छत्तीसगढ़: कागज़ों में बने शौचालयों के लिए प्रधानमंत्री ने किया पुरुस्कृत

रायपूर: बीते मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुंगेली और धमतरी ज़िला के अलावा दूसरे ज़िलों के 15 विकास खण्डों को ‘खुले में शौच मुक्त’ यानी ओडीएफ ज़िला और विकासखण्ड घोषित किया और वहां के ज़िला पंचायत अध्यक्षों, जनपद पंचायत अध्यक्षों को सम्मानित भी किया.
लेकिन प्रधानमंत्री के इस दावे की जमीनी हकीकत कुछ और ही हैं. जमीनी पड़ताल के बाद मिडिया रिपोर्ट जो दावा कर रही है, उससे तो यही लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी के भाषण कानों को सुकून पहुचाने के लिए तो ठीक है मगर हकीकत भाषणों से बहुत भिन्न है.

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नेशनल दस्तक के अनुसार, जमीनी पड़ताल के बाद लगता है कि प्रधानमंत्री के भाषण कानों को सुकून पहुँचाने के अलावे कुछ नहीं. उदाहरण के तौर पर मुंगेली ज़िले के चिरौटी गांव को ही लें. पथरिया विकासखंड के डिघोरा ग्राम पंचायत के इस गांव में कुल 45 घर हैं लेकिन गांव के अधिकांश घरों में शौचालय नहीं है. जिससे की गांव के स्त्री-पुरुष खुले में ही शौच के लिए जाते हैं. विकासखंड के गांवों में आज भी शौचालय नहीं बने हैं और तो और वहीं कुछ गांवों में इस सम्मान के बाद शौचालय बनाने का काम शुरु किया गया है.

मुंगेली ज़िले के किसान नेता आनंद मिश्रा का कहना है कि गांवों को पूरी तरह से ‘खुले में शौच मुक्त’ का असली दावा ज़िले के लोरमी और पथरिया विकासखंड के अंदरूनी इलाकों में देखा जाना चाहिये, जहां कई शौचालय काग़ज़ों में ही बना दिये गए.
इलाके के कांग्रेसी नेता घनश्याम वर्मा का कहना है कि ये हाल सिर्फ चिरौटी या डिघोरा का नहीं है. “काग़ज़ में बताने के लिये भले ही शौचालय बना दिया गया हो लेकिन जमीनी हकीकत ऐसी नहीं है. कई जगह तो ऐसा शौचालय बना दिया गया है, जिसका इस्तेमाल ही नहीं हो रहा है.”
हालांकि सरकारी अफ़सर जो आकड़े दिखाते हैं वो चौकाने वाले हैं उनका दावा है कि ज़िले के सभी 674 गांवों में 97,776 शौचालय बनाये गये हैं और ये शौचालय पर्याप्त हैं.
कुल मिलकर बात ये है कि इन ज़िलों को भले ‘खुले में शौच मुक्त’ घोषित कर दिया गया हो लेकिन अभी भी यहां बहुत काम बाकि हैं. कागज़ों पर शौचालय बनाने और पुरस्कार बांटने से देश “खुले में शौच” से मुक्त नहीं हो सकता.
सचमुच देश बदल रहा है, तभी तो कागज़ों में बने शौचालयों के लिए भी प्रधानमंत्री द्वारा पुरस्कृत किया जा रहा हैं.