दुनिया भर में 36 करोड़ से अधिक क्रोनिक हेपेटाइटिस बी इन्फेक्शन से ग्रसित, भारत में चार करोड़ मरीज!

दुनिया भर में 36 करोड़ से अधिक लोग गंभीर वायरल संक्रमण क्रोनिक हेपेटाइटिस बी इन्फेक्शन से पीड़ित हैं, जिसमें से चार करोड़ मरीज अकेले भारत में ही इस संक्रमण से ग्रस्त हैं.

क्रोनिक हेपेटाइटिस बी मुख्य रूप से लिवर को प्रभावित करता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक क्रोनिक हिपेटाइटिस बी से संक्रमित लगभग 25 प्रतिशत लोगों को लिवर की सिरोसिस होने का जोखिम रहता है, या लिवर कैंसर का खतरा रहता है.

भले ही हेपेटाइटिस बी वायरस (एचबीवी) सीधे संपर्क, हवा अथवा पानी के माध्यम से नहीं फैलता लेकिन यह रक्त या शरीर से निकले दूषित तरल पदार्थों जैसे लार या वीर्य आदि और मां से नवजात शिशु के माध्यम से फैलने वाला वायरस माना जाता है.

पोर्टिया मेडिकल के मेडिकल डायरेक्टर डॉक्टर एम उदय कुमार ने इस बारे में कहा, “हर साल, 10 लाख नवजात शिशुओं को क्रोनिक एचबीवी संक्रमण होने का खतरा रहता है.

यह एचबीवी संक्रमित माताओं से रक्त के सीधे संपर्क के कारण प्राकृतिक या सिजेरियन विधि से जन्मे शिशुओं तक फैल सकता है. हालांकि, स्तनपान के माध्यम से या यूटरस के जरिए इन्फेक्शन बहुत कम ही होता है. एचबीवी के संपर्क में आने वाले लगभग 90 प्रतिशत नवजात शिशुओं को क्रोनिक रोग होने का खतरा रहता है.”

उन्होंने आगे कहा, “प्रत्येक व्यक्ति जो क्रोनिक एचबीवी से पीड़ित है, वह अपनी पूरी जिंदगी संक्रमित रहेगा और कभी भी दूसरों को संक्रमित कर सकता है. इसी तरह, जो शिशु जन्म के समय इससे पीड़ित होते हैं, उनमें जीवन भर यह वायरस बना रहता है.

इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि शिशु के जन्म के समय ठीक से टीकाकरण हो जाए. अगर मां एचबीवी से संक्रमित है और टेस्ट में ई-एंटीजन के लिए पॉजिटिव रिजल्ट आया है, तो उसके नवजात शिशु को अनिवार्य रूप से जन्म के 12 घंटे के भीतर टीका लग जाना चाहिए.”

हालांकि हेपेटाइटिस बी इन्फेक्शन के लिए कोई असरदार इलाज उपलब्ध नहीं है लेकिन शोध से पता चला है कि वैक्सीन 90 प्रतिशत से अधिक लोगों को सुरक्षा प्रदान करती है. अन्य पुरानी और इन्फेक्शन वाली बीमारियों के बीच हिपेटाइटिस बी के इन्फेक्शन के बोझ को कम करने के लिए, भारत सरकार ने यूनिवर्सल वैक्सीनेशन इम्युनाइजेशन प्रोग्राम (यूआईपी) के तहत हेपेटाइटिस बी वैक्सीन शामिल की है.

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, राष्ट्रीय अभियानों के अंतर्गत बच्चों के नियमित टीकाकरण से 10 से 15 वर्षों की अवधि में इस बीमारी का पूरी तरह से सफाया भी हो सकता है. डॉक्टर उदय कुमार ने बताया, “यूआईपी के मुताबिक, हेपेटाइटिस बी शेड्यूल जीवन के पहले 24 घंटों के भीतर पहली खुराक के साथ जन्म से शुरू होता है.

टीके की तीन और खुराक छठवें, 10वें और 14वें सप्ताह की उम्र में अन्य तय टीकों के साथ दी जाती है. कोई बूस्टर खुराक की सिफारिश नहीं की जाती क्योंकि प्रारंभिक चरण स्वयं 95 प्रतिशत प्रभावी और जीवन भर सुरक्षा प्रदान करने के लिए पर्याप्त होता है.”

उन्होंने आगे बताया कि यह भी जरूरी है कि संभावित माताओं में देय तिथि से पहले ही वायरस की उपस्थिति के लिए परीक्षण किया जाए क्योंकि कई महिलाओं को पता ही नहीं होता कि वे एचबीवी से संक्रमित हैं. हालांकि, गर्भावस्था के दौरान एक क्रोनिक एचबीवी वाहक संभावित मां को टीका नहीं दिया जाता है.

एचबीवी वाली मां से शिशु तक रोग फैलने की रोकथाम देश में हेपेटाइटिस बी महामारी के नियंत्रण का मुख्य बिंदु है क्योंकि अन्य उपायों के बावजूद, यह पूर्व संचरण का सबसे कमजोर रास्ता है. रिपोर्ट के अनुसार मां से बच्चे को संक्रमण की रोकथाम न होने पर लगभग तीन से पांच प्रतिशत नवजात शिशु हेपेटाइटिस बी के शिकार होते रहेंगे.

साभार- ‘डी डब्ल्यू हिन्दी’