अदबी लतीफ़े

एक महफ़िल में मौलाना आज़ाद और मौलाना ज़फ़र अली ख़ान हाज़िर थे। मौलाना आज़ाद को प्यास महसूस हुई तो एक बुज़ुर्ग जल्दी से पानी का हयूला ले आए। मौलाना आज़ाद ने हंस कर इरशाद किया-
ले के इक पैर-ए-मुग़ां हाथ में मीना, आया
मौलाना ज़फ़र अली ख़ान ने बरजस्ता दूसरा मिसरा कहा:
मैकशो ! शर्म कि इस पर भी ना पीना आया
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दिल्ली के एक हिंद-ओ-पाक मुशायरे में अबद अलहमीद अदम पण्डित हरी चंद अख़तर को देखते ही उन से लिपट गए और पूछने लगे:
” पण्डित जी मुझे पहचाना? में अदम हूँ।
अख़तर ने अदम का मोटा ताज़ा जिस्म देखते हुए मुस्कुरा कर अपने मख़सूस अंदाज़ में कहा
” अगर यही अदम है तो वजूद क्या होगा।”