क्या CIA ने मुहम्मद बिन सलमान को हटाने का फ़ैसला कर लिया है?

वर्तमान शताब्दी की बड़ी आपराधिक घटना अर्थात सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशुक़जी की इस्तांबूल में सऊदी वाणिज्य दूतावास के भीतर हत्या ने केवल मुख्य अभियुक्त मुहम्मद बिन सलमान को नुक़सान नहीं पहुंचाया बल्कि मध्यपूर्व के संबंध में अमरीकी स्ट्रैटेजिक के मूल स्तंभों को हिलाकर रख दिया है।

इसके निशाने पर मुख्य रूप से डील आफ़ सेंचुरी आई है जिसका संबंध फ़िलिस्तीन के मुद्दे से है इसके अलावा एक और मुद्दा ईरान पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों का है और इसी प्रकार तेल की क़ीमतों का मुद्दा भी इसके निशाने पर है।

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प और उनके दामाद व सलाहकार जेयर्ड कुशनर ने सबसे बड़ी ग़लती यह की कि अपनी पूरी मध्यपूर्व रणनीति के लिए मुहम्मद बिन सलमान को धुरी के रूप में प्रयोग किया। अतः जैसे जैसे फंदा बिन सलमान की गरदन के क़रीब पहुंच रहा है ट्रम्प प्रशासन की रणनीति की बुनियाद भी हिलने लगी है।

वाशिंग्टन से जो रिपोर्टें आ रही हैं और रायटर्ज़ तथा वाशिंग्टन पोस्ट जैसे संचार माध्यमों में प्रकाशित हो रही हैं उनमें साफ साफ़ बताया गया है कि अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए इस निष्कर्ष पर पहुंच चुकी है कि मुहम्मद बिन सलमान ने ही जमाल ख़ाशुक़जी की हत्या का आदेश दिया था। यह निष्कर्ष तुर्की की सरकार की ओ से दी गई रिकार्डिंग के आधार पर निकलता है। अब ट्रम्प और उनके दामाद मुशकिल में फंस गए हैं जो मुहम्मद बिन सलमान को किसी भी क़ीमत पर बचाने का प्रयास कर रहे हैं और जिन्होंने सऊदी अरब के उस सरकारी बयान को आनन फ़ानन में सही मान लिया था जिसमें कहा गया था कि जमाल ख़ाशुक़जी की हत्या के मामले में बिन सलमान का कोई हाथ नहीं है।

तुर्क अधिकारी जिन्होंने इस पूरे प्रकरण को बड़ी दक्षता के साथ डील किया और मीडिया की सुर्खियों में बाक़ी रखा तथा इसके अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया वह आगे भी बड़ी सूझबूझ से इस मामले को देख रहे हैं।

जो भी सऊदी अरब को जानता है उसे अच्छी तरह पता है कि जिस प्रकार का हत्या कांड सऊदी वाणिज्य दूतावास में हुआ है और उसके लिए जिस तरह से दो स्पेशल विमानों से 15 लोगों की टीम भेजी गई और उसमें विष व केमिकल के विशेषज्ञ और पोसमार्टम विशेषज्ञ शामिल किए गए वह मुहम्मद बिन सलमान जैसे वरिष्ठ अधिकारी के निर्देश के बग़ैर संभव नहीं है।

यदि इस प्रकार की कोई हत्या किसी लोकतांत्रिक यूरोपीय देश में हो तो वह भी शीर्ष अधिकारी के समन्वय के बग़ैर संभव नहीं है तो फिर सऊदी अरब के बारे में कोई कैसे सोच सचता है जहां सब कुछ एक ही व्यक्ति के हाथ में है और जो अपने सभी विरोधियों से इंतेक़ाम लेने पर तुला हुआ है।

हमें यह नहीं लगता कि बिन सलमान को बचाने की डोनल्ड ट्रम्प और उनके दामाद की कोशिशों का कोई फ़ायदा होगा। क्योंकि अब यह मामला कांग्रेस में जा चुका है और सीआईए भी इस मामले में वाइट हाउस से अलग स्टैंड ले चुकी है। अब सीआईए की प्रमुख जीना हासपेल को प्रतिनिधि सभा में बुलाया जाने वाला है जहां वह ब्रीफ़िंग देंगी।

हमें एसा इसलिए भी लग रहा है कि मुहम्मद बिन सलमान के क़रीबी मित्र अब धीरे धीरे उनसे दूरी बनाने लगे हैं। यह बात स्पष्ट रूप से देखी गई कि अबू ज़हबी के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन जाएद इस बार जब रियाज़ की यात्रा पर गए तो शाह सलमान और दूसरे राजकुमार उनके साथ नज़र आए मगर मुहम्मद बिन सलमान कहीं नहीं दिखाई दिए हालांकि इससे पहले वह हमेशा मुहम्मद बिन ज़ाएद के साथ दिखाई देते थे। दोनों के बीच गहरे क़रीबी संबंधों को देखते हुए यह चीज़ आश्चर्यजनक लगती है।

एक घटना यह भी हुई कि हाल में अमरीका की यात्रा से लौटे जार्डन नरेश अब्दुल्लाह द्वितीय ने डाक्टर बासिम औज़ल्ला को सऊदी अरब के लिए जार्डन के विशेष दूत के पद से हटा दिया। डाक्टर औज़ल्ला मुहम्मद बिन सलमान के क़रीबी राजनैतिक व आर्थिक सलाहकारों में गिने जाते हैं साथ ही उन्हें बिन सलमान के मित्रों में भी शुमार किया जाता है।

जार्डन के रायल कोर्ट ने औज़ल्लाह को हटाने का कोई कारण नहीं बताया लेकिन अनेक सूत्रों का कहना है कि यदि जार्डन नरेश को यह पता होता कि मुहम्मद बिन सलमान वर्तमान संकट से उबर जाएंगे और अपने पद बचा ले जाएंगे तो वह कभी भी डाक्टर औज़ल्ला को पद से न हटाते।

शताब्दी की इस बड़ी आपराधिक घटना का केस अभी कई हफ़्तों बल्कि कई महीनों तक खुला रहेगा। मुहम्मद बिन सलमान की गरदन में फंदा तंग होने लगा है। हम सऊदी विदेश मंत्री आदिल अलजुबैर के उस बयान से कदापि सहमत नहीं हैं जिसमें उन्होंने कहा कि यह भयानक अपराधिक घटना है इसका राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए। अगर यह राजनैतिक अपराध नहीं है तो फिर क्या राजनैतिक अपराध हो सकता है? क्य ख़ाशुक़जी सब्ज़ियां बेचते थे या रियाज़ के बाज़ार में उनकी मछली की दुकान थी और किसी मार पीट में उनकी जान चली गई?

अगर बिन सलमान को सत्ता से बेदख़ल कर दिया गया तब भी सऊदी अरब और अमरीका के संबंधों पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ेगा क्योंकि सऊदी अरब के सत्ताधारी शाही परिवार में एक भी राजकुमार एसा नहीं है जो अमरीका से सऊदी अरब के संबंध तोड़ना चाहेगा। मगर बिन सलमान का विकल्प खोजने में सऊदी अरब के शाही परिवार को भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी।

अब्दुल बारी अतवान

अरब जगत के विख्यात लेखक व टीकाकार

साभार- पारश टुडे