सुप्रीम कोर्ट के साबिक़ जज ए के गांगुली पर आइद जिन्सी हिरासानी के इल्ज़ामात की गूंज पार्लियामेंट में सुनाई दी जबकि बी जे पी और तृणमूल कांग्रेस ने मग़रिबी बंगाल के रियासती इंसानी हुक़ूक़ कमीशन की सदर नशीनी से उनकी फ़ौरी बरतरफ़ी का मुतालिबा करते हुए कहा कि दरहक़ीक़त अख़लाक़ी बुनियादों पर उन्हें ख़ुद अब तक इस्तीफ़ा दे देना चाहते थे लेकिन जस्टिस गांगुली ने जिन की सुप्रीम कोर्ट की एक कमेटी की जानिब से नागवार रवैय्ये पर सरज़निश की जा चुकी है कहा कि वो वाज़िह करचुके हैं कि वो अपने ओहदे से मुस्ताफ़ी नहीं होंगे।
उन्होंने पार्लियामेंट में रियास्ती इंसानी हुक़ूक़ कमीशन की सदारत के ओहदे से उनकी बरतरफ़ी के पार्लियामेंट में मुतालिबे पर कोई तबसरा करने से इनकार कर दिया और कहा कि वो इस बारे में कुछ भी नहीं कहेंगे। उन से पार्लियामेंट में शोर-ओ-गुल के बारे में सवाल किया गया था उन्होंने कहा कि वो पहले ही तमाम इल्ज़ामात की तरदीद करचुके हैं उन्हें मज़ीद कुछ नहीं कहना है। बी जे पी के इलावा तृणमूल कांग्रेस ने भी उनकी अलाहदगी का पुर ज़ोर मुतालिबा किया है।
चीफ़ मिनिस्टर मग़रिबी बंगाल ममता बनर्जी जिन्होंने जस्टिस गांगुली का मग़रिबी बंगाल इंसानी हुक़ूक़ कमीशन की सदर नशीनी के लिए इंतेख़ाब किया था जबकि वो 2011 में बरसर-ए-इक्तदार आई थीं। सदर जम्हूरिया हिंद प्रणब मुखर्जी को दो मकतूब रवाना करते हुए उनसे दरख़ास्त कर चुकी है कि साबिक़ जज के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाये। लोक सभा में जस्टिस गांगुली का मसला क़ाइद अपोज़िशन सुषमा स्वाराज ने उठाया था और कहा था कि एक ज़ेरे सरपरस्ती ख़ातून के साथ उनके ऐसे ताल्लुक़ात एतिमाद और भरोसे की खुली ख़िलाफ़वरज़ी हैं। चुनांचे नाक़ाबिल माफ़ी हैं। उन्हें सज़ा दिए बगै़र नहीं छोड़ा जाना चाहिए क्योंकि वो एक बड़े ओहदे पर फ़ाइज़ हैं। उन्हें अब तक ही अख़लाक़ी बुनियादों पर अपने ओहदे से मुस्ताफ़ी होजाना चाहिए था लेकिन वो बेशरमी के साथ अपने ओहदे से चिपके हुए हैं।