दरगाह हज़रत जहांगीर पीरां के ग़ल्ले के हराज पर तनाज़ा

वक़्फ़ बोर्ड के उमूर् में सरकारी और सियासी मदाख़िलत के सबब ओहदेदारों को आज़ादाना और ग़ैर जांबदार तौर पर कार्रवाई में सख़्त दुश्वारियां दरपेश हैं।

वक़्फ़ बोर्ड जहां करोड़ों रुपये मालियती औकाफ़ी इदारे मौजूद हैं खासतौर पर दरगाहों के मसाइल से निमटने में आला ओहदेदारों को सियासी मदाख़िलत का सामना करना पड़ रहा है। सियासी और सरकारी मदाख़िलत की ताज़ा मिसाल दरगाह हज़रत जहांगीर पीरां के ग़ल्ला और दुसरे अशीया के हराज से मुताल्लिक़ है।

मुक़ामी बाज़ मुजाविरों और दूसरे सियासी असर रसूख़ रखने वाले अफ़राद की तरफ से गल्ला और दुसरे अशीया के हराज को रोकने की हर मुम्किन कोशिश की गई हत्ता के ये मुआमला हाईकोर्ट तक पहुंच गया। कई माह तक वक़्फ़ बोर्ड को हराज से रोका गया और एक मरहले पर मुताल्लिक़ा रुकने असेंबली ने वक़्फ़ बोर्ड के दफ़्तर पहुंच कर जबरन हराज को रोक दिया।

इस मुआमले में ज़िला से ताल्लुक़ रखने वाले एक वज़ीर ने भी ना सिर्फ़ मदाख़िलत की बल्कि चीफ़ मिनिस्टर के दफ़्तर को इस तनाज़ा में शामिल कर दिया गया। वक़्फ़ बोर्ड के आला ओहदेदारों को चीफ़ मिनिस्टर के दफ़्तर और मुताल्लिक़ा वज़ीर से ज़बरदस्त दबाव‌ का सामना था कह कसी भी सूरत में हराज को रोका जाये ताके बाज़ मुजाविरों और सियासी अफ़राद का फ़ायदा होसके। वक़्फ़ बोर्ड ने इस मुआमले में मुकम्मिल शफ़्फ़ाफ़ियत से काम लेते हुए किसी भी दबाव‌ को क़बूल करने से इनकार कर दिया। बोर्ड ने अदालत में भी अपने मौक़िफ़ की मुदल्लिल पैरवी की जिस पर हाईकोर्ट ने वक़्फ़ बोर्ड के मौक़िफ़ की ताईद की।

सियासी और सरकारी दबाव‌ के तहत ग़ल्ला और दुसरे अशीया के हराज को तक़रीबन चार मर्तबा मुल्तवी करना पड़ा और मुसलसिल पाँच माह की जद्द-ओ-जहद के बाद आख़िर कार वक़्फ़ बोर्ड को कामयाबी मिली और हाईकोर्ट के अहकामात के मुताबिक़ मुकम्मिल शफ़्फ़ाफ़ियत के साथ ग़ल्ला और दुसरे अशीया का हराज मुकम्मिल करलिया गया।

बताया जाता हैके मुक़ामी अफ़राद और बाज़ मुजाविर जिन्हें सालाना काफ़ी आमदनी हासिल होरही थी वो हराज की मुख़ालिफ़त कररहे थे। वक़्फ़ बोर्ड के ओहदेदारों ने जब किसी भी दबाव को क़बूल करने से इनकार क्या उस वक़्त हराज में हिस्सा लेने वालों को रोकने की कोशिश की गई।

चूँकि सालाना हराज में लाखों रुपये की मुआमलत होती है लिहाज़ा कोई भी एक साल के हराज को क़बूल करने तैयार नहीं था। आख़िर कार वक़्फ़ बोर्ड ने तीन माह के लिए ग़ल्ला और दुसरे 4 अशीया के हराज का एहतेमाम किया जिस से बोर्ड को तक़रीबन 40 लाख रुपये की आमदनी होगी। बताया जाता हैके हराज को रोकने के लिए हाईकोर्ट से इब्तिदा में हुक्म अलतवा हासिल किया गया ताहम वक़्फ़ बोर्ड के मौक़िफ़ की समाअत के बाद हाईकोर्ट ने बोर्ड और मुतवल्लियों के दरमयान बाज़ अशीया को तक़सीम कर दिया। इसके बावजूद वक़्फ़ बोर्ड को हराज से रोकने कोशिश की गई। मुक़ामी रुकने असेंबली ने हामीयों की कसीर तादाद के साथ हराज के दिन पहुंच कर वक़्फ़ बोर्ड के दफ़्तर में हंगामा क्या। इस सिलसिले में जब पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई तो कई रियासती वुज़रा ने मदाख़िलत की और शिकायत वापिस लेने दबाव कीया।

वाज़िह रहे के दरगाह हज़रत जहांगीर पीरां से सालाना लाखों रुपये की आमदनी होती है। गल्ले के अलावा दुसरे अशीया जो मुजाविरों के कंट्रोल में हैं इस से भी ख़ासी आमदनी है। चूँकि मुजाविरों और मुक़ामी अफ़राद को बगै़र हराज के आमदनी के हुसूल की आदत होचुकी है लिहाज़ा वो दरगाह से मुताल्लिक़ दुसरे अशीया जैसे चर्म, ढटी, लड्डू वग़ैरा के हराज की मुख़ालिफ़त कररहे थे।

हराज की तारीख़ से एन क़बल चीफ़ मिनिस्टर के दफ़्तर ने भी हराज को मंसूख़ करने की सलाह दी ताकि मुक़ामी अफ़राद को फ़ायदा होसके। ताहम वक़्फ़ बोर्ड ने मंशाए वक़्फ़ और वक़्फ़ क़वाइद की पासदारी करते हुए हराज को यक़ीनी बनाया। इस से बख़ूबी अंदाज़ा लगाया जा सकता हैके वक़्फ़ बोर्ड के मुआमलात में रोज़ाना किस तरह सियासी और सरकारी सतह पर मदाख़िलत की जाती है।इस क़दर सियासी दबाव‌ के बावजूद वक़्फ़ बोर्ड की तरफ से शफ़्फ़ाफ़ियत के साथ हराज का अमल मुकम्मल करने की अवाम की तरफ से सताइश की जा रही है।