असम NRC विवाद: बिखर जायेंगे लाखों परिवार, घर के रहेंगे न घाट के!

एनआरसी में 40 लाख लोगों के नाम नहीं होने की वजह से राज्य के कई अल्पसंख्यक परिवारों के बिखरने का खतरा पैदा हो गया है। मिसाल के तौर पर सिलचर के करीमगंज इलाके की रहने वाली परवीन खातून और उनकी पुत्रियों के नाम तो इस सूची में हैं लेकिन उनके 70 साल के पति मोहम्मद हफीज का नाम इसमें नहीं हैं। इससे उनके सामने भारी असमंजस की हालत पैदा हो गई है।

वह सवाल करती हैं, “अब क्या होगा? कहीं मेरे पति को बांग्लादेशी घोषित कर जेल में तो नहीं डाल दिया जाएगा? या फिर उनको बांग्लादेश तो नहीं भेज दिया जाएगा?” पति ही उनके परिवार के एकमात्र कमाऊ सदस्य हैं।

परवीन जैसे लाखों परिवारों के सामने यही खतरा मंडराने लगा है. सूची में नाम नहीं होने के बाद पुलिस की धर-पकड़ के डर से कई लोग अपने घर छोड़ कर फरार हो गए हैं।

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल के भरोसे के बावजूद लोगों को इस बात का भरोसा नहीं हो रहा है कि भविष्य में उनके साथ कैसा सलूक किया जाएगा।

दोनों नेता हालांकि बार-बार कहते रहे हैं कि जिनके नाम सूची में नहीं होंगे उनको तत्काल न तो जेल में डाला जाएगा और न ही बांग्लादेश भेजा जाएगा।

एनआरसी के संयोजक प्रतीक हाजेला ने भी इसी बात को दोहराया। उन्होंने कहा कि जिन लोगों के नाम इस सूची में शामिल नहीं हैं, वे एक अगस्त से 28 सितंबर के बीच अपने दावे और आपत्तियां जमा कर सकते हैं।

28 सितंबर के बाद उन पर विचार किया जाएगा। हाजेला के मुताबिक, संबंधित लोगों को यह भी बता दिया जाएगा कि आखिर उनका दावा क्यों नहीं माना गया है। उनका कहना है कि तमाम दावों को निपटाने के बाद ही अंतिम सूची जारी की जाएगी।

एनआरसी का अंतिम मसौदा जारी होने के बाद पैदा हालात पर विचार करने के लिए मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने सोमवार को गुवाहाटी में एक सर्वदलीय बैठक की।

इस बैठक में तमाम दलों ने लोगों से शांति और सद्भाव बनाए रखने की अपील की। इसमें कहा गया कि फिलहाल 40 लाख लोगों में किसी को न तो जेल में डाला जाएगा और न ही बांग्लादेश भेजा जाएगा।

मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल कहते हैं, “किसी भी व्यक्ति या संगठन को इस मुद्दे पर भड़काऊ बयान देने से बचना चाहिए। इससे परिस्थिति और उलझ सकती है। ” मुख्यमंत्री ने कहा कि एनआरसी की कवायद असम समझौते के प्रावधानों को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उसकी देख-रेख में चलाई गई है। इससे आतंकित होने की जरूरत नहीं है।

लेकिन कई संगठनों ने इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश करार दिया है। एक अल्पसंख्यक संगठन के नेता शेख अब्दुल कहते हैं, “इतने लंबे समय से असम में रहने वाले 40 लाख से ज्यादा लोगों को सरकार ने एनआरसी के नाम पर अवैध आप्रवासी करार दे दिया। इससे उनका भविष्य खतरे में पड़ गया है. यह साजिश नहीं तो क्या है?”

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि एनआरसी का मसौदा प्रकाशित होने के बाद अब असम के हालात से निपटना मुख्यमंत्री सोनोवाल और केंद्र में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार के लिए एक कड़ी चुनौती बन सकता है।