जब बादशाह अकबर ने गाय की कुर्बानी से परहेज़ का किया था एलान, सजा-ए-मौत का भी था फरमान

ईद उल अजहा यानी बकरीद मीठी ईद के बाद ये मुस्लिम समुदाय का सबसे बड़े त्यौहार माना जाता है। इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन इब्राहिम ने अल्लाह को अपने बेटे की कुर्बानी दी थी, जिसके बाद वह अल्लाह के पैगंबर बन गए। उस दिन के बाद से इस्लाम को मानने वाला हर व्यक्ति अपनी सबसे अजीज वस्तु या जानवर की कुर्बानी अल्लाह को देता है।

 

हर बार की तरह इस बार भी बकरीद पर मुसलमानों से गाय की कुर्बानी ना करने की कई मुस्लिम संगठनों की अपील के बीच ऐतिहासिक तथ्य यह है कि गोकशी के खिलाफ यह अपनी तरह का पहला अनुरोध नहीं है। दरअसल मुगल बादशाह बाबर और अकबर ने भी बहुसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले इस कृत्य के खिलाफ बाकायदा फरमान जारी किये थे।

बाबर ने जहां गाय की कुर्बानी से परहेज करने का हुक्म दिया था, वहीं अकबर ने तो गोकशी करने वालों के लिये सजा-ए-मौत मुकर्रर कर रखी थी। गोकशी के खिलाफ फतवे भी जारी होते रहे हैं और 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली और महात्मा गांधी के बीच गोकशी को लेकर किया गया दिलचस्प पत्राचार भी इतिहास में दर्ज है। वर्ष 1921 में प्रकाशित ख्वाजा हसन निजामी देहलवी की किताब ‘तर्क-ए-कुरबानी-ए-गऊ’ के मुताबिक भोपाल रियासत के पुस्तकालय में मुगल शहंशाह बाबर का एक फरमान मौजूद है।

हिजरी 935 में जारी किये गये इस फरमान में गाय की कुरबानी से परहेज करने को कहा गया था। फरमान में बाबर ने अपने बेटों के नाम वसीयत में लिखा है ‘ए फरजन्द (बेटे) हिन्दुस्तान का मुल्क मुख्तलिफ मजाहिब (धर्मों) से मामूर (निर्मित) है। खुदा का शुक्र है कि उसने इस मुल्क की बादशाही तुम्हें अता की। तुम्हें चाहिये कि दिल को तास्सुबात-ए-मजहबी (धर्म की आड़ में पूर्वाग्रहों) से पाक करके हर तरीके और हर मिल्लत (वर्ग) के मुताबिक इंसाफ करो। खासकर कुरबानी-ए-गऊ (गो हत्या) से परहेज करो कि इससे हिन्दुस्तानियों के दिल जीते जा सकेंगे और इस मुल्क की रियाया एहसानात-ए-शाही से खुश हो जाएगी।‘ किताब में बादशाह अकबर के एक हुक्म को उद्धत करते हुए लिखा गया है कि अकबर ने अपनी सालगिरह के दिन, ताजपोशी के दिन, बेटों और पोतों की सालगिरह के दिन कानूनी तौर पर जानवरों के वध को र्विजत करार दिया था।

बाद में, जहांगीर ने भी अपनी हुकूमत में इस दस्तूर को कायम रखा। इस पुस्तक में एक और किस्से का जिक्र है। अकबर के जमाने में कवीशर नरहरि नामक कवि थे। उन्होंने एक दफा गायों का एक जुलूस अकबर के सामने पेश किया और हरेक गाय के गले में एक तख्ती लटका दी, जिस पर एक नज्म लिखी हुई थी।  इस नज्म में गायों की तरफ से बादशाह अकबर से उनकी जान न लेने की गुजारिश की गई थी। अकबर पर इस नज्म का इतना गहरा असर हुआ कि उसने फौरन अपने राज्य में यह हुक्म जारी कर दिया कि जो गाय को मारेगा वह सजा-ए-मौत पाएगा।

 

गोकशी के खिलाफ मुस्लिम धर्मगुरुओं ने भी फतवे जारी किये हैं। इनमें मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली और मौलाना अब्दुल हई के फतवे प्रमुख हैं। मौलाना अब्दुल हई फिरंगी महली ने अपने एक फतवे में कहा था कि गाय के बजाय ऊंट की कुरबानी करना बेहतर है। गोकशी रोकने को लेकर मौलाना अब्दुल बारी और महात्मा गांधी के बीच वर्ष 1919 में हुआ पत्राचार भी इतिहास में दर्ज है। छह सितम्बर 1919 को गांधी जी द्वारा मौलाना बारी के खत का अंग्रेजी में भेजा गया जवाब उस वक्त एक नामी अखबार में छपा भी था।

मौलाना बारी ने महात्मा गांधी को 20 अप्रैल 1919 को एक तार भेजा था। जिसमें कहा गया था ‘हिन्दू और मुसलमानों में एकता हो, इसलिये अबकी बकरीद में फिरंगी महल में गो-हत्या नहीं हुई। अगर खुदा चाहेगा, तो गाय आइंदा कुर्बान ना की जाएगी।’ इस पर महात्मा गांधी ने जवाब दिया था ‘आपके महान त्याग कर्म से मैं अत्यन्त प्रसन्न हुआ। ईद की मुबारकबाद स्वीकार कीजिये।‘