नई दिल्ली : बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने शनिवार को सीआईआई यंग इंडिया की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि कुछ खराब हादसे भारत को असहिष्णु नहीं बना देती है और उनमें शामिल लोगों को अधिक समावेशी होने की शिक्षा दी जानी चाहिए। कार्यक्रम में पूर्व आईपीएस अधिकारी किरन बेदी, ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी आदि ने भी हिस्सा लिया।
नसरीन ने कहा कि मीडिया हिन्दू कट्टरपंथियों के लिए आलोचनात्मक है, लेकिन उनके मुसलमान समकक्षों द्वारा किए जाने वाले कत्य सामने नहीं आते। उन्होंने कहा कि बुद्धिजीवी, पत्रकार और लेखक हमेशा हिन्दू कट्टरपंथियों की आलोचना करते हैं, लेकिन वे मुसलमान कट्टरपंथियों की आलोचना नहीं करते। हम दादरी के बारे में बात करते हैं, लेकिन मालदा के बारे में नहीं।उन्होंने कहा कि मैंने यहां रहने का फैसला किया क्योंकि मुझे भारत से प्यार है। मुझे बाहरी जैसा महसूस नहीं होता। मैं भारत की एक भाषा बोलती हूं और मुझे भारतीय फूलों के नाम भी पता हैं।
उन्होंने कहा कि झारखंड में हाल ही में भीड़ द्वारा दो मवेशी व्यापारियों की हत्या कर उन्हें पेड़ से लटकाने की घटना, पिछले वर्ष दादरी में भीड़ द्वारा की गयी हत्या, तर्कवादी गोविन्द पानसरे की हत्या, नरेन्द्र दाभोलकर और एम एम कलबुर्गी की हत्या की लेखिका ने निंदा की। तस्लीमा ने कहा कि यह असहिष्णुता नहीं है, गोमांस खाने या अलग विचार रखने को लेकर लोगों की हत्या करना भयानक अपराध है। लेकिन कुछ खराब हादसों की वजह से, मैं भारत के 1.24 अरब लोगों को असहिष्णु नहीं कह सकती। हर जगह कुछ लोग असहिष्णु होते हैं। लेखिका ने कहा कि यह बहुत असामान्य नहीं है कि कुछ लोग असहिष्णु हैं, लेकिन उन लोगों को शिक्षित किया जाना चाहिए। हमें उन्हें असहिष्णु नहीं होने की शिक्षा देनी चाहिए। अच्छे कानून हैं और उन्हें सजा दी जा सकती है।
हिंदुस्तान के अनुसार 1994 में लिखे अपने उपन्यास के कारण अपने देश में कट्टरपंथियों का विरोध झेलने के बाद से स्वनिर्वसन में रह रहीं 53 वर्षीय बांग्लादेशी लेखिका ने कहा कि वह भारत को असहिष्णु नहीं कहना चाहतीं क्योंकि भारत के कानून और संविधान सहिष्णु हैं।