बाबरी मस्जिद इन्हेदाम महिज़ हादिसा, सुप्रीम कोर्ट की राय

नई दिल्ली, १७ जनवरी (पी टी आई) बाबरी मस्जिद इन्हेदाम महिज़ हादिसा है और इस ताल्लुक़ से कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने आज ये बात कही और सीनीयर बी जे पी लीडर एल के अडवानी, शिवसेना सरबराह बाल ठाकरे और 18 दीगर के ख़िलाफ़ मुजरिमाना साज़िश के इल्ज़ामात आइद करने केलिए सी बी आई की अर्ज़ी को 27 मार्च पर डाल दिया।

इस ताल्लुक़ से शोहरत की क्या बात है। ये हादिसा रहा जो पेश आया और फ़रीक़ैन हम से रुजू हुए हैं। इस में शोहरत या बदनामी की कोई बात नहीं है, जस्टिस एच एल दत्तू और जस्टिस सी के प्रसाद की बंच ने तब ये बात कही जब एडीशनल सॉलीसिटर जनरल ने कार्रवाई की शुरूआत में कहा कि ये मुआमला का ताल्लुक़ मशहूर बाबरी मस्जिद इन्हेदाम केस से है।

इस बंच के रूबरू कार्रवाई आगे ना बढ़ सकी क्योंकि ये बताया गया कि इस केस के बाज़ फ़रीक़ों ने अपने जवाब दाख़िल नहीं किए और तब ये केस मार्च के लिए मुल्तवी कर दिया गया। फ़ाज़िल अदालत ने गुज़श्ता साल 4 मार्च को नोटिस 21 अफ़राद को जारी की थी जिन में अडवानी, ठाकरे, कल्याण सिंह, उमा भारती, सतीश प्रधान, सी आर बंसल, एम एम जोशी, विनय कटियार, अशोक सिंघल, गिरी राज किशवर, साध्वी रतमबरा, वि एच डालमिया, महंत वैद्यनाथ, आर वि वेदांती, परमहंस राम चन्द्र दास, जगदीश मनी महाराज, बी ईल शर्मा, नृत्य गोपाल दास, धर्म दास, सतीश नागर और मोरेश्वर सावी शामिल हैं।

अदालत ने इन तमाम से इस बारे में जवाब तलब किए थे कि क्यों बाबरी मस्जिद इन्हिदाम केस में उन के ख़िलाफ़ मुजरिमाना साज़िश के इल्ज़ामात का अहया नहीं किया जाना चाहीए। इस ने ये हुक्मनामा इस अपील पर जारी किया था जो सी बी आई ने इलहाबाद हाईकोर्ट के 21 मई 2010 के फ़ैसले के जवाज़ को चैलेंज करते हुए दाख़िल की थी, जिस ने इन क़ाइदीन के ख़िलाफ़ इल्ज़ामात हज़फ़ करने केलिए ख़ुसूसी अदालत के फ़ैसले को बरक़रार रखा था।

ताहम हाईकोर्ट ने इस वक़्त सी बी आई को इजाज़त दे दी थी कि अडवानी और दीगर के ख़िलाफ़ दीगर इल्ज़ामात राय बरेली की अदालत में आगे बढ़ाए जा सकते हैं क्योंकि मुतनाज़ा ढांचा इसी के हदूद में आता है। हाईकोर्ट हुक्मनामा के जवाज़ को चैलेंज करते हुए सी बी आई ने अपनी पेटीशन में कहा है कि ऐसा मालूम होता है ट्रायल कोर्ट की जानिब से मस्नूई इमतियाज़ बरत कर हर मुल्ज़िम के मुआमले में कोई रोल तय करने की कोशिश और ये यक़ीनी बनाने की सुई हुई कि कौन से जराइम किए गए।

इस ने कहा कि अदालत ने ग़लती से ये नतीजा अख़ज़ कर लिया कि 21 अश्ख़ास पर (दिसम्बर 1992 के इन्हिदाम से मुताल्लिक़) केस में मुक़द्दमा चलाना ज़रूरी नहीं है।