श्रीलंका संसद भंग करने के राष्ट्रपति के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

कोलंबो : श्रीलंका के सर्वोच्च न्यायालय ने संसद को भंग किए जाने के राष्ट्रपति के निर्णय पर सात दिसंबर तक मंगलवार को रोक लगा दी। न्यायालय के इस निर्णय से राजनीतिक दलों को राहत मिली है, जिन्होंने मैत्रीपाला सिरिसेना के निर्णय को रद्द करने का न्यायालय से आग्रह किया था।

प्रधान न्यायाधीश नलिन परेरा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की एक पीठ ने कई राजनीतिक दलों की तरफ से दायर याचिकाओं पर सोमवार और मंगलवार को सुनवाई की, जिनमें संसद भंग करने के सिरिसेना के निर्णय को चुनौती दी गई है।

समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, मामले पर बहस के लिए चार, पांच और छह दिसंबर की तिथि तय की गई है। कोलंबो टेलीग्राफ के अनुसार, इस बीच 14 नवंबर को संसद की बैठक बुलाने की राजपत्र अधिसूचना बहाल रहेगी, जिसका अर्थ यह होता है कि संसद की बैठक बुधवार को बुलाई जा सकती है।

 

इस द्वीपीय देश में राजनीतिक संकट तब शुरू हुआ, जब सिरिसेना ने शुक्रवार को संसद भंग कर दिया और पांच जनवरी को जल्द चुनाव कराने की घोषणा कर दी। इसके दो सप्ताह पहले उन्होंने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया था और उनकी जगह पर महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था।

सिरिसेना ने उसके तत्काल बाद एक कार्यवाहक सरकार का गठन किया, जिसे विक्रमसिंघे की युनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) ने अवैध करार दिया। संसद का कार्यकाल अभी डेढ़ साल बाकी है, फिर भी राष्ट्रपति ने अचानक संसद को भंग कर दिया।

सिरिसेना ने कहा है कि संसद भंग कर चुनाव कराने की घोषणा उन्होंने देश की सड़कों पर और संसद में हिंसा भड़कने से बचाने के लिए की।

जिन दलों ने राष्ट्रपति के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है, उनमें यूएनपी, मुख्य विपक्ष तमिल नेशनल अलायंस, जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी), तमिल प्रोग्रेसिव अलायंस और आल सिलोन मक्कल कांग्रेस शामिल हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद जेवीपी के सांसदों ने संसद अध्यक्ष कारू जयसूर्या से मुलाकात की और उनसे यथासंभव जल्द से जल्द संसद की बैठक बुलाने का आग्रह किया।

विक्रमसिंघे ने अपने सांसदों से कहा कि वह किसी भी समय संसद में बहुमत साबित करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने उनसे यह भी कहा कि वे बुधवार को संसद की बैठक में हिस्सा लेने के लिए तैयार रहें।