अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ मुक़दमों में दोहरा मापदंड अपनाया जाता है: जस्टिस ए.पी. शाह

दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए.पी. शाह ने मुकदमों के दौरान बहुसंख्यकों और बहुसंख्कों के बीच अपनाएं जाने वाले अलग-अलग मापदंडों प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अल्संख्यकों को जानबूझकर मुक़दमों में फंसाया जाता है और आतंकवाद निरोधक एजेंसियां ग़लत व्यवहार करती हैं।

जस्टिस शाह ने मालेगांव विस्फोट का उल्लेख करते हुए कहा कि इस घटना को अंजाम देने वाले उन बहुसंख्यक समुदाय का क्या हुआ जिनका नाम इस मामले में सामने आया था। उन्होंने यह भी कहा कि मुझे इस बात पर गंभीर संदेह है कि सरकार झूठे आरोप लगाकर फंसाए गए लोगों को मुआवजा देगी या उनको इन अधिकारियों के कार्रवाई करेगी जो इसके लिए दोषी है।

जस्टिस शाह ने बेकसूरों पर एक पीपुल्स ट्रिब्यूनल रिपोर्ट का शुभारंभ के अवसर पर कहा कि 60 साल पहले इसके लिए आईसीसीपीआर (इंटरनेशनल कोवेनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स) पर हस्ताक्षर हुए थे। पर किसी भी सरकार ने इस पर कोई कानून अब तक नहीं बनाया। उन्होंने कहा कि पुलिस सुधारों का क्या हुआ? सुप्रीम कोर्ट ने इस पर 20 साल पहले फैसला दिया था पर उस पर आज तक अमल नहीं किया गया।

शाह ने इस बात का उल्लेख भी किया कि न्यायाधीश कैसे बेकसूरों के साथ पक्षपातपूर्ण रवैया इख्तियार करते है या संकोच में आकर मुआवजा दिलाने का आदेश नहीं देते। उन्होंने कहा कि इस के कई उदाहरण हैं, जिसमें में आतंकवाद के आरोपों से लोगों को बरी किया गया पर उनको इसका मुवावजा नहीं दिया गया। जस्टिस शाह ने कहा कि मैं उस बेंच पूछना चाहता हूं जिसने अक्षरधाम मामले पर निर्णय दिया था। जब झुठे अभियोजन पक्ष के ख़िलाफ आपके पास सबूत है, तो आपने पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की।