उर्दू में आम लोगों की घटती दिलचस्पी अच्छी अलामत नहीं

जेडी वीमेंस कॉलेज में जुमेरात को यूजीसी ने नेशनल सेमिनार को स्पॉन्सर किया। सेमिनार का मौजू था “उर्दू फिक्शन के तरक़्क़ी में ख्वातीन लेखिकाओं की शिराकत”। जेडी वीमेंस कॉलेज और टीपीएस कॉलेज के मुश्तरका कोशिश से इन दो रोजा नेशनल सेमिनार मुनक्कीद किया गया है। सेमिनार में मखसुस मेहमान उषा किरण खान ने कहा है कि लिखने में भी ख्वातीन और मर्द का तक़सीम किया गया है, ताकि लिखने में कुछ खास जताया जा सके, लेकिन मुसन्निफ कोई ख्वातीन हो या मर्द लिखे हुए लफ्जों में कोई फर्क तो नहीं होता। डॉ. असलम आजाद ने कहा कि जम्मू और कश्मीर के बाद सबसे ज्यादा अहमियत बिहार में दिया जाता है।

रियासत हुकूमत ने 27 हजार उर्दू असातेज़ा बहाल करने का फैसला लिया है, जो उर्दू के लिए अच्छी बात है। हमे खुद ही उर्दू को बचाना होगा, अपने बच्चों को उर्दू की तालीम देनी होगी। प्रो नंदजी कुमार ने कहा कि अदबी ज़िंदगी के तजुर्बात पर मब्नी होती है। नंदजी कुमार ने कहा कि भारत में उर्दू फिक्शन, हिंदी फिक्शन वगैरह की तारीख में ख्वातीन का बहुत बड़ा रोल है। सेमिनार में मेहमाने खुसूसी पद्मश्री जिलानी बानो थी। प्रो बबन सिंह, टीपीएस प्रिन्सिपल और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से प्रो अलि अहमद फातमी मौजूद थे। कॉलेज की डॉ अफसाना खातून और टीपीएस कॉलेज से उर्दू एचओडी डॉ अबू बकर रिजवी ने सेमिनार का इंकाद किया है।