पाकिस्तान और अमेरीका

पाकिस्तान को अमेरीका के साथ अपने ताल्लुक़ात को बेहतर बनाने की फ़िक्र इस तनाज़ुर में एहमीयत रखती है क्योंकि क़तर में तालिबान के साथ अमेरीकी मुज़ाकरात हो रहे हैं। ये मुज़ाकरात अफ़्ग़ानिस्तान और वहां बदहाली का शिकार अवाम के लिए किस हद तक फ़ायदेमंद होंगे, ये बातचीत के नताइज पर ही मुनहसिर है। इस वक़्त पाकिस्तान को दाख़िली मुआमलों के इलावा सरहदी मसला और नाटो अफ़्वाज की कार्यवाईयों को लेकर तशवीश है।

सदर-ए-पाकिस्तान आसिफ़ अली ज़रदारी इस मौज़ू पर पाकिस्तानी सियासतदानों ख़ासकर पार्लीमैंट के अरकान की नब्ज़ मालूम करने के लिए 2 फरवरी को पार्लीमेंट का मुशतर्का सेशन तलब करना चाहते हैं। इस सेशन के इनइक़ाद के इमकानात कम हैं। अगर आसिफ़ ज़रदारी सेंशन तलब करने में कामयाब हों तो ऐवान में होने वाली बातचीत और अरकान की राय पर किसी हद तक इत्तेफ़ाक़ राय पैदा होगा।

अमेरीका के साथ ताल्लुक़ात को बेहतर बनाने की सिम्त क्या इक़दामात किए जायेंगे। ये मौज़ू क़तर के तालिबान । अमेरीका मुज़ाकरात के ताबे होगा। पाकिस्तान की सयासी पार्टीयों ख़ासकर हुक्मराँ जमात पी पी पी और असल अपोज़ीशन पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़ शरीफ़) को अपने मुल्क के मुस्तक़बिल की फ़िक्र करना ज़रूरी है। ऐसे में नए उभरते हुए सियासतदां साबिक़ क्रिकेटर इमरान ख़ान का सयासी क़द ऊंचा हो रहा है तो वो भी अपने मुल्क के मुस्तक़बिल का लायेहा-ए-अमल तैयार करने में मसरूफ़ हैं।

उसूली तौर पर पाकिस्तान केन सियोल और फ़ौजी क़ियादत ने नाटो स्पलाईज़ पर नज़र-ए-सानी के लिए हरी झंडी दिखा दी है। अमेरीका के साथ ताल्लुक़ात को बेहतर बनाने में पाकिस्तान की भलाई का जहां तक सवाल है, इस पर वहां के अवाम की राय को एहमीयत देनी चाहीए। अमेरीका के हालिया रवैय्या ने पाकिस्तान को बेचैन और ब्रहम बना दिया था, मगर पाकिस्तान अपनी लाख नाराज़गियों और इस्तिहसाली हालात का शिकार होने के बावजूद इस मौक़िफ़ में नहीं है कि वो बड़ी ताक़तों से दुश्मनी को फ़रोग़ दे।

अफ़्ग़ानिस्तान में इस वक़्त जो हालात करवट ले रहे हैं, तालिबान के साथ अमेरीका की अमन बातचीत का मौक़ा मिल चुका है तो इस में भी पाकिस्तान की बहुत बड़ी मर्ज़ी शामिल है। अफ़्ग़ानिस्तान में इस वक़्त सब से अहम काम ये है कि वहां मौजूद आलमी ताक़तों और मुक़ामी तालिबान-ओ-कबायली सरदारों के दरमयान एतिमाद साज़ी की फ़िज़ा-ए-पैदा की जाये।

पाकिस्तान ने अफ़्ग़ानिस्तान या उस ख़ित्ते से बाहर तालिबान का एक ठिकाना बनाने की राह हमवार की थी, इस लिए आज क़तर में अफ़्ग़ानिस्तान के जिलावतन जंगजू ग्रुप के नुमाइंदों का एक दफ़्तर काम कर रहा है। इस दफ़्तर के ज़रीया अफ़्ग़ानिस्तान की सियासत को फ़रोग़ देने में पुरअमन तौर पर कामयाबी मिलती है तो ये हर दो यानी पाकिस्तान और अफ़्ग़ानिस्तान के लिए एहमीयत की हामिल होगी।

