तबलानवाज़ नजमुद्दीन जावेद को टॉप ग्रेड

फ़न में कामयाबी की मज़िलो पर आगे बढ़ने के लिए हौसला अफ़ज़ाई ज़रूरी है और जब क़ाबिल शख्त की सही हौसलाअफ़ज़ाई होती है तो इसका फ़ायदा फ़न को भी होता है और फनकार रहा को भी। नजमुद्दीन जावेद शहर के पसंदीदा तबला नवाज़ हैं, जिन्हें ऑल इंडिया रेडियो ने टॉप ग्रेड का एज़ाज दिया है। ये ऐवार्ड हैदराबाद को पूरे 59 साल बाद मिला है। यक़ीनन ये जावेद और हैदराबाद दोनों के लिए काबिले फ़िक्र है ।

जावेद बताते हैं कि 1955 में शेख़ दाऊद साहब को ये एज़ाज मिला था। यूं हर साल रेडियो इस ग्रेड के लिए मुल्क भर से दरख़ास्तें मंगवाता है। बताई गई ताल और राग में एक घंटे की रिकार्डिंग पर 7 जजों का पैनल फ़ैसला करता है। मूसीक़ी में फनकार की हिस्सेदारी भी देखा जाती है। इस बार जजों की टीम में उस्ताद साबरी ख़ान, राजन साजन मिश्रा, बिरजू महाराज जैसी शख्सियतें थीं। आख़िर कार जावेद को ये कामयाबी मिल गई, जो फ़न के साथ – साथ शख़्सियत पर भी असर करेगी।
जावेद कहते हैं कि इस अवार्ड से एहतिराम के साथ लोगों का प्यार भी बढ़ा है और ज़िम्मेदारी भी। मै एक हफ्ते तक नहीं सो पाया। पता नहीं वो ख़ुशी थी या ज़िम्मेदारी का एहसास। में ख़ामोश रहने वाला इंसान हूँ, बल्कि मुझे अपना एतिमाद चुप रखता है। एक शेर याद आ रहा है-.
अपने फ़न की बुलंदी से काम ले लूंगा
मुझे मकाम ना दो में ख़ुद मकाम ले लूंगा

जावेद के वालिद मुहम्मद वज़ीर भी ऑल इंडिया रेडियो के गुलूकार थे, लेकिन वो तबला भी जानते थे। उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ान के शागिर्द थे। माँ कनीज़ फ़ातिमा बेगम अख़तर की शागिर्द हैं। हाल ही में उन्होंने हैदराबादी फ़िल्म ग़ुल्लु दादा की रिटर्न के लिए एक गीत गाया जो काफ़ी मक़बूल हुआ। उनके दक्कनी ढोलक के गीत ख़ूब पसंद किये जाते हैं। पहले निज़ाम दक्कन रेडियो के लिए और बाद में ऑल इंडिया रेडियो के लिए भी गाया। बहनों के प्रोग्राम में उन को लोगों ने काफ़ी सुना है।

इस तरह नजमुद्दीन जावेद को मूसीक़ी विरसे में मिली और शेख़ दाऊद साहब जैसे उस्ताद भी। वो अपने उस्ताद की याद करते हुए कहते हैं दाऊद साहब बड़े सादा दिल इंसान थे। कभी किसी की तन्क़ीद करते हुए मैंने उनको नहीं सुना। आठ दस साल मैंने उनसे सीखा। जब भी मैं कुछ पूछता तो पूछने से ज़्यादा बताते। कहते इल्म को रोकें नहीं, बल्कि तक़सीम करें।. छोटे फनकारों के साथ भी अच्छी संगत करते थे। .युवा वाणी के फ़नकारों के साथ संगत करने में उन्हें कोई हिचकिचाहट नहीं होती। ये बहुत बड़ी बात है।

अपने बचपन की यादें ताज़ा करते हुए जावेद बताते हैं कि वालिद चाहते थे कि में भी उनकी तरह गुलूकार बनूं . सुबह – सुबह तानपुरा लेकर राग भैरव का रियाज़ करते थे। मुझे भी रियाज़ करने के लिए कहते . मैं फिल्मों के गीत सुनता था। उस वक़्त अराधना फ़िल्म आई थी, वो मेरे दल के चैन … मधुबन में राधिका नाचे रे … जैसे गीत में भी गुनगुनाता , लेकिन बाद में इत्तिफ़ाक़ से तबले की तरफ़ रुजहान बढ़ा। अगरचे तबला अहम फ़नकारों का साथ देने के लिए है, लेकिन अकेले तबले पर भी ख़ूब लुत्फ़ आता है। तबले के बाएं ड्रम में लूज़ लेदर रहता है, जिसे प्रेस करने के बाद आप जिस तरह की आवाज़ निकालना चाहते हैं, निकाल सकते हैं।

