असम: स्थानीय भाषा की जानकारी नहीं तो नहीं मिलेगी नौकरी?

उग्रवाद के लिए कुख्यात रहे पूर्वोत्तर राज्य असम में अब भाषा विवाद सिर उठा रहा है. हाल में भाषाई जनसंख्या के आंकड़े सामने आने के बाद तेज हुआ विवाद.

आंकड़े बताते हैं कि असम में असमिया बोलने वालों की लगातार तादाद घट रही है. ऐसे में, राज्य के सबसे बड़े साहित्यिक संगठन असम साहित्य सभा ने कहा है कि असम में नौकरी करने वालों के लिए असमिया या किसी स्थानीय भाषा की जानकारी अनिवार्य है.

शिक्षा | 08.01.2018

राज्य में 28 जनजातियां रहती हैं. साहित्य सभा पहले भी असमिया भाषा का मुद्दा उठाती रही है. लेकिन इस बार उसने राज्य सरकार से राजभाषा अधिनियम को कड़ाई से इसे लागू करने की मांग की है.

असम की कुल आबादी में असमिया बोलने वालों की तादाद 50 फीसदी से भी कम हो गई है. भाषाओं पर वर्ष 2011 की जनगणना के हाल में प्रकाशित आंकड़ों में कहा गया है कि असम में वर्ष 2001 में असमिया बोलने वालों की तादाद कुल आबादी का 48.80 फीसदी थी जो वर्ष 2011 की जनगणना में घट कर 48.38 फीसदी रह गई है.

दूसरी ओर, इसी अवधि के दौरान बांग्लाभाषियों की तादाद 27.54 फीसदी से बढ़ कर 28.91 फीसदी हो गई है. इससे पड़ोसी बांग्लादेश से घुसपैठ के विभिन्न संगठनों के आरोपों को बल मिला है. वर्ष 1991 की जनगणना में असमिया और बांग्ला बोलने वालों की तादाद क्रमशः 57.81 और 21.67 फीसदी थी. इन आंकड़ों के तुलनात्मक अध्ययन से समस्या की गंभीरता का पता चलता है.

इन्हीं आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए अब अखिल असम छात्र संघ (आसू) असम गण परिषद (अगप) और असम साहित्य सभा समेत कई अन्य क्षेत्रीय संगठनों ने राजभाषा अधिनियम, 1960 के प्रावधानों को कड़ाई से लागू करने की मांग उठाई है.

इन संगठनों का कहना है कि असमिया लोगों की तादाद में गिरावट से साफ है कि बांग्लादेश से लगातार बढ़ती घुसपैठ की वजह से इस भाषा, स्थानीय लोगों और उनकी संस्कृति खतरे में है.

साहित्य सभा के मुख्य सचिव पद्म हजारिका कहते हैं, “असमिया भाषा और संस्कृति खतरे में है. सरकार को राजभाषा लागू करने के लिए गठित निदेशालय को पूरी तरह चालू करना चाहिए था. लेकिन सरकार ने उल्टे उसे बंद कर दिया है. यह गहरी चिंता का विषय है.”

भाषा और संस्कृति को लेकर बढ़ती चिंता के बीच सबसे बड़े साहित्यिक संगठन असम साहित्य सभा ने कहा है कि राज्य में काम करने के इच्छुक लोगों के लिए असमिया या किसी स्थानीय भाषा की जानकारी होना अनिवार्य है.

सभा के अध्यक्ष परमानंद राजबंशी ने चेतावनी दी है कि अगर किसी को स्थानीय भाषा नहीं आती तो उसे निजी या सार्वजनिक क्षेत्र में काम नहीं करने दिया जाएगा.

वह कहते हैं, “चतुर्थ श्रेणी से लेकर शीर्ष स्तर तक राज्य में निजी या सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को लिए असमिया या कोई अन्य स्थानीय भाषा जानना जरूरी है. राज्य में 28 जनजातियां रहती हैं.”

राजबंशी कहते हैं, “असम के स्थानीय लोग फिलहाल संकट के दौर से गुजर रहे हैं. उनकी पहचान और भाषा खतरे में है. असम में असमिया बोलने वालों की तादाद में लगातार गिरावट गहरी चिंता का विषय है.”