शहर की एक मस्जिद जिस में हेल्मट पहन कर जाना लाज़िमी

नुमाइंदा ख़ुसूसी दरबार एलाही और बारगाह ख़ुदावंदी के आदाब तो बहुत ज़्यादा हैं कि जब कोई मोमिन इस आला दरबार में दाख़िल हो तो साफ़ सुथरे और पूरे कपड़े पहन कर संजीदगी और मतानत के साथ अल्लाह के घर में हाज़िर हो और तमाम मुस्लमान उन आदाब का लिहाज़ भी करते हैं । मगर आप को ताज्जुब होगा कि इस जदीद दौर में एक एसी मस्जिद भी है जिस में हेल्मट पहने बगैर दाख़िला ममनू (मना) है । मिल्ट्री एरिया फ़रस्ट लांसर के अहाता में एक चार सौ साला क़दीम क़ुतुब शाही मस्जिद है , मस्जिद की तक़रीबन एक एकड़ ज़मीन है । जो अल्हम्दुलिल्ला महफ़ूज़ है । मस्जिद काफ़ी बड़ी इंतिहाई ख़ूबसूरत और मज़बूत-ओ-मुस्तहकम हालत में है

। मस्जिद की कमेटी क़ाबिल तारीफ है जिस ने मस्जिद की निगहदाशत और तहफ़्फ़ुज़ में कोई दक़ीक़ा उठा ना रखा । साथ ही आर्मी इंतिज़ामीया भी लायक़ सताइश है जिस ने मस्जिद तक मुस्लियों की रसाई के लिए मुनासिब सहूलयात मुहय्या की । चूँ कि ये तारीख़ी क़ुतुब शाही मस्जिद आर्मी एरिया में वाक़ै है और हर आर्मी एरिया का एक ज़ाबता-ओ-क़ानून और डिसिप्लिन होता है । जिस पर अमल पैरा होना हर एक के लिए लाज़िमी है ।

दोपहिया ( टू व्हीलर ) सवारी चलाने के लिए हेल्मट का इस्तिमाल अक्सर बड़े शहरों में लाज़िमी क़रार दिया गया है क्यों कि नागहानी हादिसा के वक़्त इंसान का सर उस की वजह से महफ़ूज़ रहता है इस क़ानून की वजह से आर्मी के किसी भी इलाक़ा में मोटर साइकिल सवार के लिए बगैर हेल्मट दाख़िला ममनू है । इसी लिए मज़कूरा क़ुतुब शाही मस्जिद में जाने के लिए हेल्मट इस्तिमाल करना लाज़िमी है । अल्हम्दुलिल्ला इस मस्जिद में पंच व़क़्ता नमाज़ अदा की जाती है इस तरह ईदैन और तरावीह की नमाज़ भी एहतिमाम के साथ होती है और जुमा की नमाज़ के लिए तो ख़ुसूसी इंतिज़ामात किए जाते हैं ।

इस मस्जिद की ख़ास बात ये है कि इस में जुमा का वक़्त 3-40 तै है । शहर के किसी भी मोमिन बंदे का जुमा अगर अपने मुहल्ला में छूट जाय तो वो इस मस्जिद का रुख करता है मगर हेल्मट के साथ । क़ारईन ! आप को एक दिलचस्प बात से वाक़िफ़ कराते हैं कि मस्जिद कमेटी ने अपने तौर पर ख़ास जुमा के लिए 300 हेल्मट का नज़म कर रखा है । जुमा के दिन 2 बजे से कमेटी के लोग आर्मी एरिया के बाब उलद अखिला पर इन 300 हेल्मट के साथ खड़े होजाते हैं और बगैर हेल्मट के आने वाले मुस्लियों को हेल्मट पहना दिया जाता है नमाज़ की अदाएगी के बाद वापसी में बाब उल दाखिला पर ही हेल्मट जमा कर दिया जाता है ।

ये सिलसिला अरसा-ए-दराज़ से यूंही चला आरहा है मस्जिद कमेटी नमाज़ियों की गाड़ी पार्किंग का भी अच्छा इंतिज़ाम करती है । जिस में आर्मी के नौजवान भी बगैर किसी हिचकिचाहट के इंतिहाई ख़ुश उसलूबी के साथ हाथ बटाते हैं और पूरे तौर पर इस में शरीक होते हैं । कमेटी ने बताया कि हर जुमा को तक़रीबन 12 सौ अफ़राद नमाज़ अदा करते हैं । मस्जिद के अंदरून हिस्सा की सफ़ाई सुथराई और दिलकशी ख़ूबसूरती से अंदाज़ा होता है कि कमेटी कितनी फ़आल और मुस्तइद है । मस्जिद को सजाकर बहुत ही अच्छी हालत में रखा है जिस के लिए अरकान कमेटी क़ाबिल मुबारकबाद हैं । मस्जिद का पूरा नाम जामे मस्जिद क़ुतुब शाही मिल्ट्री एरिया फ़रस्ट लांसर है ।

आर्मी के ओहदेदार और ऑफीसरज़ ने इस मस्जिद तक मुस्लियों के आने के लिए जो सहूलयात फ़राहम की हैं वो काबिल तारीफ हैं लेकिन इस मौक़ा पर ये बताना बेहद ज़रूरी है कि आर्मी एरिया में मज़ीद तीन मसाजिद एसी हैं जो होनूज़ (अभी तक)गैर आबाद हैं । ( 1 ) मेह्दी पटनम केंद्र विदयाला स्कूल के बिलकुल मुत्तसिल सह ख़ाना क़ुतुब शाही मस्जिद जिस के रूबरू एक दरगाह शरीफ भी है । ( 2 ) मस्जिद मुहम्मद लाईन एक ख़ाना भी आर्मी एरिया में वाक़ै है । ( 3 ) लंगर हाइज़ रोड पर पाँच ख़ाना मस्जिद ये तीनों मसाजिद आर्मी इलाक़ा में हैं और अब तक गैर आबाद हैं । आर्मी इंतिज़ामीया को चाहीए कि जामे मस्जिद क़ुतुब शाही फ़रस्ट लांसर की तरह उन गैर आबाद मसाजिद में भी मुस्लमानों को नमाज़ अदा करने के लिए इजाज़त दे।

जो यक़ीनन बहतरीन और एक मिसाली इक़दाम होगा लेकिन हमारे ज़राए से जो बात सामने आई है वो ये है कि ताहाल किसी मुस्लमान इन मसाजिद को आबाद करने के लिए पेश क़दमी ही नहीं की । इस सिलसिला में ख़ुद अपने फ़रीज़ा से ग़ाफ़िल है । उसे अल्लाह के घर की तो कोई फ़िक्र नहीं है । हर कोई अपनी दुनिया में मस्त है । अगर मुस्लमान ही क़ानूनी तरीका से मस्जिद आबाद करने की पहल नहीं करेंगे तो मस्जिद क्यों कर आबाद होगी ? ।।