नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पॉर्न पर रोक लगाये जाने की अर्जी पर सुनवाई करते हुए कहा है कि सार्वजनिक जगहों पर पॉर्न देखने और दूसरों को देखने पर मजबूर करने वालों के खिलाफ सख़्त कदम उठाए जाने चाहिए। बच्चों को इस तरह के असामाजिक हमलों का शिकार बनते नहीं देखा जा सकता। इसके इलावा कोर्ट ने कहा कि किसी इंसान की आज़ादी के नाम पर बच्चों का इस्तेमाल किए जाने वाले इस गैर-कानूनी काम की इजाजत किसी भी कीमत पर नहीं दी जा सकती। इसे रोकने के लिए कोर्ट ने सरकार से सलाह भी मांगी है और केंद्र और राज्यों से इस बारे में साथ काम करने के लिए कहा है।
केंद्र सरकार के चाइल्ड पॉर्न वेबसाइट पर पाबंदी को लेकर उठाए गए कदमों पर सुप्रीम कोर्ट ने संतोष जताते हुए कहा है कि चाहे चाइल्ड पॉर्नोग्राफी हो या सिर्फ पॉर्नोग्राफी, दोनों IPC की दफा 292 के दायरे मे आते हैं। इसलिए इन पर रोक लगाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की बनती है। वहीं केंद्र सरकार ने इस मामले में दलील देते हुए कहा है कि सरकार चाइल्ड पॉर्न को बंद करने के पक्ष में है लेकिन बाकी पर रोक नहीं लगाई जा सकती क्योंकि प्राइवेट में इसे देखना तो कोई अपराध नहीं है और इन साइट को देश के बाहर से चलाया जाता है, जहां भारत का कानून लागू नहीं होता।