वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने अर्नब गोस्वामी पर बोलने के अधिकार की हत्या का आरोप लगाया

टाइम नाउ के एडिटर चीफ अर्नब गोस्वामी अपने डीबेट कराने की शैली के कारण चौतरफा जर्नलिस्ट के निशाने पे है अब वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने अर्नब गोस्वामी पे हमला बोला है ओम थानवी ने फेसबुक पे पोस्ट लिख कर अर्नब गोस्वामी पर शो में एक ही पक्ष को बोलने का और दुसरे को ना बोलने का आरोप लगाया

फेसबुक पे ओम थानवी की पोस्ट

पिछले कुछ हफ़्तों से टाइम्ज़ नाउ से फ़ोन आता है कि अर्णब गोस्वामी के ‘न्यूज़ आवर’ में शिरकत करूँ। पर मेरा मन नहीं करता। एक दफ़ा समन्वयक ने कहा कि आप हिंदी में बोल सकते हैं, अर्णब हिंदी भी अच्छी जानते हैं आपको पता है। मुझे कहना पड़ा कि उनकी हिंदी से मेरी अंगरेज़ी बेहतर है। फिर क्यों नहीं जाता? आज इसकी वजह बताता हूँ। दरअसल, मुझे लगता है अर्णब ने सम्वाद को, सम्वाद में मानवीय गरिमा, शिष्टता और पारस्परिक सम्मान को चौपट करने में भारी योगदान किया है। हम बोलने के अधिकार की बहुत बात करते हैं, पर उसका वध देखना हो तो ‘न्यूज़ आवर’ शायद सर्वश्रेष्ठ जगह होगी। मैं अर्णब के आग्रहों-दुराग्रहों की बात नहीं करता (किस पत्रकार के नहीं होते?), लेकिन एक शोर पैदा करने की हवस में वे किसी ‘मेहमान’ को चुन कर थानेदार की तरह हड़काएँगे, किसी को बोलने न देंगे, बाक़ी को कहेंगे कि जब चाहें बिना बारी बहस में कूदते रहें। कोई भी समझ सकता है कि इससे एक हंगामे का दृश्य तैयार होता है, जो स्वाभाविक ही भीड़ को खींचता है (भगवतीचरण वर्मा की कहानी ‘दो बाँके’ याद नहीं आपको?)। माना कि यह व्यापार है, पर व्यापार और चैनल भी करते हैं। देखना चाहिए कि किसकी मर्यादा कहाँ है।
इसके अलावा मेरा स्पष्ट सोचना यह है कि सांप्रदायिकता, छद्म राष्ट्रवाद, कश्मीर और पाकिस्तान आदि अत्यंत नाज़ुक मसलों पर निहायत ग़ैर-ज़िम्मेदाराना रवैया आग भले न लगाए (जिसकी लपटें परदे पर अर्णब को बहुत प्रिय हैं), लोगों में दुविधा, द्वेष, अलगाव, रंजिश और घृणा ज़रूर पैदा कर सकता है। क्या इसे हम सार्थक पत्रकारिता कहेंगे?

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