रात की तारीकी में दुआ करो, वह कुबूलियत का खास वक्त है

हजरत अबू हुरैरा (रजि०) फरमाते हैं कि जिस को पांच चीजे मिल गई वह दूसरी पांच चीजों से महरूम नहीं रहेगा। जिसको शुक्र की तौफीक मिली वह नेमतो की ज्यादती से हरगिज महरूम न रहेगा-‘‘अगर शुक्र करोगे तो और ज्याद दूंगा।’’ जिसको सब्र की तौफीक मिल गई वह सवाब से महरूम न रहेगा- ‘‘सब्र करने वालों को बेहिसाब अज्र दिया जाएगा।’’ जिस को तौबा की तौफीक मिलेगी वह उसकी कुबूलियत से महरूम न होगा-‘‘ वही अपने बंदो की तौबा कुबूल करता है।’’ जिसको इस्तिगफार की तौफीक दी गई वह मगफिरत से महरूम न होगा -‘‘अपने परवरदिगार से मगफिरत मांगो, वह बख्शने वाला है।

जिसको दुआ की तौफीक दे दी गई वह अजाबत से महरूम न रहेगा-‘‘मुझ से दुआ करो, मैं कुबूल करूंगा।’’ किसी ने एक छठी चीज का इजाफा किया कि जिसको खर्च की तौफीक मिली वह उसके बदले से महरूम न होगा-‘‘ जो कुछ तुम खर्च करते हो वह उसका बदला देगा।’’

काश दुनिया में कोई दुआ कुबूल न होती:- नबी करीम (स०अ०व०) ने फरमाया कि मुसलमान की हर दुआ कुबूल होती है बशर्ते कि किसी नाजायज काम या रिश्ते नाते खत्म करने के लिए दुआ न करे। (अलबत्ता दुआ की कुबूलियत का तरीका मुख्तलिफ है) या तो दुनिया में उसकी ख्वाहिश पूरी कर दी जाती है (अगर उसमें मसलेहत है) या आखिरत में जखीरा कर दिया जाता है या फिर उसकी वजह से कोई मुसीबत टल जाती है या कोई गुनाह मिट जाता है।

एक रिवायत में है कि जब कयामत में अल्लाह तआला बंदे को उन दुआओं का सवाब मरहमत फरमाएंगे जो बजाहिर दुनिया में कुबूल नहीं हुई थी तो उसकी कसरत को देखकर बंदा ख्वाहिश करेगा कि काश दुनिया में कोई दुआ कुबूल न होती।

जैसे खाने में नमक:- हजरत अबू जर गफ्फारी (रजि०) फरमाते हैं कि इबादात में दुआ की वही हैसियत है जो खाने में नमक की। उजलत न कर:- नबी करीम (स०अ०व०)ने फरमाया कि आदमी उस वक्त तक भलाई खैर में रहता है जब तक जल्दबाजी न करे। सहाबा ने अर्ज किया कि उजलत से क्या मुराद है। फरमाया कि यही कि दुआ करते करते यह कहने लगे कि मैं बराबर दुआ करता रहता हूं मगर कुबूल ही नहीं होती। इतने दिन गुजर गए दुआ करते करते मगर अभी तक कुबूल न हुई।

दुआ की कुबूलियत और यकीन:- हजरत हसन फरमाते हैं कि एक बार अबू उस्मान मेहदी की इयादत/ अयादत को गया। हम में से किसी ने कहा कि अबू उस्मान हमारे लिए दुआ कीजिए आप मरीज है और मरीज की दुआ बहुत जल्द कुबूल होती है। इसलिए उन्होंने हाथ उठाए। उनके साथ हमने भी उठा दिए। हम्द व सना के बाद कुरआने पाक की चंद आयात तिलावत की, दरूद शरीफ पढ़ा। इसके बाद दुआ की फिर फरमाया कि मुबारक हो अल्लाह ने दुआ कुबूल फरमा ली। हजरत हसन ने फरमाया कि आप को कैसे खबर हुई? फरमाया कि हसन अगर आप मुझ से कोई बात कहें तो यकीनन मैं उसकी तस्दीक करूंगा।

अल्लाह तआला ने कुबूलियत का वादा फरमाया है तो फिर उसकी तस्दीक क्यों न करूं। कुरआन में है कि मुझ से दुआ करो कुबूल करूंगा। बाहर निकल कर हजरत हसन ने फरमाया कि यह मुझ से ज्यादा फकीह है।

दावाते सहरगाही:- हजरत मूसा (अलै०) ने अल्लाह तआला से अर्ज किया कि अल्लाह! मैं किस वक्त दुआ करूं कि कुबूल हो जाए। फरमाया कि मूसा ! मैं रब हूं तुम बंदे हो जिस वक्त भी दुआ करोगे कुबूल करूंगा। मूसा ने वक्त के तअय्युन पर इसरार किया तो फरमाया कि रात की तारीकी में दुआ करो वह कुबूलियत का खास वक्त है।

दुआ के काबिल बनो:- हजरत राबिया अदविया कब्रस्तान जा रही थी। रास्ते में किसी ने कहा कि मेरे लिए दुआ फरमाइए। फरमाया कि अल्लाह तुम पर रहम करें। अल्लाह की इताअत व इबादत करो फिर दुआ करो, वह परेशान लोगों की दुआ कुबूल फरमाता है।

दूसरे से दुआ के लिए कहना मसनून व मुस्तहब है। हजरत राबिया ने गालिबन इसलिए तंबीह फरमाई कि हर आदमी को दुआ के काबिल होना चाहिए। खुद कुछ न करना और सिर्फ दूसरों की दुआओं के भरोसे पर रहना कोई अच्छी बात नहीं।

————बशुक्रिया: जदीद मरकज़