दफ़ा 370 पर सब्र-ओ-तहम्मुल ज़रूरी जल्दबाज़ी मुनासिब नहीं: करन सिंह

रियासत जम्मू-ओ-कश्मीर को ख़ुसूसी मौक़िफ़ देने वाले दस्तूर हिंद के दफ़ा 370 पर पैदा हुए तनाज़ा के दौरान सीनिय‌र कांग्रेस लीडर करन सिंह ने तमाम मुताल्लिक़ा फ़रीक़ैन से कहा कि वो इस मुआमला में सब्र-ओ-तहम्मुल से काम लें।

उन्होंने कहा कि ये इंतिहाई हस्सास मसला है जो इंतिहाई बाशऊर अंदाज़ में हल किए जाने का है। करन सिंह के वालिद महाराजा हरी सिंह ने अक्टूबर 1947 में एक मुआहिदा पर दस्तख़त करते हुए रियासत के हिंदुस्तान से अल-हाक़ से इत्तफाक़ किया था। करन सिंह ने इस बात पर अफ़सोस का इज़हार किया कि इंतिहाई हस्सास मसला पर तनाज़ा पैदा करदिया गया है।

उन्होंने कहा कि इस मसला से निमटने के लिए अगर जल्दबाज़ी की गई तो मुनासिब नहीं होगी। करन सिंह ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि जो शदीद तनाज़ा ज़राए इबलाग़ और सहाफ़त में दस्तूर के दफ़ा 370 के ताल्लुक़ से पैदा करदिया गया है इस पर उन्हें अफ़सोस है। दफ़्तर वज़ीर आज़म में मिनिस्टर आफ़ स्टेट की जानिब से जो ब्यानात दिए जा रहे हैं उन से गुरेज़ किया जा सकता है।

सारा मसला एक इंतिहाई हस्सास मुआमला का है जिस से पुरसुकून और बाशऊर अंदाज़ में निमटने की ज़रूरत है। दफ़्तर वज़ीर आज़म में मिनिस्टर आफ़ स्टेट जितेन्द्र सिंह ने मंगल के दिन एक तनाज़ा पैदा करदिया था जब उन्होंने कहा था कि नई हुकूमत ने दस्तूर के दफ़ा 370 को हज़फ़ करने का अमल शुरू करदिया है।

ज‌म्मू-ओ-कश्मीर के चीफ मिनिस्टर और वहां अपोज़ीशन पी डी पी ने उनके इस बयान पर तन्क़ीद की थी जबकि वज़ीर मौसूफ़ ने बाद में वज़ाहत की कि इन का ग़लत हवाला दिया गया है। करन सिंह ने कहा कि फ़रीक़ैन की जानिब से जिस तरह के ब्यानात दिए जा रहे हैं उन के नतीजे में सूरत-ए-हाल और भी तंग‌ होती जा रही है।

उन्होंने कहा कि सारे जम्मू-ओ-कश्मीर के सवाल पर इंतिहाई मूसिर अंदाज़ में अटूट तरीके से बेनुल-अक़वामी नुक़्ता-ए-नज़र दस्तूरी मौक़िफ़ क़ानूनी पहलूओं और सियासी पहलूओं से ग़ौर करने की ज़रूरत है। इस तरह का तरीका कार अब तक इख़तियार नहीं किया गया था लेकिन अब खराब‌ रवैया की बजाय बाहमी अंदाज़ की ज़रूरत है।

करन सिंह ने कहा कि महाराजा हरी सिंह ने पाकिस्तान से काम करने वाले क़बाइलियों की जानिब से बाज़ाबता जंग शुरू होगई थी इस सूरत-ए-हाल में इंतिहाई ना मुनासिब‌ हालात में हिंदुस्तान से अल-हाक़ के मुआहिदा पर दस्तख़त किए थे। उन्होंने कहा कि ये मुआहिदा दूसरी सुबाई रियासतों की जानिब से तय्यार करदा मुआहिदा से मुख़्तलिफ़ था।

उन्होंने वाज़िह किया कि हालाँकि दूसरी रियासतों ने भी हिंदुस्तान के साथ इंज़िमाम के मुआहिदा किए थे लेकिन जम्मू-ओ-कश्मीर का मुल्क के बक़ी हिस्सों से जो ताल्लुक़ रहा है वो मख़सूस हालात की वजह से है और उसे ख़ुसूसी मौक़िफ़ इसी वजह से हासिल हुआ है। उन्हों ने कहा कि जम्मू-ओ-कश्मीर के दस्तूर पर उन्होंने 1957 पर दस्तख़त किए थे और वो हनूज़ लागू है।

उन्होंने कहा कि यक़ीनी तौर पर जम्मू-ओ-कश्मीर हिंदुस्तान का अटूट हिस्सा है लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि इसे मुल्क की दूसरी रियासतों की तर्ज़ पर ही परखा जाये। रियासत को ख़ुसूसी मौक़िफ़ हासिल है इसे रखा जाना चाहिए।