जावेद ने कई मशहूर फ़नकारों के साथ संगत की है। पण्डित बिरजू महाराज के साथ एक यादगार वाक़िये का ज़िक्र करते हुए वो बताते हैं कि तक़रीबन 14 साल पहले नेकलेस रोड पर एक प्रोग्राम का इनइक़ाद किया गया था। पहली बार जुगलबंदी का मौक़ा था। रिहर्सल नहीं हो पाई थी, लेकिन पण्डितजी ने ढाढस बुद्धाते हुए कहा बेटा तुम बजा लोगे। मुझे भरोसा है। मै माईक पर पहले धुन पढ़ दूंगा, सुन लेना बजा देना। जब प्रोग्राम ख़त्म हुआ तो तक़रीबन पाँच मिनट तक उन्होंने मेरे बारे में बात की। मौक़ा पर तक़रीबन 5 हज़ार लोग मौजूद थे।

जावेद ने शोभा गुर्तू , मेहदी हसन , ग़ुलाम अली , पंडित देबो चौधरी , भजन सपोरी जैसे कई मशहूर फ़नकारों के साथ संगत की।

एक और वाक़िये का ज़िक्र करते हुए जावेद बताते हैं कि एसीसीआर के एक प्रोग्राम में सितार नवाज़ पण्डित सुब्रतो डे आए थे। यहां भी उन के साथ रिहर्सल का वक़्त नहीं मिला था। आम तौर पर सितार के साथ तीन ताल में बजाना होता है, लेकिन सुब्रतो डे रुद्र ताल में शुरू हुए, जिस में 11 ताल होते हैं। ऐसे में तबला नवाज़ के लिए बड़ी मुश्किल होती है। मुझे एहसास हुआ कि वो मेरा इमतिहान ले रहे हैं । मैं भी इस के लिए तैयार हुआ। आलाप के दौरान ही मैंने हिसाब किया और उन का साथ दिया।बाद में उन्होंने गले लगाया और सब के सामने ऐलान किया कि उन्होंने किस तरह इमतिहान लिया।

जावेद ने म्यूजिक डॉयरेक्टर के तौर पर किसमत अज़माई है। दो एलबम बनाए हैं। एक में तेजराज जैन के गीतों को शुभ्रा महंतो और साबिर हबीब एक साथ की आवा़जे हैं। एक और एलबम मुख़्तलिफ़ गीतों ग़ज़लों का है। इस सफ़र के दौरान कई बार उतार च़ढाव भी आये। शुरू में ऐसा लगा कि वोकल(गायन) नहीं सीख पाएंगे। जावेद के बहनवी (जीजा) ख़लीज में थे। उन्होंने कहा कि मूसीक़ी में क्या रखा है, कोई टेक्नीकल काम सीखो, जिसे मान कर उन्होंने एयर लाईन टकटग डिप्लोमा किया, लेकिन इसी दौरान तलअत अज़ीज़ हैदराबाद आए थे। एक दोस्त के घर में उनके साथ तबला बजाने का मौक़ा मिला। वो ख़ुश हुए और जावेद को अपने साथ मुंबई ले गए। उनके साथ दुनिया भर के कई शहरों के दौरे किए।

मुंबई में रहते हुए कई मूसीक़ारों के पास जाने का मौक़ा मिला। कल्याण अनदजी से भी क़रीब हुए। बताते हैं , ` मुंबई में महदी हसन साहब का प्रोग्राम था। उनके साथ बजाया तो कल्याणजी ने समझा के में महदी साहब के साथ उनके ग्रुप में आया हूँ, लेकिन बाद में हक़ीक़त मालूमात हुई तो उन्होंने अपने पास आने को कहा। उस वक़्त जावेद अली और साधना सरगम उन के पास गाना सीख रहे थे। उनके साथ नये सफ़र पर निकल पड़ने की तैयारी ही थी कि इसी दौरान हैदराबाद से इत्तेला आई कि वालिद साहब की तबीयत नासाज़ है और फिर जब हैदराबाद आया तो वापिस नहीं जा सका और ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी कर ली।