हिमायत सागर-ओ-उसमान सागर के संग-ए-बुनियाद की तख़्तीयों की हिफ़ाज़त ज़रूरी

नुमाइंदा ख़ुसूसी – हैदराबाद दक्कन में संग-ए-बुनियाद की तख्तियां नसब करने का रिवाज सदीयों से चला आरहा है। क़ुतुब शाही-ओ-आसिफ़जाही हुकमरानों ने अपने हर प्रोजेक्ट को बिला लिहाज़ मज़हब-ओ-मिल्लत अवाम की बहबूद के लिए शुरू किया लेकिन नाआक़बत मफ़ाद परस्त अनासिर इन तख़्तीयों का नाम-ओ-निशान मिटाने पर तुले हुए हैं। वो चाहते हैं कहीं भी मुस्लिम हुकमरानों की यादगार नज़र ना आए। उर्दू के हुरूफ़ उन्हें दिखाई ना दे। इस्लामी तर्ज़ तामीर की हामिल तारीख़ी इमारतों का वजूद मिटा दिया जाय।। मुतअस्सिब जांबदार और शरपसंद ज़हनीयत के हामिल ओहदेदारों को यही फ़िक्र रहती है कि किसी ना किसी तरह मुस्लिम शनाख़्त को मिटा दिया जाय।

इस की चंद मिसालें हम आप को देते हैं। क़दीम-ओ-तारीख़ी सिटी कॉलेज की तख़्ती को अम्दन(जान बुज कर) ज़मीन में धंसा या जा रहा है वो किसी भी वक़्त ज़मीन में दफ़न हो सकती है। ये काम कोई बाहर वाला नहीं बल्कि अंदर वाला ही कर सकता है। एक दौर में एशीया की अहम और सर-ए-फ़हरिस्त रही उस्मानिया यूनीवर्सिटी या जामिआ उस्मानिया की संग-ए-बुनियाद की तख़्ती के पास कचरा उंडेला जा रहा है ताकि ये तख़्ती कचरे में छिप जाय और इस पर किसी की नज़र ना पड़े। तारीख़ी मुस्लिम जंग पुल के संग-ए-बुनियाद की तख़्ती बार बार शरपसंदों का निशाना बन रही है। वक़फ़ा वक़फ़ा से कमीकल माद्दे या ऑयल डालकर इस के उर्दू हुरूफ़ मिटाए जा रहे हैं। मदर्रसा आलीया की तारीख़ी तख़्ती के पास सरकारी बैत उल-ख़ला तामीर करदिया गया और लोग क़रीब से गुज़र भी नहीं सकते। महबोबीया कॉलिज की तारीख़ी तख़्ती के कई हुरूफ़ गिर चुके हैं। पुराना पुल की संग-ए-बुनियाद के मौक़ा पर नसब करदा तख़्ती को मुकम्मल तौर पर मिटा दिया गया।

शरपसंदों ने पुराना पुल दरवाज़ा को जिस तरह मंदिर में तबदील करदिया है इसी तरह उस की तख़्ती पर सफ़ैद रंग डाल दिया गया। तोप का सांचा गण फ़ाओनडरी की तख़्ती भी लापरवाही का शिकार बनी हुई है। उस्मानिया दवाख़ाना की तारीख़ी तख़्ती को पीपल के दरख़्त में छिपा दिया गया। इन तमाम तख़्तीयों का जायज़ा लें तो पता चलेगा कि तमाम मुस्लिम हुकमरानों के दौर की हैं और इस पर उर्दू हुरूफ़ कनुंदा हैं। आप को बतादें कि हिमायत सागर ज़ख़ीरा आप का तामीरी संग-ए-बुनियाद 1920 -में रखा गया था और इस की तामीर 7 साल में यानी 1927 में मुकम्मल हुई। इस वक़्त उस की तामीर पर 93 लाख रुपये ख़र्च आए थे। नवाब अली नवाज़ जंग इस प्रोजेक्ट के चीफ़ इनजीनयर थे।

नवाब मीर उसमान अली ख़ां बहादुर ने अपने फ़र्ज़ंद हिमायत अली ख़ां आज़म जाह बहादुर के नाम से हिमायत सागर तामीर करवाया था। इस ग़ैरमामूली ज़ख़ीरा आब की तास का रकबा 36,600 मुरब्बा मील बताया जाता है जबकि इस के फ़ील्ड गैटस की तादाद 17 है। हर फ़ील्ड गेट का हुजम 15×21.6 फुट है जो 1742.000 फुट तक फैले हुए हैं। क़ारईन ! इस डैम की लंबाई या तवालत 7400 फुट रिकार्ड की गई है। शहर हैदराबाद को कुछ साल क़बल तक भी हिमायत सागर का पानी सरबराह किया जाता था। इस में 1782.00 फिट पानी की गुंजाइश है। आजकल शहर हैदराबाद-ओ-सिकंदराबाद और मज़ाफ़ाती इलाक़ों को सिंगूर, मानजरा और कृष्णा से पानीसरबराह किया जा रहा है।

हाँ हम बात कर रहे थे हिमायत सागर की यहां हाल हाल तक ख़ुदकुशी के वाक़ियात में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा होगया था जिस के नतीजा में 92 साला इस ज़ख़ीरा आब के दोनों तरफ़ के रास्तों के गेट बंद करके इस पर कांटेदार झाड़ियां डाल दी गईं। अब हिमायत सागर के कटा पर कोई भी नहीं जा सकता। इस कटा के बाएं जानिब संग-ए-बुनियाद के मौक़ा पर तख़्ती नसब की गई थी और इस का हाल ये है कि वो कभी भी गिर सकती है क्योंकि इस तख़्ती की उम्र 92 साल हो चुकी है।

ओहदादार या नवादिरात के दुश्मन उसे उठा ले जा सकते हैं इस लिए बेश बहा क़ीमती संग मरमर की तारीख़ी तख़्तीयों का तहफ़्फ़ुज़ ज़रूरी होगया है। महिकमा वाटर वर्क़्स और महिकमा आसारे-ए-क़दीमा की ज़िम्मेदारी है कि वो इन तारीख़ी डीमस और उन के संग-ए-बुनियाद के मौक़ा पर नसब की गईं तख़्तीयों की हिफ़ाज़त को यक़ीनी बनाएं।