सुनते आए हैं कि आँखें बड़ी नेमत हैं। लेकिन इस हक़ीक़त का एहसास उस वक़्त होता है जब आँखें कमज़ोर होने लगती हैं, ऐनक लग जाती है या फिर ऑप्रेशन की नौबत आती है। ऐसे में अज़ ख़ुद मुँह से निकलता है कि आँखें बड़ी नेमत हैं और एक अच्छा माहिर

साईंस को रोज़गार से मरबूत करे हिन्दुस्तान

अमरीका के मारूफ़ इदारे नासा में हिन्दुस्तानी साइंसदाँ ज़्यादा होने की गुमराह कुन तशहीर की जाती है .हकीकत ये है कि नासा में हिन्दुस्तानी साइंसदानों की तादाद तीन फ़ीसद से ज़्यादा नहीं हैं . ये दावा डा. नरोत्तम बंसल करते हैं।

साईंस को रोज़गार से मरबूत करे हिन्दुस्तान

अमरीका के मारूफ़ इदारे नासा में हिन्दुस्तानी साइंसदाँ ज़्यादा होने की गुमराह कुन तशहीर की जाती है .हकीकत ये है कि नासा में हिन्दुस्तानी साइंसदानों की तादाद तीन फ़ीसद से ज़्यादा नहीं हैं . ये दावा डा. नरोत्तम दास बंसल करते हैं।

हैदराबाद जो कल था…सय्यद तुराबुल हसन

साबिक़ आई ए एस ओहदेदार तुराब उल-हसन साहब हैदराबाद के एक मशहूर-ओ-मुअज़्ज़िज़ ख़ानदान से ताल्लुक़ रखते हैं। एक ओहदेदार के तौर पर उन्होंने आंध्र प्रदेश के मुख़्तलिफ़ शोबों में नुमायां ख़िदमात अंजाम दी हैं। गुज़िशता साठ , सत्तर बरसों में बदल

हैदराबाद जो कल था

हैदराबाद की तरक़्क़ी में जिन शख़्सियतों का ख़ास रोल रहा है, उन में हुकमरानों के साथ – साथ हुक्काम के तौर पर मुख़्तलिफ़ ओहदों पर काम करने वालों की नुमायां ख़िदमात से भी इनकार नहीं किया जा सकता – चाहे वो सुकूते हैदराबाद से पहले हों या बाद म

हैदराबाद- जो कल था

कहने को हम हैदराबादी कहलाते हैं, लेकिन ये कितनी अजीब बात है कि हम ख़ुद इस हक़ीक़त से बहुत कम वाक़िफ़ हैं कि हैदराबाद की अज़मत-ए-रफ़्ता क्या थी। ये वो शहर है जो हिंदुस्तान की सब से बड़ी रियासत का सदर मुक़ाम था। यहाँ की तहज़ीब, शान-ओ-शौकत लोगो

तबलानवाज़ नजमुद्दीन जावेद को टॉप ग्रेड

फ़न में कामयाबी की मज़िलो पर आगे बढ़ने के लिए हौसला अफ़ज़ाई ज़रूरी है और जब क़ाबिल शख्त की सही हौसलाअफ़ज़ाई होती है तो इसका फ़ायदा फ़न को भी होता है और फनकार रहा को भी। नजमुद्दीन जावेद शहर के पसंदीदा तबला नवाज़ हैं, जिन्हें ऑल इंडिया रेडियो ने

सर्द रात में ..घुंघरू टूट गये

ग़ज़ल की विरासत संभालने वाले गुलुकार पंकज उधास ने सर्द रात में खुले आसमान के नीचे तारामती बारहदरी में जब सुर छेड़े तो जैसे लगा कि सर्दी का असर कम होने लगा है। हालांकि आस-पास के जंगल और नदी के किनारे से सर्द हवाएँ चलने लगी थीं, लेकिन

सियासतदां अहमक़ : सी एन आर राव

भारत रत्न एवार्ड याफ़्ता मुमताज़ साईंसदाँ सी एन आर राव ने साईंसी बिरादरी को ख़ातिरख़वाह फंड्स की अदम फ़राहमी पर नाराज़गी का इज़हार किया और बरहमी के आलम में सियासतदानों को अहमक़ क़रार दिया जो इस अहम तरीन शोबे को इंतिहाई क़लील रक़म फ़राहम क

खुद एतेमादी है बनाती है खूबसूरत और स्टाइलिश

फैशन स्टाइलिस्ट और कास्ट्यूम डिज़ाइनर से अदीब बनी पेरनिया कुरैशी का मानना है कि खूबसूरती को अपने भीतर तलाश करना और अपने खूबसूरत होने के बारे में खुद एतेमादी पैदा करना ही किसी शख्स को स्टाइलिश बना सकता है। सिर्फ दूसरों को कॉपी कर

हिन्दुस्तान में दिखाए जाएँ पाकिस्तानी चैनल-असमा शीरा़जी

असमा शीराजी: पाकिस्तानी अवाम हमेशा जम्हूरियत पसंद रहे हैं और जब कभी भी मुल्क में आमिरीयत-ओ-फ़ौजी हुक्मरानी का दौर आया उस वक़्त अवाम ने मुत्तहदा तौर पर मुल्क में जम्हूरियत की बहाली के लिए जद्द-ओ-जहद की।