मुहर्रम विशेष: बलरामपुर की ताज़ियादारी परंपरा को आगे बढ़ाने में हिन्दू कभी नहीं रहे पीछे

मुहर्रम विशेष: बलरामपुर की ताज़ियादारी परंपरा को आगे बढ़ाने में हिन्दू कभी नहीं रहे पीछे

बलरामपुर/लखनऊ। बलरामपुर का मोहर्रम ऐतिहासिक होता है। इसकी सबसे बड़ी खूबी है कि इसमें हिन्दू भी बड़ी आस्था है। बलरामपुर जिले में होने वाली ताजियादारी में अपने घर के दरवाजे में ताजिया रखने वालों में हिन्दुओं की संख्या कम नहीं। यहां जैसी ताजियादार हिन्दुस्तान के किसी अन्य हिस्से में देखने को नहीं मिलती। नक्काशी बेलबूटों की नायाब कारीगरी यहां की ताजियों में देखने को मिलती है। सदर विकास खण्ड बलरामपुर के ग्राम पखिया में 150 फिट ऊंची ताजिया रखी जाती है। इसके अलावा 50 से 70, 80, 100 फिट की ताजियों की कोई गिनती नहीं। अपनी अकीदत व मनौती के अनुसार यहां ताजिया खरीदने में जरा भी कंजूसी नहीं दिखाते, खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में रखी जाने वाली ताजियों की कीमत अधिक होती है।
वैभव त्रिपाठी बताते हैं, पांच सौ से लेकर डेढ़ लाख तक ताजियों की कीमत अदा करके लोग अपने गांव व घर पर रखते है। मुहर्रम की 9वीं तारीख को रखी गई ताजियों एहतराम ने पूरी रात जागकर गुजारते है। मुहर्रम की 10वीं को रंजीदा माहौल में ताजियों को मसनूई कर्बला पर ले जाकर सुपुर्देखाक करते है। विगत 15 से बीस सालों से रौजे मुबारक मस्जिदों की नकल बनाने का ज्यादा प्रचलन हो गया है मनौती में रखी जाने वाली ताजियों के अतिरिक्त ऐसाल सवाब के लिये रौजे मुबारक व मस्जिदों की नकल बनाने वालो की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है, दुनिया की शायद कोई भी खूबसूरत मस्जिद या बुर्जुगानेदीन के रौजे मुबारक बचता हो जिसका हूबहू नक्शा न बनाया जाता है। ऐसी परम्परा के चलते अब बलरामपुर मुहर्रम में और भी रौनक आ गई है। मुहर्रम की 9वीं को यहां मनौती के बिना पर पायग बनने की परम्परा है। हजारों की तादाद में मुहर्रम की नवीं को लोग कमर बंद के साथ घुघरू घंटी बांधकर हाथ में मुरछल लेकर पूरी रात सारी ताजियों पर हाजिरी लगाते है। पूरी रात भ्रमण करने के उपरान्त 10वीं को पूरे एहतराम के साथ ये पायग अपना कमर बन्द उतार कर अपनी मनौती को पूरा करते है।
शिया समुदाय द्वारा भी मुहर्रम बड़ी अकीदत के साथ मनाया जाता है। मुहर्रम की पहली तारीख से इनके घरो में नोहा ख्वानी का सिलसिला चलता है जो चहेल्लुम तक जारी रहता है। शिया समुदाय के हर घर में इमामबाड़े में ताजिया रखी जाती है। 10वीं की सुबह सीनाकोबी करते इनका जुलूस निकलता है जो इनके मखसूस स्थान पर जाकर खत्म होता है। जिले के उतरौला तहसील में शिया समुदाय की संख्या ज्यादा होने से इनका मुहर्रम यहां खास तौर से आकर्षण का केन्द्र रहता है।