नई दिल्ली: इस्लाम धर्म में दो ईद मनाई जाती है। एक ईद-उल-फित्र तो दूसरा ईद-उल-जुहा, जिसे बकरीद के नाम से भी पुकारा जाता है। इस वर्ष बकरीद 22 अगस्त को मनाई जाएगी। एक ओर जहां, ईद का त्योहार प्रेम और भाईचारे का संदेश देती है, तो बकरीद अपने कर्तव्य को निभाने का और अल्लाह के प्रति अपने विश्वास को कायम रखने का पर्व है।
इन सब के अलावा बकरीद कुर्बानी का दिन भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। इस्लाम में कुर्बानी करना हजरत इब्राहिम की सुन्नत के रूप में माना गया है। बकरीद पर बकरों की कुर्बानी क्यों दी जाती है,
कुर्बानी के पीछे क्या है इस्लाम धर्म की मान्यता
बकरों की कुर्बानी देना अल्लाह द्वारा मुसलमानों के लिए वाजिब माना गया है। इस्लाम में कुर्बानी देने के पीछे एक कहानी छुपी हुई है, जिसमें अल्लाह द्वारा हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को अपनी सबसे अजीज चीज की कुर्बानी करने का आदेश दिया गया।
अल्लाह का हुक्म
हजरत इब्राहिम की उम्र 80 साल की थी और वे उसी उम्र में पिता बने थे। उनके लिए उनके बेटे से अजीज चीज दूसरी और कोई चीज नहीं थी। अल्लाह का यह आदेश उनके लिए एक इम्तिहान जैसा था। ऐसे में उन्होंने अल्लाह के हुक्म को माना और बेटे को अल्लाह की रजा के लिए कुर्बान करने को राजी हो गए।
अल्लाह ने किया यह चमत्कार
उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांधी और बेटे की गर्दन पर जैसे ही छुरी चलाने लगे, वैसे ही अल्लाह ने बेटे की जगह एक बकरे को उससे बदल दिया। अल्लाह ताला को इब्राहिम की यह बात काफी पसंद आई और उन्होंने हर साहिबे हैसियत पर कुर्बानी करना वाजिब कर दिया।
ऐसे में बकरीद के दिन कुर्बानी करना जरूरी हो गया। जानवर चाहे महंगा हो या फिर सस्ता, कुर्बानी से इसका कोई संबन्ध नहीं।