सड़क हादसात में अक्सर नौजवान हलाक हो रहे हैं। इस ज़िमन में जो भी सर्वे किए गए उन से ये बात सामने आई कि शहर और मज़ाफ़ाती इलाक़ों में जो भी यौमिया कम अज़ कम 6 सड़क हादसात पेश आ रहे हैं जिन में मरने वालों की तादाद भी कम अज़ कम 6 रह रही है। इस तरह देखा जाये तो माहाना 180 अफ़राद सड़क हादसात में अपनी ज़िन्दगियों से महरूम हो रहे हैं।
इन में 90 फ़ीसद ऐसे नौजवान हैं जिन की उमरें 18 ता 20 साल हैं। दो यौम क़ब्ल राक़िमुल हुरूफ़ को एक रिपोर्ट की तैयारी के सिलसिले में 29 किलो मीटर फ़ासिला पर वाक़े मौज़ा जनवाड़ा ताल्लुक़ शंकर पल्ली जाना पड़ा उस वक़्त रास्ते में हम ने एक ऐसा हादसा देखा जिस से हमारा सारा वजूद लरज़ कर रह गया।
मल्टीनेशनल आई टी कंपनी विपरो में मुलाज़िम एक नौजवान और उस का दोस्त एक बाईक पर इस क़दर तेज़ी से गुज़र रहे थे कि हमें उन की रफ़्तार देख कर ही डर होने लगा लेकिन एक दो मिनट के बाद ही हमें वो नौजवान हादसा का शिकार हो कर सड़क पर तड़पते नज़र आए ये हादसा ख़ानापूर और नारसन्गी पुलिस स्टेशन के हुदूद में पेश आया। जिस में 22 साला नौजवान राजू दो चार मिनट तड़पता रहा और फिर फ़ौत हो गया। जब कि उस का साथी 23 साला मही पाल हॉस्पिटल में मौत और ज़िन्दगी की कश्मकश में मुबतला है।
दरअसल ये नौजवान वहां से सिर्फ़ 9 किलो मीटर फ़ासले पर वाक़े कदोतूर अपने घर वापिस हो रहे थे कि ये हादसा पेश आया। उन लोगों ने तेज़ रफ़्तार गाड़ी चलाते हुए मुख़ालिफ़ सिम्त से आने वाली एक ऑटो ट्राली को टक्कर देदी राजू का सर सीधे ऑटोरिक्शा ट्राली के सामने के आईने से टकराया और देखते ही देखते वो ख़ून में लत पत् हो गया।
वहां जमा लोगों ने ग़ैर मामूली हमदर्दी का मुज़ाहरा करते हुए 108 एम्बुलेन्स और पुलिस को इत्तिला दी जब कि राजू के घर वालों को भी फ़ोन पर उस वक़्त आगाह किया गया ताहम हैरत की बात ये है कि इस बदनसीब लड़के की माँ और भाई सिर्फ़ 15 मिनट में पहुंच गए जब कि इसी फ़ासले से मुक़ाम हादिसे पर पहुंचने के लिए पुलिस को 55 मिनट लग गए।
108 ने तो बेहिसी के मुआमला में पुलिस को भी पीछे छोड़ दिया सिर्फ़ 25 मिनट में मुक़ाम वाक़िया पर पहुंच जाने का दावा करने वाली 108 एम्बुलेन्स को इसी मुक़ाम तक पहुंचने में सवा घंटा लग गया तब कहीं जाकर ज़ख़्मी नौजवान मही पाल को हॉस्पिटल मुंतक़िल किया जा सका। जहां तक वालिदैन का सवाल है दुनिया में माँ बाप ही ऐसी शख्सियतें होते हैं जो अपनी औलाद से ग़ैर मामूली मुहब्बत करते हैं।
औलाद के तएं उन के दिलों में नफ़रत का तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता इस के बावजूद सड़क हादसात में नौजवानों की मौत उन्हें नई नई गाड़ियां खरीद कर देने में वालिदैन के रोल से अब ये सवाल उठ रहे हैं कि क्या माँ बाप भी औलाद के दुश्मन होते हैं?
क्यों कि दुश्मन ही तबाही का सामान करता है ऐसे में वालिदैन और सरपरस्तों को चाहीए कि वो अपने लड़कों को कम अज़ कम 25 बरस उम्र के बाद ही मोटर सैकलि या दूसरी गाड़ियां खरीद कर दें।