गालिब और आम

अल्लाह जानता है मुहब्बत हमीं ने की
ग़ालिब के बाद आमों की इज्जत हमीं ने की

जैसे भी आम हम को मिले हम ने खा लिये
आमों का मान रखा मुरव्वरत हमीं ने की

खट्टे भी खाये श़ौक से मीठे भी खाये हैं
]िकस्तम के फैसले से ]िकनायत हमीं ने की

खाने को आम किसने नहीं खाये हैं जनाब
लेकिन बयान आम की लज्जत हमीं ने की

तोहफ़े में हमने आम लिये भी दिये भी हैं
पूरी रसूले पाक की सुन्नत हमीं ने की

लोगों के पास एक नहीं चार बाग़ हैं
इस बात की ख़ुदा से शिकायत हमीं ने की

हम को ड़रा नहीं सका शूगर खौफ़ भी
ऐ मौत तेरे सामने हिम्मत हमीं ने की

बारिश के बावजूद भी हम बाग़ में रहे
सजदे में सब गये थे इबादत हमीं ने की

]िकस्मत में इस फ़कीर की एक पेड़ भी नहीं
लेकिन अमीरे शहर की दावत हमीं ने की

बोले सिराज महदी से महफिल में उनसराम
दावत तो सब ही करते हैं निय्यत हमीं ने की

ग़ालिब मलीहाबाद नहीं आ आसके तो क्यो
उनकी तरफ से हर जगह शिरकत हमीं ने की

…मुनव्वर राना