तीन तलाक का मुद्दा भाजपा सरकार की राजनीतिक मंशा पर आधारित

हैदराबाद 31 अक्टूबर: मौलाना असरारुल हक कासमी सांसद किशनगंज बिहार ने बीदर में उर्दू पत्रकारों को संबोधित करते हुए केंद्र सरकार की ओर सेयकसाँ सियोल कोड लागू करने और शरीयत में हस्तक्षेप के संदर्भ में इज़हार-ए-ख़्याल करते हुए केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में बोर्ड की ओर से जो याचिका दाखिल की गई है वह दो मुद्दों पर आधारित है। एक तो यह कि शरीयत अधिनियम में जो 1935 के बाद से जारी है उसमें हस्तक्षेप नहीं की जाए। और दस्तूर के अनुच्छेद 25 से 29 के तहत हर किसी को धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है इसे खत्म करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से हलफनामा दाखिल किया गया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से इसका विरोध किया जा रहा है।

इस संदर्भ में उन्होने ने मौजूदा समस्या के संबंध में बुनियादी तौर पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट के जज ने इस बारे में केंद्र सरकार को पत्र भेजा करते हुए इस बात की इच्छा जताई कि अगर देश में समान नागरिक कोड लागू कर दिया जाए तो केंद्र सरकार इस बारे में अपनी राय रखता है अदालत के इस निर्देश के बाद केंद्र सरकार ने विवादास्पद  हलफनामा दाखिल किया है.जिस पर बोर्ड ने अपनी आलोचना करते हुए हलफनामा दाखिल किया कि दस्तूर की धारा 25 से 29 तक जो हर वर्ग को मज़हबी स्वतंत्रता दिगई है।

इसमें किसी तरह के संशोधन नहीं किया जा सकता .खास जहां तक मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता का सवाल है सरकार जिस तरीके से पीछे प्रयास कर रही है उसमें बुरी तरह वो फेल हो गी.मसलमानों का एहसास है कि शरीयत के तहत कुरआन और हदीस की रोशनी में जो शरई सिद्धांत संकलित किए गए हैं उसमें बदलाव या संशोधन करने के लिए अदालत को कोई विकल्प नहीं .हुकुमत से जो हलफनामा दाखिल किया गया वह न्यायपालिका के निर्देश के बाद भर्ती कराया गया जिसमें न्यायपालिका का एहसास है कि किसी भी वर्ग की महिलाओं से भेदभाव नहीं होना चाहिए ‘जबकि मुसलमान धार्मिक सिद्धांतों पर अपनी जीवन और अपनी समस्याओं को हल करता है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर जो मजबूत पैरवी की जा रही है निश्चित रूप से अदालत से मुसलमानों को न्याय की उम्मीद रखनी है।