अमेरीका के इरादे और मंशा-ए-का अंदाज़ा करने के लिए भी ये मुज़ाकरात के नताइज पर सारी दुनिया की तवज्जा लगी हुई है। बज़ाहिर तालिबान ने बरसर-ए-आम ये ऐलान नहीं किया है कि वो अमेरीका के साथ अमन मुज़ाकरात कर रहे हैं या अफ़्ग़ानिस्तान में जंग ख़तम करने के लिए वो अमेरीका से हाथ मिलाना चाहते हैं बल्कि ये बातचीत अमेरीका की बदनाम-ए-ज़माना जेल ग्वांतानामोबे में महरूस तालिबान क़ैदीयों की रिहाई के लिए राह हमवार करने की सिम्त एक क़दम है।

अमेरीका के साथ बातचीत के मसला पर तालिबान के साबिक़ वज़ीर और मौजूदा आला सतही अमन कौंसल के रुकन मौलवी
क़लाम उद्दीन ने ये इशारा ज़रूर दिया है कि क़तर मुज़ाकरात से मुस्तक़बिल में मज़ीद बातचीत के लिए एतिमाद साज़ी की फ़िज़ा-ए-पैदा की जा सकती है। अमेरीका को इस वक़्त एक तरफ़ तालिबान का मसला है , दूसरी तरफ़ अफ़्ग़ानिस्तान की हुकूमत की ब्रहमी को दूर करना है।

हामिद करज़ई हुकूमत ने तालिबान के साथ अमेरीका के मुज़ाकरात से उसे दूर रखने पर ब्रहमी ज़ाहिर की है। अमेरीका को अफ़्ग़ानिस्तान में अपने क़ियाम या फ़ौज की दसतबरदारी का फ़ैसला करने से क़बल तालिबान को एतिमाद में लेने की फ़िक्र इस लिए होरही है कि आलमी सतह पर अमेरीका की जंगजों से होने वाले नुक़्सानात का सब से ज़्यादा असर मग़रिब पर मुरत्तिब हुआ है।

आलमी मआशी बदहाली पर ग़ौर करने के लिए कई ग्रुप्स सरगर्म हैं। दवोस में मुनाक़िदा वर्ल्ड इक्नॉमिक फ़ोर्म की कान्फ़्रैंस में भी दबे होंटों से बाज़ मंदूबीन ने अमन को ही तर्जीह दी है। आलमी अमन के ज़रीया ही मआशी बदहाली को दूर किया जा सकता है। मसाइल का हल सिर्फ़ मुज़ाकरात में तलाश करने की ज़रूरत है।

तालिबान के साथ अमरीका के मुज़ाकरात सारी दुनिया को अमन के मुक़ाम में तबदील करने में मुआविन साबित हूँ तो ये ना सिर्फ अफ़्ग़ानिस्तान के पड़ोसी मुल्कों पाकिस्तान और हिंदूस्तान के लिए अहम हैं बल्कि आलिम इंसानियत के लिए भी ज़रूरी हैं। अमेरीका को अपने मुस्तक़बिल की फ़ौजी हिक्मत-ए-अमली में मुसबत तबदीली लाने की ज़रूरत है।

सदर अमेरीका बारक ओबामा को दूसरी मीयाद केलिए इंतेख़ाबी मुहिम के दौरान अवाम को ये यक़ीन दिलाना चाहीए कि अब अमेरीका दुनिया में अमन के नज़रिया को फ़रोग़ देने में अहम रोल अदा करेगा। किसी ख़ित्ते या ग्रुप से दुश्मनी का माहौल सिवाए तबाही-ओ-बर्बादी के कुछ नहीं है।

पाकिस्तान ने भी अमेरीका के साथ अपनी कशीदगी को दूर करने के मौक़ा तलाश करने शुरू किए हैं। नाटो अफ़्वाज के ड्रोन हमलों की वजह से पाकिस्तान में बेहद ग़म-ओ-ग़ुस्सा पाया जाता है। अगर आइन्दा नाटो ड्रोन हमलों का अहया करने पर ग़ौर किया जा रहा है तो इस पर पाकिस्तान के सियासतदानों के इलावा अवाम की राय को एहमीयत दी जानी चाहीए।

पाकिस्तान की दीगर सख़्त गीर जमातों ने नाटो स्पलाई की बहाली के ख़िलाफ़ हकूमत-ए-पाकिस्तान को सख़्त इंतेबाह दिया है। ऐसे में एहतियात पसंदी का तक़ाज़ा यही है कि अमेरीका को भी अपने रोल पर नज़रसानी करनी चाहीए क्योंकि एबटाबाद वाक़िया के बाद पाकिस्तान में इस की क़दर घटती जा रही है।