‘जेएनयू के मुद्दे पर मीडिया ने अपने साथ-साथ देश का भी भयंकर नुक़सान किया है’

जेएनयू के मामले में अगर सबसे ज़्यादा ख़राब काम किसी ने किया है तो वो कुछ न्यूज़ चैनल ने किया है. इसमें कुछ एक चैनल के नाम साफ़ तौर पर लिए जा सकते हैं. जैसे ही नारे लगाने को ले कर विडियो आया और उसके बाद जिस तरह से मीडिया वालों ने अपनी कचहरी लगानी शुरू की और फिर उस कचहरी में सिर्फ़ उनके एंकर के मन की बात पर फ़ैसला होने का ख़तरनाक रिवाज बेहद भयानक रहा. मेरी समझ में ये नहीं आता कि हर बात की ठेकेदारी हम मीडिया वाले कैसे ले लेते हैं. देश-राष्ट्रवाद जैसे आसान मुद्दों को जिस तरह से कुछ मीडिया वालों ने इस्तेमाल किया है वो निंदनीय है. आख़िर में कोई कैसे तय कर सकता है कि कौन कितना बड़ा या कितना छोटा देशभक्त है, अपने को संविधान से बड़ा समझने वाले ये कमज़र्फ़ किसी को भी देशद्रोही कहने में ज़रा देर नहीं लगाते. असल में इस ख़बर का पता मुझे तो कुछ देर से चला पर जैसे ही मुझे ये ख़बर मिली कि जेएनयू में ‘भारत विरोधी’ नारे लगे हैं, मैंने पहली बात यही कही कि ऐसा जेएनयू में हो ही नहीं सकता और दूसरी बात लेफ़्ट ऐसी हरकत कभी नहीं कर सकता, हालांकि मेरा अपना सोचना ज़रूरी नहीं सही ही हो पर उसके लिए मैंने अपनी राय ज़ाहिर करने की बजाय मुआमले को समझने की कोशिश की, आख़िर यह ज़ाहिर हो गया कि हुकूमत जेएनयू को बदनाम करने की कोशिश कर रही है, इसमें मीडिया के कुछ लोग भी शामिल हैं. अब आप ही सोचिये देश का गृह मंत्री एक फेक अकाउंट के ट्वीट पर देश की बेहतरीन यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट को आतंकवादी मान ले, क्या कह सकते हैं ? निंदनीय. ऐसा नहीं है इसमें आम लोगों ने शुरू में कोई सही रवैय्या दिखाया, आम लोगों को भी चाहिए कि कुछ दिमाग़ से सोचें फिर फ़ैसला करें, अब अगर दो-तीन लड़कों ने नारे लगा भी दिए होते तो क्या पूरी जेएनयू उडवा दोगे?

अगर हम मीडिया की बात करें तो कुछ चैनल तो मुझे इस तरह लगे मानो ये ABVP या आरएसएस-बीजेपी के अपने चैनल हैं, जो उनका पक्ष तो रख ही रहे हैं पर साथ ही उनके विडियो को सच्चा भी बताने में लगे हैं और इसके इलावा SFI की हर बात को झूठा. इस पर SFI के पक्ष वाले विडियो को जब ‘ज़ी न्यूज़’ की एंकर ने कहा कि ये विडियो फेक है तो SFI के नुमाइंदे ने साफ़ लहजे में कहा कि आपने तो ख़ुद ही फ़ैसला सुना दिया. टाइम्स नाव के अर्नब गोस्वामी जो ख़ुद को देशभक्त और जेएनयू के स्टूडेंट्स को देशद्रोही बताने में लगे थे, को भी पूरे देश से माफ़ी मांगनी चाहिए, जिस तरह की रिपोर्टिंग गोस्वामी ने की है वो सिर्फ़ और सिर्फ़ देश तोड़ने का काम कर रही थी, आप अपने को जज कैसे समझ लिए हैं. इस फ़ेहरिस्त में अगर सुधीर चौधरी का नाम नहीं आये तो बड़ी मुश्किल की बात है, ज़ी न्यूज़ के इस एंकर ने जेएनयू के स्टूडेंट को सीधा देशद्रोही कहा और लोगों में उत्तेजना भरने के लिए सुधीर बोल पड़े कि ‘देश द्रोही इस तरह आज़ाद कैसे घूम सकते हैं?’ इसके इलावा इंडिया न्यूज़ के दीपक चौरसिया भी ख़ुद को देशभक्त साबित करने में पीछे मालूम नहीं दे रहे थे. आख़िर को इन लोगों के साथ ही दूसरे मीडिया हाउसेस की पोल भी खुली रही है और सच सामने आने लगा है, फिर भी इन सब में इन लोगों ने मीडिया का नुक़सान तो किया ही है, साथ ही देश का भी भयंकर नुक़सान किया है’

शायद यही वजह है कि आज इन सब के नाम से पहले boycott लिख कर लोग हैशटैग का इस्तेमाल कर रहे हैं.
इन सब के बीच फिर भी कुछ मीडिया हाउस ऐसे हैं जिन्होनें बेहतर काम करने की कोशिश की इसमें ndtv का नाम लेना मैं यहाँ ज़ुरूरी समझता हूँ, ndtv के रवीश कुमार ने जिस तरह से कल एक प्रोग्राम के ज़रिये मीडिया को अपनी मर्यादा और अपनी ज़िम्मेदारी की याद दिलाई है वो क़ाबिल-ए-तारीफ़ है.

(अरग़वान रब्बही)