जय मीम-जय भीम का नारा, यूपी को सेकुलरिज्म का श्मशान बना दिया

हैदराबाद: (सियासत उर्दू) देश की राजनीति में जुमलों का प्रभाव बहुत अधिक होने लगा है और 2012 के बाद से नफरत भरे जुमलों के साथ ऐसे जुमले भी प्रभाव दिखाने लगे हैं जो मासूम लोगों को नशा में मुबतला करते हैं और नफरत वाले जुमले मतदाताओं को मजहबी बुनियाद पर विभाजित करते हैं।

नफरत वाले जुमले में राम जन्मभूमि के नाम पर फैलाई जाने वाली नफरत हो या हम पांच हमारे पच्चीस के साथ मुसलमानों की नसों में कृष्ण के खून का दावा करते हुए फैलाई जाने वाली नफरत हो, दोनों एक ही हैं।

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इसी तरह मदहोश करने वाले नारे ‘सबका साथ सबका विकास’ हो या जय भीम जय मीम का नारा हो इन नारों को लगाने वाले चेहरों ने उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को सफलता दिलाने में अहम भूमिका निभाई।

उत्तर प्रदेश में भाजपा की सफलता पर राजनीतिक विश्लेषकों की टिप्पणियों की समीक्षा की जाए तो उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने धर्म के आधार पर बहुसंख्यक वोटों को एकजुट करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ा था, और भाजपा ने अपने मूल एजेंडे पर ही चुनाव में हिस्सा लिया जिसका सबूत एक भी मुसलमान को भाजपा से टिकट नहीं दिया जाना था, और उसके साथ भाजपा ने अपनी मौन सहयोगी दलों को मैदान में उतारते हुए मुस्लिम वोट विभाजन का भी प्रबंध कर रखा था ताकि अगर धार्मिक चरमपंथ काम कर जाए और दोनों वर्ग इसकी चपेट में आ जाएं तो ऐसे में मुस्लिम मतों का विभाजन संभव बनाया जा सके।
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक विश्लेषक शुरू से ही मजलिस पर भाजपा की अपरोक्ष सहयोगी होने का आरोप लगाते आ रहे हैं और स्पष्ट रूप से यह कहा जा रहा था कि मजलिस के उम्मीदवार सफल तो नहीं होंगे और न ही किसी को हराने के काबिल होंगे लेकिन उनकी उपस्थिति से मुस्लिम विरोधी वोट को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी।

उत्तर प्रदेश चुनाव परिणामों पर टिप्पणी के दौरान स्थानीय पत्रकारों ने बताया कि उत्तर प्रदेश मंस ओवेसी साहब की यात्राओं और उनकी गतिविधियों ने बहुसंख्यक वर्ग को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

उन्होंने कहा कि राज्य में मजलिस ने चाहे 36 उम्मीदवार ही क्यों न मैदान में उतारे थे, लेकिन जिस तरह से चुनावी अभियान चलाया गया उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अब भारत में वोट विभाजन या वोट हासिल की राजनीति का दौर नहीं रहा, बल्कि जिस तरह देश की राजनीति कश्मीर जैसे संवेदनशील विषयों से निकल कर श्मशान और कब्रिस्तान जैसे विषयों पर पहुंच चुकी है, उसी तरह अब विकास या गठबंधन के नाम पर कामयाबी नहीं मिलने वाली है बल्कि काम से अधिक जुमलों का महत्व है और वह भी ऐसे सख्त जुमलों की कि वह विपक्ष को डरा सके।

उत्तर प्रदेश के मुस्लिम और धर्मनिरपेक्ष वोट एकजुट होने से पहले ही ओवैसी साहब के आने से बिखर चुका था, इसलिए उनके उम्मीदवारों की सफलता की कोई उम्मीद नहीं थी, लेकिन इसके बावजूद उनकी कोशिश और मेहनत ने उत्तर प्रदेश की जनता को शक में डाल दिया, जिसके नतीजे में उनके उम्मीदवार कहीं कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाए।
उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है, यहाँ भाजपा ने मुसलमानों को परोक्ष रूप से यह संदेश दे दिया है कि उनके वोट का कोई महत्व नहीं है चाहे वह कहीं चला जाए, और 2014 लोकसभा चुनाव के बाद संसद की पहली बैठक में मजलिस के अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री को इस बात की बधाई दी थी कि उन्होंने मुसलमानों के इस भ्रम को ख़ाक में मिला दिया कि उनके वोट की कोई ताकत है।

उत्तर प्रदेश के नेताओं ने मजलिस की उपस्थिति को भाजपा की जीत के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में नफरत नहीं थी ऐसा नहीं है लेकिन असद ओवैसी की उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार ने नफरत की आग में घी का काम किया है।