बाबरी मस्जिद ध्वंस दर्दनाक घटना, हमारे धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र के लिये दुखदायी दिन था- मनमोहन सिंह

नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि एक संस्था के रूप में न्यायपालिका के लिए यह बेहद जरूरी है कि वह संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के स्वरूप का संरक्षण करने की अपनी जिम्मेदारी का ध्यान रखे। मनमोहन सिंह ने सैन्य बलों को भी सांप्रदायिक अपीलों से खुद को अछूता रखने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि भारतीय सशस्त्र बल देश के शानदार धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का अभिन्न हिस्सा हैं। ऐसे में जरूरी है कि सशस्त्र बल स्वयं को सांप्रदायिक प्रभाव से दूर रखें।

मनमोहन सिंह ने मंगलवार को भाकपा के ‘धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की रक्षा’ विषय पर आयोजित दूसरे एबी बर्धन व्याख्यान में बोलते हुए कहा कि संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का संरक्षण करने के मकसद को पूरा करने की मांग पहले के मुकाबले मौजूदा दौर में और भी अधिक जरूरी हो गई है।

मनमोहन सिंह ने बाबरी मस्जिद मामले का जिक्र करते हुए कहा कि 1990 के दशक के शुरुआती दौर में राजनीतिक दलों और राजनेताओं के बीच बहुसंख्यक और अल्पसंख्यकों के सह अस्तित्व को लेकर शुरू हुआ झगड़ा असंयत स्तर पर पहुंच गया. उन्होंने कहा, बाबरी मस्जिद पर राजनेताओं का झगड़े का अंत उच्चतम न्यायालय में हुआ और न्यायाधीशों को संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को पुन: परिभाषित कर बहाल करना पड़ा। डा. सिंह ने बाबरी मस्जिद ध्वंस को दर्दनाक घटना बताते हुए कहा कि छह दिसंबर 1992 का दिन हमारे धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र के लिये दुखदायी दिन था और इससे हमारी धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धताओं को आघात पहुंचा। मनमोहन सिंह ने कहा कि न्यायाधीशों की सजगता और बौद्धिक क्षमताओं के बावजूद कोई भी संवैधानिक व्यवस्था सिर्फ न्यायपालिका द्वारा ही संरक्षित नहीं की जा सकती, संविधान और इसकी धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धताओं के संरक्षण की जिम्मेदारी राजनीतिक नेतृत्व, नागरिक समाज, धार्मिक नेताओं और प्रबुद्ध वर्ग की भी है। साथ ही उन्होंने कहा कि भेदभाव का एकमात्र आधार धर्म नहीं है। जाति, भाषा और लिंग के आधार पर भी लोगों को भेदभाव देखना पड़ता है।